मानसरोवर आवासीय योजना जयपुर में अवाप्तशुदा जमीन के बदले 200 करोड़ के विकसित भूमि के पट्टे बांटने के बहुचर्चित जमीनी घोटाले के मामले में डेढ़ साल बाद भी एसीबी हाथ पर हाथ रखकर बैठी हुई। आरोपी रसूखदार आला अफसरों से जुड़े इस बहुचर्चित मामले में एसीबी का लचर अनुसंधान सामने आया। तत्कालीन राजस्थान हाऊसिंग बोर्ड के अध्यक्ष परसराम मोरदिया, तत्कालीन एसीएस व वर्तमान में मुख्य सचिव डीबी गुप्ता, एसीएस यूडीएच जी.एस.संधु पर खातेदारों और मैसर्स आरआर सिटी डवलपर्स के कर्ताधर्ता से आपराधिक सांठगांठ करके अवाप्तिशुदा जमीन का गैर कानूनी और नियम विरुद्ध तरीके से अरबों रुपए की विकसित भूमि के पट्टे देकर जमीनी घोटाले को अंजाम देने का आरोप है। कोर्ट के आदेश पर भी एसीबी रसूखदारों के दबाव में, या यह कहे कि इन्हें बचाने में लगी हुई है। एसीबी ना तो विस्तृत जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर रही है और ना ही प्राथमिकी दर्ज की। इस हाई-प्रोफाइल लैण्ड स्कैम मामले को अंदरखाने रफा-दफा करने के चर्चे प्रशासनिक और सियासी क्षेत्र में खूब हो रहे हैं। जयपुर के इस बहुचर्चित जमीन घोटाले पर जनप्रहरी एक्सप्रेस की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट…..
– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। करीब डेढ़ साल पहले राजधानी जयपुर के मानसरोवर आवासीय योजना में अवाप्तशुदा जमीन के बदले में गैर कानूनी तरीके से करोड़ों रुपयों की बेशकीमती विकसित भूमि अलॉट करने की गूंज मीडिया के सामने खूब बाहर आई थी। करीब दस हजार वर्गमीटर विकसित भूमि के इस लैण्ड स्कैम में कई आला अफसरों के शामिल होने के आरोप लगे तो कांग्रेस के एक दिग्गज और तत्कालीन राजस्थान हाऊसिंग बोर्ड के चेयरमैन के दामन पर भी दाग लगे। करीब डेढ़ साल से यह चर्चित मामला एसीबी मुख्यालय में धूल फांक रहा है। करीब दो सौ करोड़ रुपए के इस जमीनी घोटाले को दफन करने की कवायद शुरुआत से हो रही है। डेढ़ साल से यह मामला एसीबी कोर्ट के विराचााधीन है, लेकिन कोर्ट के आदेश पर भी एसीबी ना तो इस मामले में विस्तृत अनुसंधान रिपोर्ट पेश कर रही है और ना ही परिवाद या प्राथमिकी दर्ज कर पाई है। बल्कि पीडित पक्ष का यहां तक कहना है कि इस मामले में एसीबी आरोपी पक्ष को बचाने के लिए झूठे दस्तावेज और साक्ष्य कोर्ट में पेश कर रही है। यहीं नहीं आधी-अधूरी रिपोर्ट दी जा रही है, जिससे साफ है कि अनुसंधान एजेंसी को आरोपी पक्ष प्रभावित कर रहे हैं। इस मामले में मुख्य आरोप तत्कालीन एसीएस और वर्तमान में मुख्य सचिव डी.बी गुप्ता पर है। ऐसे में नौकरशाही दबाव में दिख रही है और कोर्ट के निर्देशों की पालना भी नहीं हो पा रही है। मामले में एसीबी के अनुसंधान अधिकारी के इस लचर रवैये, कोर्ट आदेश की पालना नहीं करने और लचर अनुसंधान को लेकर पीडित पक्ष ने कोर्ट में लिखित बहस में शिकायत की है। साथ ही झूठे दस्तावेज और साक्ष्य पेश करने पर दोषी अनुसंधान अधिकारियों पर कार्रवाई की गुहार की है। लिखित बहस में परिवादी पक्ष के अधिवक्ता एडवोकेट अजय कुमार जैन ने करीब दो सौ करोड़ रुपए के इस जमीनी घोटाले में आरोपियों के षडयंत्र का पर्दाफाश करते हुए उनके दस्तावेज पेश किए हैं। इसके अलावा एसीबी द्वारा तमाम सबूत और दस्तावेज पेश किए जाने के बावजूद मामले में कोई अनुसंधान नहीं करने का आरोप लगाया है। एडवोकेट जैन का तर्क है कि एसीबी आरोपियों के दबाव में है। इस वजह से अनुसंधान को लटकाए हुए है। जबकि इस लैण्ड स्कैम में दस्तावेज सरकार को अरबों रुपए की चपत लगने की कहानी कह रहे हैं। दो आला अफसर ने भी नोटशीट में विकसित भूमि दिए जाने को गलत ठहराया है। फिर भी मामले को दबाना समझ से परे है। एसीबी के लचर अनुसंधान के बारे में कोर्ट को अवगत करा दिया है। उधर, इस मामले में अब अगली सुनवाई 27 नवम्बर रखी गई है। यह मामला एसीबी मामलात के कोर्ट में न्यायाधीश बलजीत सिंह के यहां चल रहा है।
