नयी दिल्ली : विशेष अदालत ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो :सीबीआई: और शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त विशेष लोक अभियोजक:एसपीपी: आनंद ग्रोवर की आज कड़ी आलोचना की और कहा कि टूजी मामलों में अभियोजन की गुणवत्ता ‘‘पूरी तरह से खराब’’ रही और मुकदमे के अंत तक पहुंचते समय यह ‘‘दिशाहीन’’ हो गया। विशेष न्यायाधीश ओ पी सैनी ने कहा कि सीबीआई ने अपने मामले की शुरुआत ‘‘बहुत उत्साह और जोश’’ के साथ की थी लेकिन सुनवाई के अंतिम चरण में, एसपीपी ग्रोवर और सीबीआई के नियमित अभियोजक ‘‘बिना किसी समन्वय के दो अलग अलग दिशाओं में’’ आगे बढ़े।
गौरतलब है कि मामले की शुरुआत में शीर्ष अदालत ने, उच्चतम न्यायालय के अब न्यायाधीश, वरिष्ठ अधिवक्ता यू यू ललित को टूजी मामले में विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया था। बाद में जब ललित शीर्ष अदालत के न्यायाधीश नियुक्त हुए तो उच्चतम न्यायालय ने विशेष अदालत में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय दोनों के मामलों के लिए ग्रोवर को विशेष लोक अभियोजक बनाया था। अदालत ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और अन्य से जुड़े सीबीआई के मामले में 1552 पेज के अपने फैसले में कहा, ‘‘शुरुआत में, अभियोजन ने बहुत उत्साह और जोश के साथ् मामले की शुरुआत की। हालांकि, मामले के आगे बढ़ने पर, यह अपने रूख में बहुत सतर्क और चौकन्ना हो गया जिससे यह पता करना बहुत मुश्किल हो गया कि अभियोजन क्या साबित करना चाहता है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि, अंत तक आते आते, अभियोजन की गुणवत्ता पूरी तरह से खराब हो गई और यह दिशाहीन और संकोची हो गया। बहुत ज्यादा लिखने की जरूरत नहीं क्योंकि साक्ष्यों पर गौर करने से ही चीजें साफ हो जाती हैं। ’’ अदालत ने सीबीआई और उसके विशेष लोक अभियोजक के व्यवहार का भी कड़ा संज्ञान लिया और कहा कि उनकी तरफ से कई आवेदन और जवाब दायर किये गये लेकिन सुनवाई के अंतिम चरण में, कोई वरिष्ठ अधिकारी या अभियोजक इन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिये तैयार नहीं था। न्यायाधीश ने कहा कि दस्तावेजों पर अंतत: एजेंसी के एक निरीक्षक ने हस्ताक्षर किये जो अदालत में तैनात एक सबसे कनिष्ठ अधिकारी था। अदालत ने कहा कि जब मामले की अंतिम जिरह शुरू हुई तो विशेष लोक अभियोजक ग्रोवर ने कहा कि वह लिखित दलीलें पेश करेंगे लेकिन बाद में उन्होंने मौखिक रूप से दलीलें शुरू कीं जो कई महीनों तक चलीं।