जयपुर । भाजपा सांसद प्रो. सांवरलाल जाट के निधन से रिक्त हुई अजमेर लोकसभा सीट को भरने के लिए आगामी महिनों में होने वाले उप चुनाव में दोनों प्रमुख दलों भाजपा व कांग्रेस के बीच घमासान तय है । लेकिन उप चुनाव से पहले ही कांग्रेस में एक और घमासान छिड़ गया है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट अजमेर से उप चुनाव लड़ेंगे या कन्नी काटेंगे । इस सीट से पायलट एक बार जीत और एक बार हार का स्वाद चख चुके हैं । पायलट को हराकर प्रो. सांवरलाल जब दिल्ली पहुंचे तो कांग्रेस के कद्दावर नेता को हराने का ईनाम भाजपा ने उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनाकर दिया। हालांकि स्वास्थ्य ने प्रो. सांवरलाल का साथ नहीं दिया लेकिन उनकी सक्रियता लगातार बनी रही और वे प्रदेश के एक असरदार किसान नेता माने जाते थे । अपनी सहज छवि से जाट समाज में उन्होंने गहरी पैठ बनाई थी ।
उप चुनाव में भाजपा जहाँ प्रो.सांवरलाल के पुत्र को चुनाव लड़ा सकती है क्योंकि अजमेर संसदीय सीट पर जाट वोट करीब ढ़ाई लाख हैं और जाट वोटों का उप चुनाव में संभावित ध्रुवीकरण ही कांग्रेस को डरा रहा है क्योंकि इस सीट पर भाजपा को दलित वोटों के साथ ब्राह्मण, वैश्य, राजपूत, सिंधी, कुमावत, रावत वोटों पर भरोसा है और गुर्जर व मुस्लिम वोटों में भाजपा सेंधमारी की कोशिश करेगी। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक बार फिर धौलपुर विधानसभा सीट उप चुनाव की तरह पूरी पार्टी व सरकार को एकजुट कर अजमेर में कामयाबी के लिए मैदान में उतरेंगी । उनके राजनीतिक भविष्य के लिए यह चुनाव एक बड़ी चुनौती है ।
उधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के लिए भी यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य के लिए जीने -मरने का प्रश्न है । यदि अजमेर में कांग्रेस चुनाव हार जाती है तो धौलपुर की हार के बाद एक और बड़ी हार चुनावी साल से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा और यदि यह चुनाव खुद पायलट लड़कर नहीं जीत पाये तो यह कांग्रेस के लिए और भी ज्यादा बुरा होगा क्योंकि पायलट इस समय कांग्रेस के एक बड़े वर्ग की आशा के केन्द्र हैं । यह भी एक कड़वी हकीकत है कि अजमेर संसदीय सीट के मौजूदा चुनावी समीकरण पायलट के अनुकूल कम ही हैं । ऐसे में अजमेर के उप चुनाव में कांग्रेस किसी ऐसे उम्मीदवार की तलाश में है कि सचिन पायलट के साथ कांग्रेस की भी प्रतिष्ठा बची रहे । यदि जीत नहीं भी मिले तो हार का अंतर बहुत बड़ा नहीं हो ।
ऐसे में पायलट को उनके राजनीतिक हितैषी अजमेर में जाट उम्मीदवार उतारने की सलाह दे रहे हैं ताकि जाट वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके । पायलट के करीबी पूर्व मंत्री राजेन्द्र चौधरी का नाम भी इस पेटे चलाया जा रहा है लेकिन जमीनी हालात चौधरी के विपरीत है । पूर्व मंत्री हरेन्द्र मिर्धा का नाम भी चर्चा में है लेकिन यदि कद्दावर जाट उम्मीदवार पर ही बात आ टिकी तो फिर कांग्रेस आलाकमान राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी को भी चुनाव लड़ने के लिए कह सकता है । पिछले तीन साल में डूडी की पहचान एक बड़े जाट नेता के रूप में उभरी है और वे अब सिर्फ बीकानेर जिले की राजनीति तक सीमित नहीं है । कुछ माह पहले डूडी का नाम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए भी तेजी से चला था । राज्य की राजनीति में पायलट और डूडी के बीच मधुर रिश्ते तो नहीं है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चुनौती की वजह से दोनों एक साथ दिखने को मजबूर हैं। यदि पायलट अजमेर में डूडी पर दांव खेलते हैं तो जाट वोटों में बंटवारा तय है और मुस्लिम वोटों का झुकाव भी डूडी की तरफ हो सकता है । डूडी वर्ष 1999 में बीकानेर से लोकसभा सांसद रह चुके हैं और वर्ष 2004 में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र से थोड़े अंतर से ही हारे थे । इसके बाद वर्ष 2009 में डूडी ने नागौर संसदीय सीट से टिकट मांगा था लेकिन ज्योति मिर्धा से दौड़ में पिछड़ गये । यदि जाट उम्मीदवार को टिकट की स्थिति में डूडी चुनाव लड़ते हैं तो सचिन पायलट भी राहत महसूस करेंगें क्योंकि डूडी जीते तो जीत पायलट के खाते में जाएगी और डूडी हारे तो हार का ठीकरा पायलट के सिर पर नहीं फूटेगा ।
प्रदेश में विश्वेन्द्र सिंह, नारायण सिंह, गोविंद डोटासरा, श्रवण कुमार, विजेन्द्र ओला जैसे जाट विधायकों के अलावा दिग्गज आदिवासी विधायक महेन्द्रजीत सिंह मालवीय भी चाहेंगे कि डूडी जीतकर दिल्ली चले जाएं ताकि नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हो सके । उप चुनाव की तारीख अभी नहीं आयी है लेकिन कांग्रेस के लिहाज से यह चुनाव बहुत रोचक हो चला है ।

1 COMMENT

  1. कांग्रेस को यहां पर चुनाव पायलट को ही लड़ाना चाहिए….
    आखिर पता तो चले किस मैं कितना दम है

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