आज ही के दिन हुुआ था आजादी के इतिहास का सबसे बड़ा बलिदान
राजस्थान का जनजाति बहुल दक्षिणांचल वागड़ (बांसवाड़ा व डूंगरपुर जिला) न सिर्फ अपनी आदिम संस्कृति के लिए देश-प्रदेश में जाना-पहचाना जाता है अपितु यह अंचल आजादी के इतिहास की एक ऐसी लोमहर्षक घटना का साक्षी है जिसमें महान संत गोविन्द गुरु के नेतृत्व में 1500 आदिवासी गुरुभक्तों ने अपना बलिदान दिया। यह बलिदान आजादी के आंदोलन में अब तक ख्यातनाम जलियावाला बाग के बलिदान से भी बड़ा था और आज 17 नवंबर 2017 को इस बात के ठीक एक सौ चार वर्ष पूरे हुए हैं।
बलिदान व साहस के जीवंत प्रतीक
बांसवाड़ा जिलान्तर्गत आनंदपुरी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मानगढ़ धाम पहाड़ ही वह स्थान है जहां पर एक सौ चार साल पहले 17 नवंबर, 1913, मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर गुरु का जन्मदिन मनाने के लिए एकत्र हुए हजारों गुरुभक्तों पर आक्रमण कर ब्रिटीश सेना ने मौत के घाट उतार दिया था। गुजरात और राजस्थान की सीमाओं का निर्धारण करते इस विशाल पहाड़ का कण-कण और उस संतमना के साहस और प्रेरणा का बखान करती आदिवासी भगतों की वाणियां आज भी उस बलिदान को ताजा करती है। सिर्फ यह पहाड़ ही नहीं बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले सहित गुजरात के सरहदी क्षेत्रों में गोविन्द गुरु और शिष्यों द्वारा स्थापित धूणियां आज भी उस बलिदान की साक्षी हैं। गुजरात के झालोद तालुका की नटवा व पण्डेरफला धूणी, कंबोई धूणी बांसिया स्थित मणी मगरी, धूणी मगरी व छाणी मगरी धूणी,सुराता धूणी, तथा बेड़सा स्थित गनी माता की समाधि गोविन्द गुरु और मानगढ़ धाम की घटना के जीवंत प्रतीक हैं।
क्रांतिवीरों के परिजन है मौखिक दस्तावेज
क्रांतिवीर शहीदों के परिजन मानगढ़ धाम पर हुए बलिदान की बानगी आज भी प्रस्तुत करते है । बलिदान के मौखिक दस्तावेजों के रूप में परिजनों की वाणियां उस लोमहर्षक घटना की जीवंतता का बयां करती है। मानगढ़ धाम पर 17 नवंबर, 1913 को गोविन्द गुरु के नेतृत्व में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश से हजारों भक्तों ने हिस्सा लिया। कई तो काल कवलित हो गए लेकिन कुछ भक्त थे जो गोविन्द गुरु की कृपा और आदेश से किसी तरह बचते-बचाते, छिपते-छिपाते जिन्दा घर लौटे। इन्हीं भाग्यशाली भक्तों में शामिल थे सुराता धूणी से जुड़े मोगाजी भगत, धीराभाई भगत और हीराभाई खांट। इन तीनों से सुने गए संस्मरण के गवाह है डूंगरपुर जिले के आंतरी के निकट गोलआंबा निवासी 98 वर्षीय कुबेर महाराज। मानगढ़ के निकट गराडू गांव के वीका भाई डामोर मानगढ़ नरसंहार में शहीद हुए थे तो उनके छोटे भाई कानजी डामोर व अपनी पत्नी गलाली देवी किसी तरह बच निकले। इन्हीं के परिवार के सकसी भाई भगत उनकी कुबार्नी की गाथा आज भी बताते हैं। मानगढ़ नरसंहार में प्राणों की आहुति देने वाले बांसवाड़ा जिले के टीमुरवा गांव तीहा वेसात पारगी तथा आनंदपुरी ढोढिया के बाबरिया चनाणा थे। तीहा पारगी के पुत्र स्वतंत्रता सेनानी पौनगिरि महाराज थे। पौनगिरि महाराज के पुत्र लालशंकर पारगी आज भी इस कुबार्नी को बयां करते हैं।
क्रांतिचेता व्यक्तित्व गोविन्द गुरु और उनके परिजन