-कुछ इस तरह से सरकार को लगाई अरबों रुपय की चपत
1982 में राजस्थान सरकार ने मानसरोवर आवासीय योजना के लिए झालानाचोड, देवरी, मानपुरा उर्फ गोल्यावास और सुखालपुरा में करीब 2570बीघा भूमि जमीन अवाप्त की थी। 1989 में अवाप्तशुदा भूमि का अवार्ड जारी करते हुए कब्जा ले लिया। इस योजना में सुखालपुरा गांव की करीब 35 बीघा भूमि (खसरा नम्बर 212, 213, 218)भी शामिल थी। इस भूमि के खातेदार 1976 में ही इस जमीन का बेचान न्यू पिंकसिटी हाउसिंग कॉपरेटिव सोसायटी को कर चुके थे। भूमि अवाप्ति होते ही सोसायटी के पदाधिकारियों ने एसीजेएम दो जयपुर में रेफ रेंस केस दायर किया, जो आज तक विचाराधीन है। नगरीय विकास विभाग ने इस भूमि का मुआवजा पन्द्रह लाख रुपए 1990 में कोर्ट में जमा करा दिया। जमीन के खातेदारों ने हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई थी, जिसमें बताया था कि हमनें हमारी जमीनों को न्यू पिंकसिटी सोसायटी को बेच चुके हैं और वे ही इस भूमि के मुआवजे की हकदार है। तब कोर्ट ने फैसला दिया था कि मुआवजे के हकदार सोसायटी है लेकिन इस आधार पर अवाप्ति को खारिज नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने आदेश में साफ कहा था कि नगरीय विकास विभाग की अवाप्ति कार्रवाई सही है और मुआवजा हकदार सोसायटी को मिले। करीब दो दशक तक यह मामला शांत पड़ा रहा। निचली अदालत में रेफरेंस केस का फैसला नहीं होने के कारण मुआवजा 2013 तक न्यायालय में ही जमा रहा। सोसायटी मुआवजे के लिए सरकार और कोर्ट के स्तर पर लड़ाई लड़ती रही। अचानक 2013 में अशोक शर्मा और नानगराम बलाई ने अवाप्तशुदा 35 बीघा भूमि के काश्तकारों की तरफ से राजस्थान आवासन मण्डल चेयरमैन परसराम मोरदिया के सामने 02.08.2013 को आवेदन दिलवाया कि हमें अवाप्तशुदा भूमि के बदले 25 फ ीसदी विकसित भूमि दी जाए। मोरदिया ने इस मामले को भूमि समझौता समिति को रैफर कर दिया। मोरदिया की अध्यक्षता में 16.09.2013 को समिति ने 13281 वर्गमीटर विकसित भूमि आवंटित करने का निर्णय लिया। नगरीय विकास विभाग को प्रस्ताव मंजूरी के लिए भेज दिया, वहां तत्कालीन प्रमुख शासन सचिव डीबी गुप्ता ने 27 सितम्बर 2013 को प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। वो भी आवासन कमिश्नर आर.वेंकटेश्वरन की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए। आर.वेंकटेश्वरन ने इस स्वीकृति पर आपत्ति जताते हुए विकसित भूमि के पट्टे जारी नहीं किए। हालांकि आवासीय बोर्ड के सचिव जी.एस.बाघेला ने एक पट्टा 1120 वर्गमीटर का पट्टा जारी कर दिया। यह पट्टा नानगराम बलाई के नाम जारी किया गया, जो परसराम मोरदिया का घरेलू नौकर बताया जाता है। खास बात यह है कि नानगराम ना तो इस भूमि का खातेदार है और ना ही न्यू पिंकसिटी हाऊसिंग कॉपरेटिव सोसायटी का प्रतिनिधि है। जमीन को बेच चुके खातेदारों के एक सहमति पत्र के आधार पर बोर्ड और यूडीएच ने नानगराम को पट्टा जारी कर दिया जबकि न्यू पिंकसिटी सोसायटी बोर्ड से बराबर पत्र लिखकर विकसित भूमि की मांग कर रही थी।
