जयपुर। पाकिस्तानी लोक गायिका रेशमा और आध्यात्मिक कवि मीरा बाई जिनकी भक्तिपूर्ण रचनाएं राजस्थान के विभिन्न इलाकों में नित गूंजती है, की भावनाओं में ज्यादा अंतर नहीं हैं। यह विचार कस्तूरबा गांधी नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट की ट्रस्टी और महात्मा गांधी की पौत्री डॉ. तारा गांधी भट्टाचारजी ने आज यहां डिग्गी पैलेस में चल रहे पांचवे दक्षिण एशियाई सूफी फेस्ट के पहले दिन अपने संबोधन में कहे।
तीन दिवसीय इस फेस्टिवल के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में सूफीवाद पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक बेहद सुन्दर सम्मेलन है जिसमें विभिन्न देशों के प्रतिभागी और राजस्थान के लोग हिस्सा ले रहे हैं, उन्होंने जयपुर को एक जादुई और सुन्दर शहर बताते हुए कहा कि राजस्थान में मीरा बाई और अन्य सूफी कवियों की गूंज एक समान दिखाई देती है। रेशमा के बारे भी मेरा यही विचार है। मुझे नहीं लगता कि रेश्मा की मखमली आवाज और मीरा की भक्तिपूर्ण रंचनाओं में कोई भिन्नता है। फोसवाल की अध्यक्ष, पद्मश्री अजीत कौर की ओर मुखातिब होते हुए भट्टाचारजी ने कहा कि यह कॉन्फ्रेंस हमेशा उन्हें सूफी की दिव्य परम्पराओं और स्वयं के बारे में अधिक से अधिक जानने के लिए प्रेरित करती रही है। इसकी कोई गुंजाइश नहीं कि हम यह कह सके हैं कि सूफीज्म से हमारा कोई संबंध नहीं। जब मैं सूफीवाद को देखती हूं तो, मैं ऐसा महसूस करती हूं कि जैसे कस्तूरी की सुगन्ध की तलाश में कोई हिरण भटक रहा हो, जबकि यह उसी में व्याप्त है। यह बात उन्होंने शोधार्थियों, कवियों और लेखकों को सम्बोधित करते हुए कही उनका कहना था कि जिस प्रकार हिरण को अपने भीतर व्याप्त इस सुगन्ध का पता नहीं होता, ठीक उसी प्रकार सूफी या भक्ति रचना में कितनी गहराई है यह इसके प्रस्तुतकर्ता को नहीं होती क्यों कि वह इसमें इतना तल्लीन रहता है, कि वह स्वयं अपनी दिव्यता को नहीं देख पाता।
सूफी यात्रा को एक आत्म दर्शन या स्वयं की खोज के रूप में निरूपित करते हुए भट्टाचारजी ने अपने पितामह महात्मा गांधी की मान्यताओं और विश्वास का उल्लेख भी किया। उन्होंने विस्तार से स्पष्ट करते हुए कहा कि इस संकल्पना को गांधी जी से जोड़ा जा सकता है। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ 14 वर्र्ष की आयु तक व्यतीत किए गए क्षणों को भी याद किया। इस कॉन्फ्रेन्स के बारे में मीडिया के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा स्वच्छता या शुचिता गांधी जी से स्पष्ट वादिता की तरह से जुडे़े थे। गंगा प्रदूषित नहीं है, लेकिन यह हमारी मानसिकता है। हम अपने देश के शहरों को प्रदूषित कर रहे हैं। अपनी बात जारी रखते हुए भट्टाचार्जी ने कहा कि स्वच्छता का दायित्व अकेली सरकार पर ही नहीं यह पूरे देश की जिम्मेदारी है कि वे अपने शहर को स्वच्छ रखें। इससे पूर्व उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए फोसवाल की अध्यक्ष, पद्मश्री अजीत कौर ने कहा कि फोसवाल आठ सार्क देशों में एकमात्र शीर्ष संगठन है जो कि सार्क के बैनर तले सार्क देशों में साक्षरता और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आदान-प्रदान कर रहा है। हमारा मुख्य ध्यान विशेष तौर पर उन विषयों पर आधारित है जिसने हमें सांस्कृतिक तौर पर बांधे रखा है। इसने हमें जीवन की गहरी समझ दी है, प्यार और करूणा प्रदान की है। सुलह, समझ और दूसरों की विभिन्नता के बारे मे ंउन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति मुसलमान, हिन्दू, सिख, क्रिश्चयन, यहूदी होते हुए सूफी भी हो सकता है क्यों कि सूफीवाद मन की एक उच्च अवस्था है जहां प्रेम और शान्ति के लिए वैचारिकता होते हुए मन पूर्णतया प्रेममय हो।
बाद में मीडिया के इस सवाल का जवाब देते हुए कि पाकिस्तानी प्रतिनिधि दो वर्षों से इस आयोजन से अनुपस्थित क्यों है, कौर ने कहा कि यह एक राजनीतिक मसला है, जिसका इस सम्मेलन से कोई संबंध नहीं है। इस आयोजन मेजबान राम प्रताप डिग्गी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा उन्हें इस फेस्ट में प्रख्यात लोगों के शिरकत करने पर बहुत खुशी हो रही है। हमारा लगातार यही प्रयास रहा है कि यहां ऐसे लोगों को मंच उपलब्ध हो सके और वे यहां एकत्रित होकर अपने विचारों को परस्पर साझा कर सकें। सूफी फेस्टिवल की प्रासंगिकता पर उनका कहना था कि प्रत्येक देश की अपनी समस्या है और अब हर मनुष्य यह मानने लगा है कि इसका एक मात्र हल भाईचारा और सुफीवाद पर विष्वास करना है। जयपुर के महापौर अशोक लाहोटी को सूफी फेस्टिवल के प्रतिभागियों को गुलाबी शहर अधिक से अधिक जानने के लिए आमंत्रित किया क्यों कि यह शहर नियोजन एवं स्थापत्य का अनूठा उदाहरण है। उन्होंने जयपुर के स्थापना दिवस पर सूफी नाइट कराने का विचार व्यक्त किया जिसमें शहर युवाओं को सूफीवाद सिद्धांतों से परिचित करवाया जा सके।