नई दिल्ली । आखिरकार भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद पर विराम लग ही गया। भारत पर चीन की धमकियों का कोई खास फर्क नहीं पड़ा। जबकि चीन 2 महीने तक गीदड़ भभकी देने के बाद अब खुद ही रास्ते पर आ गया है और सीमा से सेना हटाने के लिए राजी हो गया। शायद चीन भी अब जान गया है कि और देशों को जिस तरह वह दबाव में लाकर अपने काम निकालता है शायद भारत के सामने उसकी दाल नहीं गलेगी। इसी कारण चीन ने भारत के साथ यह स्वीकार किया है कि दोनों देश डोकलामा सीमा से अपनी-अपनी सेनाएं हटा लेंगे। भारत के लिए यह कूटनीतिक जीत इसलिए भी है, क्योंकि भारत पहले भी चीन को दोनों सेनाओं के पीछे हटने का प्रस्ताव रख चुका था। चीन ने उस वक्त भारत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था और कहा था कि भारत बिना किसी शर्त के अपनी सेना को पीछे हटाए।
अब जब दोनों देश डोकलाम से सेनाए हटाने पर राजी हो गए हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए की 3 से 5 सितंबर तक होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन में पीएम मोदी व चिनफिंग के बीच मुलाकात अच्छी रहेगी। बता दें कि पिछले दिनों चीन की चेतावनी के बीच एनएसए अजीत डोभाल ने बीजिंग की दो दिनों की यात्रा की थी। ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में अतंरराष्ट्रीय आतंकवाद पर चर्चा हुई थी। लेकिन इसके इतर चीन के राष्ट्रपति चिनफिंग और एनएसए डोभाल के बीच बातचीत भी हुई। उम्मीद के मुताबिक डोकलाम मुद्दे पर दोनों पक्षों ने अपनी राय जाहिर की, लेकिन उस समय कुछ खास उपलब्धि सामने निकल कर नहीं आई थी। अब जो चीज निकलकर आयी है उसे एनएसए डोभाल की यात्रा की सफलता भी माना जा रहा है। डोकलाम का मामला चीन के राजनैतिक नेतृत्व के लिए लगातार मुश्किल होता जा रहा था। ईस्ट और साउथ चाइना सी में चीन लगातार अंतरराष्ट्रीय दबाव को खारिज कर अपनी मनमर्जी चलाता है। लेकिन भारत पर वो अपना दबाव नहीं बना पाया। डोकलाम इलाके से भारत एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं था। इस साल के अंत तक चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का एक अहम सम्मेलन भी होने वाला है। चीनी विश्लेषकों का कहना था कि पार्टी में एक धड़ा ऐसा है, जो सैन्य हस्तक्षेप के जरिए डोकलाम मुद्दे का हल निकालने की मांग कर रहा था। इस वजह से चिनफिंग पर दबाव बढ़ गया था।