-अपने ही सचिव आर.वेंकटेश्वरन की आपत्तियां भी खारिज कर दी
पहला पट्टा जारी होने के बाद एसीएस डीबी गुप्ता ने 4 दिसम्बर 2013 को आदेश दिए कि दस हजार वर्गमीटर भूमि का पट्टा भी जारी कर दिया जाए। इस आदेश पर भी हाऊसिंग बोर्ड के सचिव आर.वेंकटेश्वरन ने आपत्ति जताते हुए नोटशीट में लिखा कि पहला पट्टा गलत जारी हुआ है। उसे रद्द किया जाए और प्रकरण को दुबारा कुछ आपत्तियों (कोर्ट में केस लंबित होने, जमीन अवाप्त कर मुआवजा जमा करा देने, आवासीय योजना मूर्तरुप ले चुकी है, पट्टा देने वाले दोषी कर्मियों पर कार्रवाई करने) के साथ यह फ ाइल नगरीय विकास विभाग के एसीएस डीबी गुप्ता के पास भेज दी। इन आपत्तियों के चलते विकसित भूमि देने की योजना खटाई में पड़ी तो डीबी गुप्ता ने इस फाइल को अपने पास मंगवा ली। फाइल भेजते समय बेंकटेश्वरन ने नोटशीट में विकसित भूमि देने में बरती अनियमितताओं को अंकित करते हुए आपत्तियों पर एक्शन लेने को कहा लेकिन डीबी गुप्ता ने आपत्तियों को दरकिनार करते हुए पहले मामले में चर्चा और फि र विधिक राय मांगी। विधिक राय में तत्कालीन संयुक्त विधि परामर्शी अशोक कुमार सिंह ने यूडीएच के पूर्व में पट्टे देने के निदेर्शों के अनुरुप पट्टा दिए जाने की सहमति दे दी। इस राय के आधार पर दूसरा पट्टा अशोक शर्मा के नाम 8213 वर्गमीटर का जारी कर दिया। दूसरा पट्टा जारी करते वक्त प्रदेश में कांग्रेस सरकार चुनाव हार गई थी और भाजपा सरकार सत्ता में आई थी। परसराम मोरदिया के इस्तीफ ा देने के बाद बोर्ड चैयरमैन की जिम्मेदारी भी डीबी गुप्ता के पास आ गई थी। डीबी गुप्ता ने प्रमुख शासन सचिव और चेयरमैन रहते हुए तमाम आपत्तियों को दरकिनार करते हुए 29 जनवरी 2014 को दूसरा पट्टा भी जारी कर दिया। पट्टा लेने वाले अशोक शर्मा ना तो खातेदार हैं और ना ही पिंकसिटी सोसायटी के अधिकृत प्रतिनिधि। ऐसे में नियम विरुद्ध तरीके से विकसित भूमि के पट्टे देकर सरकार को करीब दो सौ करोड़ रुपए की चपत पहुंचाई गई।
– चहेते लोगों में बंटी विकसित भूमि के पट्टे की रेवडिय़ां
मामले में परिवादी अशोक पाठक ने आरोप लगाया है कि दोनों पट्टे फ र्जी तरीके और नियम विरुद्ध तरीके से दिए गए हैं। जिन्हें पट्टे दिए गए हैं वे डीबी गुप्ता व मोरदिया के चहेते व्यक्ति हैं। हालांकि 25 फरवरी 2014 को आवासन मण्डल चेयरमैन डीबी गुप्ता ने अपने बचाव के लिए एक आदेश जारी करते हैं कि पट्टे पर अंकित कर दिया जाए पट्टा कोर्ट के आदेश के अधीन रहेगा और वे इसे ना तो बेचान कर सकेंगे और ना ही हस्तांतरित कर सकेंगे। इस आदेश के एक दिन पहले ही अशोक शर्मा ने इस जमीन को गोपाल लाल मीना को आठ करोड़ रुपए में बेचान कर दिया। गोपाल लाल मीना ने भी इस भूमि को 26 मार्च 2015 को दस करोड़ रुपए में आर.आर.सिटी डवलपर्स को बेचान कर दिया। पट्टे लेेने वाले मोरदिया के नजदीकी लोग थे।
कोर्ट से न्याय की उम्मीद
दो सौ करोड़ रुपए का लैण्ड स्कैम होने के बाद भी एसीबी लचर अनुसंधान कर रही है। ना तो कोर्ट आदेश की पालना कर रही है और ना ही प्राथमिकी दर्ज की है। जबकि यह पूरा मामला पानी की तरह साफ है। अवाप्तशुदा जमीन के एवज में गैर कानूनी तरीके से विकसित भूमिक के पट्टे जारी कर दिए गए। वो भी अपने ही एक सीनियर आईएएस आर.वेंकटेश्वरन की आपत्तियों के बावजूद। रसूखदार आरोपियों को एसीबी बचाने में लगी हुई है। ऐसे में अब कोर्ट से ही न्याय की उम्मीद बची है।
एडवोकेट अजय कुमार जैन