उस वक्त जब देश की आजादी में हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से योगदान दे रहा था तब अशिक्षा व अभावों के बीच अज्ञानता के अंधकार में जैसे-तैसे जीवनयापन करते आदिवासी अंचल के निवासियों को धार्मिक चेतना की चिंगारी से आजादी की अलख जगाने का काम एक ऐसे शख्स ने किया जिसने न तो किसी स्कूल-कॉलेज में शिक्षा ली थी और न किसी सैन्य संस्थान में प्रशिक्षण पाया था। ढोल-मंजिरों की ताल और भजन की स्वर लहरियों से आम जनमानस को आजादी के लिए उद्वेलित करने वाले इस शख्स का नाम गोविन्द गुरु था और उनका जन्म डूंगरपुर जिले के बांसिया गांव में 20 दिसंबर 1858 को हुआ था। गोविन्द गुरु ने 1903 में ह्यसंप सभाह्ण नामक संगठन बनया। इसके माध्यम से ह्यसंपह्ण अर्थात् मेल-मिलाप व एकता स्थापित करने, व्यसनों, बुराईयों व कुप्रथाओं के परित्याग, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार, शिक्षा, सदाचार, सादगी व सरल-सहल जीवन अपनाने, अपराधों से दूर रहने, बेगार प्रथा तथा अन्याय का बहादुरी से सामना करने और अंग्रेजों के अत्याचार का मुकाबला करने के प्रति लोगों को जागृत किया। गोविन्द गुरु की अगुवाई में मानगढ़ धाम इन गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बना। क्रांतिकारी संत गोविन्द गुरु के ज्येष्ठ पुत्र हरिगिरि का परिवार बांसिया में तथा छोटे पुत्र अमरूगिरि का परिवार बांसवाड़ा जिले के तलवाड़ा के निकट उमराई में बसा है। गोविन्द गुरु के जन्म स्थान बांसिया में निवासरत परिवार की छठी पीढ़ी उनकी विरासत को संभाले हुए है। गोविन्द गुरु के पुत्र हरिगिरि, उनके पुत्र मानगिरि, उनके पुत्र करणगिरि, उनके पुत्र नरेन्द्र गिरि और छठी पीढ़ी में उनके पुत्र गोपालगिरि मड़ी मगरी पर रहकर गोविन्द गुरु के उपदेशों को जीवन में उतारने को संकल्पित है। दूसरी ओर उनके दूसरे पुत्र अमरगिरि के वंश में ज्येष्ठ पुत्र रामगिरि, व उनके तीन पुत्र श्रवण कुमार, कन्हैयालाल व सतीश कुमार तथा गोविन्द गुरु के दूसरे पुत्र अमरगिरि के वंशज मोतीगिरि के वंश के छ: पुत्र और चार पुत्रियां गोविन्द गुरु के वंश के प्रतीक बने हुए हैं। इसी प्रकार गोविन्द गुरु की बेटी मीरा की वंशावली तलवाड़ा के निकट भीमकुण्ड के पास स्थित बस्ती में निवासरत है।
सरकार का साथ, हो रहा धाम का विकास
राज्य सरकार के प्रयासों से मानगढ़ धाम के विकास के प्रयास लगातार जारी हैं। मानगढ़ धाम की शहादत और गोविन्द गुरु की स्मृति में वर्ष 2008 में राजस्थान सरकार द्वारा 93 लाख रुपयों की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति से गोविन्द गुरु स्मृति उद्यान का निर्माण कराया गया। निर्माण कार्य हेतु एक हेक्टेयर वन भूमि का प्रत्यावर्तन वन विभाग से कराया गया वहीं परियोजना के अन्तर्गत गोविन्द गुरु की धातु की 9 फुट ऊंची प्रतिमा, तथा 20ह्ण गुणा 6ह्ण के 2 गनमेटल के रिलीफ पैनल, लगाये गये। गोविन्द गुरु स्मृति उद्यान का शुभारम्भ दिनांक 28-08-2008 को माननीय मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे जी द्वारा किया गया था। वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा मानगढ़ धाम पर राष्ट्रीय जनजाति संग्रहालय बनाया जाना प्रस्तावित है। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे द्वारा मानगढ़ धाम पर 17 नवंबर, 2015 को आयोजित विशाल आदिवासी सम्मेलन में संत श्री गोविन्द गुरु की स्मृति में राष्ट्रीय जनजाति संग्रहालय बनाने की घोषणा की थी। सरकार के निदेर्शों पर राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण द्वारा मानगढ़ पहाड़ी पर ब्रिटिश अत्याचार एवं दमन के कारण हुए शहीदों की स्मृति में श्रद्धांजलि स्वरूप जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय बनाये जाने हेतु विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाई गई थी। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा संग्रहालय निर्माण के लिए गत 17 अक्टूबर को 3.05 हेक्टेयर वन भूमि के प्रत्यावर्तन की स्वीकृति प्रदान की गई वहीं प्राधिकरण द्वारा 12 करोड़ 37 लाख रुपयों की लागत से मानगढ़ धाम पर जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय के निर्माण हेतु निविदाएं आमंत्रित की गई है और जल्द ही इस संग्रहालय का निर्माण प्रारंभ कर दिया जाएगा।
– कमलेश शर्मा