जयपुर। मानसरोवर आवासीय योजना जयपुर में अवाप्तशुदा जमीन के बदले गैर कानूनी तरीके से 200 करोड़ रुपए की विकसित भूमि के पट्टे बांटने के बहुचर्चित जमीनी घोटाले मामले में लीपापोती शुरू हो गई है। तत्कालीन एसीएस यूडीएच व वर्तमान मुख्य सचिव डी.बी.गुप्ता, तत्कालीन सचिव जी.एस.संधु, राजस्थान हाऊसिंग बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन परसराम मोरदिया जुड़े इस बहुचर्चित मामले में भ्रष्टाचार मामलात की विशेष अदालत के आदेश पर भी एसीबी इस मामले के अनुसंधान में लीपापोती करने में लगी हुई है। रसूखदार आरोपियों के दबाव में एसीबी ना तो प्राथमिकी दर्ज कर रही है और ना ही निष्पक्ष अनुसंधान पर ध्यान दे रही है। यह मामला एक साल से अधिक होने पर भी एसीबी सिर्फ तारीखें ले रही है। एसीबी के अलावा इस मामले में एक ओर खुलासा हुआ है। इस मामले की शिकायत होने पर विभागीय जांच शुरू हुई थी। नगरीय विकास विभाग की विभागीय जांच कमेटी ने अनुसंधान में इस मामले में अनियमितता मानते हुए प्रकरण को लेकर गंभीर टिप्पणी की थी। विभागीय जांच में अवाप्तशुदा जमीन के विकसित भूमि के पट्टे दिए जाने को नियम विरुद्ध माना गया। जिसके आधार पर इसे प्रकरण को लोकायुक्त राजस्थान को भेजने की अनुशंषा की गई थी। तत्कालीन प्रमुख शासन सचिव मुकेश शर्मा को यह मामला लोकायुक्त में भेजने के लिए पत्र लिखा गया, लेकिन मुकेश शर्मा ने इस फाइल को लोकायुक्त राजस्थान को भेजने के बजाय इसे यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी के पास भिजवा दी गई। मंत्री ने भी इस फाइल पर कोई एक्शन नहीं लिया। मंत्री ने इस फाइल को सीएस कार्यालय भिजवा दिया। तब से यह फाइल धूल फांक रही है। लोकायुक्त कार्यालयम में आधी-अधूरी फाइल भेजी गई। वह नोटिंग और टिप्पणी लोकायुक्त कार्यालय में नहीं भेजी गई, जिसमें विकसित भूमि के पट्टे के आवंटन को गलत ठहराया है। मामले में प्रभावशाली आरोपियों के दखल व दबाव के चलते गलत तरीके से बांट दिए गए विकसित भूमि के पट्टों का आवंटन रद्द नहीं किया गया। इस मामले की जांच में लीपातोपी हो रही है। यहीं नहीं इस मामले को किसी भी तरह से दफ्तर फाइल करने के प्रयास चल रहे हैं, जिससे यह मामला खत्म हो जाए।
पट्टेदार ना किसान, ना ही सोसायटी प्रतिनिधि, फिर भी बांट दिए विकसित भूमि के पट्टे
सरकार ने मानसरोवर आवासीय योजना के लिए झालानाचोड, देवरी, मानपुरा उर्फ गोल्यावास और सुखालपुरा में करीब २५७० बीघा भूमि जमीन अवाप्त की थी और अवार्ड जारी कर जमीनों का कब्जा ले लिया था। इस योजना में सुखालपुरा गांव की करीब ३५ बीघा भूमि भी शामिल थी। इस भूमि के खातेदारों ने जमीन का बेचान न्यू पिंकसिटी हाउसिंग कॉपरेटिव सोसायटी को कर चुके थे। भूमि अवाप्ति होते ही सोसायटी के पदाधिकारियों ने एसीजेएम दो जयपुर में रेफ रेंस केस दायर किया, जो आज तक विचाराधीन है। सोसायटी मुआवजे के लिए सरकार और कोर्ट के स्तर पर लड़ाई लड़ती रही। कोर्ट में सुनवाई के दौरान अशोक शर्मा और नानगराम बलाई ने अवाप्तशुदा भूमि के काश्तकारों की तरफ से राजस्थान आवासन मण्डल चेयरमैन परसराम मोरदिया के सामने आवेदन दिलवाया कि हमें अवाप्तशुदा भूमि के बदले विकसित भूमि दी जाए। मोरदिया ने इस मामले को भूमि समझौता समिति को रैफर कर दिया। मोरदिया की अध्यक्षता में हुई कमेटी ने विकसित भूमि आवंटित करने का निर्णय लिया। नगरीय विकास विभाग को प्रस्ताव मंजूरी के लिए भेज दिया, वहां तत्कालीन प्रमुख शासन सचिव डीबी गुप्ता ने प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। वो भी आवासन कमिश्नर आर.वेंकटेश्वरन की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए। आर.वेंकटेश्वरन ने इस स्वीकृति पर आपत्ति जताते हुए विकसित भूमि के पट्टे जारी नहीं करने की टिप्पणी अंकित की थी। साथ ही यह भी लिखा था कि अवाप्तशुदा भूमि के विकसित भूमि के पट्टे देना गलत है। इसके बावजूद नानगराम बलाई के नाम पट्टा जारी कर दिया। डीबी गुप्ता ने प्रमुख शासन सचिव और हाऊसिंग बोर्ड चेयरमैन रहते हुए तमाम आपत्तियों को दरकिनार करते हुए अशोक शर्मा को दूसरा पट्टा भी जारी कर दिया। पट्टा लेने वाले अशोक शर्मा व नानगराम ना तो खातेदार हैं और ना ही पिंकसिटी सोसायटी के अधिकृत प्रतिनिधि। ऐसे में नियम विरुद्ध तरीके से विकसित भूमि के पट्टे देकर सरकार को करीब दो सौ करोड़ रुपए की चपत पहुंचाने के आरोप लगाए गए हैं। पट्टे जारी करते वक्त आवासन मण्डल चेयरमैन डीबी गुप्ता ने एक आदेश जारी करते हैं कि पट्टे पर अंकित कर दिया जाए पट्टा कोर्ट के आदेश के अधीन रहेगा और वे इसे ना तो बेचान कर सकेंगे और ना ही हस्तांतरित कर सकेंगे। इस आदेश के एक दिन पहले ही अशोक शर्मा ने इस जमीन को गोपाल लाल मीना को आठ करोड़ रुपए में बेचान कर दिया। गोपाल लाल मीना ने भी इस भूमि को दस करोड़ रुपए में आर.आर.सिटी डवलपर्स को बेचान कर दिया।