दिल्ली मुम्बई औद्योगिक कॉरिडोर (डीएमआईसीसी) के लिए डेडीकेटेड फ्रेट कोरीडोर (डीएफ सीसीआईएल) के तहत राजस्थान में बिछने वाले रेलवे ट्रेक के दोनों तरफ लगेंगे चालीस हजार मास्ट, पहली खेप में आए मास्ट टेस्टिंग में हो चुके हैं फेल। प्रोजेक्ट अफ सर मिलीभगत करके इन्हें खपाने की तैयारी में लगे हुए हैं, जिससे विवादों में आ सकता राजस्थान का डेडीकेटेड फ्रेट कोरीडोर प्रोजेक्ट। देश के इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में प्रोजेक्ट अफ सरों और ठेका कंपनी की मिलीभगत से हो रहे इस खेल को उजागर करती जनप्रहरी एक्सप्रेस की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट….
-राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। देश के सबसे बड़े औदयोगिक गलियारे दिल्ली.मुम्बई कॉरिडोर (डीएमआईसीसी) के तहत डेडीकेटेड फ्रे ट कोरीडोर (डीएफ सीसीआईएल) के राजस्थान में चल रहे प्रोजेक्ट कार्यों में भारी अनदेखी और खामियां सामने आई है। जापान सरकार की सहायता से तैयार हो रहे इस चार लाख करोड़ रुपए के दिल्ली मुम्बई कॉरिडोर प्रोजेक्ट में वो अनदेखी या खामियां धरातल पर आ चुकी हैं, अगर इन पर ध्यान नहीं दिया और रोका नहीं गया तो देश के औद्योगिक विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण माने जा रहा यह प्रोजेक्ट विवादों में आ सकता है। कॉरिडोर में अफसरों व ठेका कंपनी की मिलीभगत से डबल डेकर रेल ट्रेक के दोनों तरफ लगने वाले 100 फीसदी शुद्ध लोहे के मास्ट (खंभों) की सप्लाई में में बड़ी खामी सामने आई है। इस प्रोजेक्ट में मास्ट व अन्य कार्यों की कंपनी एल एण्ड टीन और खंभों की सप्लायर कंपनी जैन स्टील इंडस्ट्रीज ने 2688 खंभे भेजे हैं। ये खंंभे झुंझुनूं, सीकर, जयपुर, सिरोही, जालोर, अलवर आदि जिलों में लगने हैं। भारतीय मानकों के मुताबिक ये खंभे खरे हैं या नहीं, इसके लिए इनमें से पचास खंभे छांटे गए। डीएफ सीसीआईएल प्रोजेक्ट से जुड़े एक्सपर्ट, मैनेजर और दूसरे प्रोजेक्ट अफसरों ने इनकी टेस्टिंग की। जैन स्टील इंडस्ट्रीज की ओर से साइटों पर भेजे गए 2688 खंभों में से पचास खंभे टेस्टिंग के लिए छांटे गए। इस दौरान कंपनी के प्रतिनिथि भी मौजूद थे। जांच में पचास में से मात्र 9 खंभे ही फि ट पाए गए यानि ये खंभे लगाने योग्य माने गए हैं, जो भारतीय मानकों के मुताबिक पूरे तौर पर खरे उतरे। शेष सभी खंभे डिफेक्टिव माने गए हैं यानि 41 खंभों को लगाने लायक नहीं माना।
भारतीय रेलवे के सूत्रों के मुताबिक मास्ट पहली ही टेस्टिंग में फेल होने के बाद भी प्रोजेक्ट से जुड़े अफसर और मैनेजरों ने कंपनी को फायदा देने के लिए यह रिपोर्ट कई दिनों तक दबाए रखी। यह भी चर्चा है कि सप्लायर कंपनी के यहां हुई टेस्टिंग में भी गड़बड़झाला है। बताया जाता है कि वहां भी टेस्टिंग में कई खंभे फिट नहीं पाए गए, लेकिन वहां तो रिपोर्ट को सही बता दिया गया। अब साइट पर हुई टेस्टिंग में खंभों की पोल सामने आ गई है। यह रिपोर्ट आने के बाद भी प्रोजेक्ट अफसर फेल मास्ट को पास करने और इन खंभों को खपाने की तैयारी में है। आला अफसरों व एक्सपर्ट, प्रोजेक्ट मैनेजर्स को मालूम होने के बाद भी कथित कमीशनखोरी और मिलीभगत के चलते कोई भी फेल मास्ट को सील करने की कार्रवाई नहीं कर रहा है, बल्कि कंपनी को फ ायदा देने के लिए प्रोजेक्ट स्थलों पर आ चुके हजारों मस्ट को कैसे उपयोग में लिया जाए, उस बारे में ही गणित जुटाने में लगे हुए हैं। इस फ र्जीवाडे को लेकर प्रोजेक्ट के दूसरे अफसर भी भयभीत भी हैं. पर आला अफसरों की मिलीभगत के चलते वे भी चुप्पी साधे हुए हैं। इस तरह के खेल से भारत सरकार का यह महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट विवादों में आ सकता है। प्रोजेक्ट अफसरों और कंपनी के बीच हो रहे इस पूरे खेल के दस्तावेज जनप्रहरी एक्सप्रेस के पास है।
-फेल है तो सामान सील करने के हैं नियम…
भारतीय मानक और रेलवे नियमों के मुताबिक जांच रिपोर्ट में सैम्पल फेल होने की स्थिति में जो माल ठेकेदार या ठेका कंपनी ने भेजा है, उसे तब तक गोदाम में सील रखने के प्रावधान है, जब तक कंपनी पूरी सामग्री नहीं भेज दे। यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि ठेकेदार या ठेका कंपनी फेल और खराब माल को दुबारा नहीं भेज सके या उसका कहीं दूसरी जगह उपयोग नहीं कर सके। कंपनी की ओर से भेजी जानी वाली सामग्री के जांचने और टेस्टिंग के प्रावधान है। इसमें फेल होने पर इन्हें भी सील करने के नियम है। फ्रेट कोरीडोर की जांच रिपोर्ट के आधार पर फेल हुए मास्ट को एक जगह रखकर सील कर देना चाहिए था, लेकिन प्रोजेक्ट अफसर इस नियम पर ध्यान नहीं दे रहे हैं और कंपनी को बचाने की फेर में लगे हुए हैं। जांच रिपोर्ट के बाद डीएमआईसी प्रोजेक्ट के अफसरों को सभी 2688 मास्ट को रिजेक्ट श्रेणी में रखकर नियमों के तहत कार्रवाई करनी चाहिए है, लेकिन वे इन्हें सील करने के बजाय लगाने में लगे हैं।
– ये सामने आई हैं खामियां, हो सकते हैं हादसे
भारतीय रेलवे के सूत्रों के मुताबिक, जांच रिपोर्ट में माना है कि पचास में से नौ ही मास्ट भारतीय मानकों के तहत सही है। शेष सभी लगाने लायक नहीं है। बीस खंभों के बारे में एक्सपर्ट ने राय दी है कि ये पूरी तरह डिफेक्टिव है। जांच में पाया है कि खंभों में जस्ता सही नहीं लगा हुआ था। कई खंभों पर यह जस्ता उतरा हुआ था तो कुछ खंभों पर जंग लगी
हुई थी। खंभे एक सीध और समान वजन के होने चाहिए, लेकिन जांच में कुछ खंभों में बैंड दिखा और वजन भी कम-ज्यादा रहा। ये खंभे 100 फीसदी शुद्ध लोहे के बने होने चाहिए, जिस पर जस्ता लगा होना चाहिए ताकि इन पर जंग ना लगे और मजबूती से खड़े रह सके। आपको बता दे कि राजस्थान में करीब डेढ़-दो दशक से मौसम संतुलन बिगड़ा हुआ है। पश्चिमी राजस्थान में जहां फ्रेट कोरीडोर सर्वाधिक रुप से गुजरेगा, वहां बाढ़, भारी जलभराव, आंधी तूफ ान जैसे बड़े मौसमी बदलाव देखे जा चुके हैं। इस बार भी जालोर, सिरोही, बाड़मेर में भारी बारिश ने तबाही मचाई है। यहां की मिट्टी बालुई और दीमक वाली है। अगर जांच रिपोर्ट में फेल मास्ट लगे तो प्रोजेक्ट के तय नियमों के तहत यह लम्बे समय तक टिके रह पाएंगे, यह कहना मुश्किल होगा। जिस तरह से आंधी बारिश और जलभराव की समस्या देखी जा रही है, उससे फेल मास्ट और घटिया खंभों के गिरने से कोरीडोर को नुकसान पहुंच सकता है और यह कोरीडोर विवादों में आ सकता है।
-बिजली सप्लाई के लिए लगेंगे मास्ट..
दिल्ली मुम्बई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का एक बड़ा हिस्सा राजस्थान 39 फ ीसदी से गुजरेगा। राजस्थान से गुजरने वाले इस कॉरिडोर में जितने बड़े गोदाम हैं, वहां से यह कॉरिडोर गुजरेगा। दिल्ली से शुरु कोरीडोर राजस्थान के झुंझुनू, सीकर, जयपुर, अलवर, जालोर, सिरोही, बाड़मेर, जैसलमेर जैसे जिलों से कोरीडोर गुजरकर गुजरात मुम्बई तक पहुंचेगा। इस कॉरिडोर के लिए राजस्थान में बड़े स्तर पर काम चल रहा है। बिजली से चलने वाली मालवाहक ट्रेनों के लिए डबल डेकर ट्रेक के लिए जमीन से बीस-बीस फीट ऊंचे ट्रेक करीब-करीब तैयार हो चुके हैं। इन पर पटरियां बिछनी है। ट्रेक को दोनों तरफ बिजली सप्लाई के लिए मास्ट लगेंगे, जो 100 फीसदी शुद्ध लोहे के होंगे और इन पर जस्ता चढ़ा हुआ होगा। इन जस्तायुक्त मास्ट की पहली खेप ही विवादों में आ गई हैए जो टेस्टिंग में फेल हो चुके हैंं।
– करीब चालीस हजार मास्ट लगेंगे,खर्चा आएगा 275 करोड़ का
इस पूरे प्रोजेक्ट में करीब चालीस हजार मास्ट लगेंगे। इसकी सप्लाई एलएण्डटी कंपनी के पास है। कंपनी ये मास्ट जैन स्टील इण्डस्ट्रीज पंजाब से तैयार करवा रही है। एक मास्ट सात सौ किलो का बताया जा रहा है, जिसकी कीमत प्रति खंभे 60 से 70 हजार रुपए है। पूरे प्रोजेक्ट में पौने तीन सौ करोड़ के मास्ट लगने हैं। हालांकि कंपनी और सप्लायर कंपनी की पहली खेप ही टेस्टिंग में फेल होने के चलते विवादों में आ गई है।