– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। मो ती डूंगरी गणेशजी मंदिर के पास ही संगमरमर से निर्मित भव्य लक्ष्मीनारायण मंदिर जयपुरवासियों के साथ पर्यटकों के बीच भी आकर्षण और आस्था का केन्द्र है। राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले देश के प्रमुख औद्योगिक घराने बिडला परिवार ने यह भव्य मंदिर बनाया है। इसलिए इसे बिडला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी को समर्पित है। इस मंदिर में विराजित भगवान विष्णु व लक्ष्मी की प्रतिमा एक ही संगमरमर के पत्थर से तराशा गया है। जिसकी ऊंचाई साढ़े सात फीट है। आदमकद की यह प्रतिमा खड़ी मुद्रा में है। इस वजह से भगवान लक्ष्मीनारायण के दर्शन मंदिर परिसर के बाहर से भी किए जा सकते हैं। मंदिर की भवन निर्माण शैली व दीवारों पर उत्कीर्ण चित्र भी आकर्षित करते हैं। दिन में संगमरमर का यह मंदिर श्वेत कमल की तरह खिला हुआ नजर आता है, वहीं रात की रोशनी में इसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है। मंदिर मुख्य रूप से दक्षिण शैली में बना है। गर्भग्रह के सामने बने हॉल के दीवारों पर बनी प्रतिमाएं व शीशे पर रंगीन कारीगरी देखने वालों का मन मोह लेती है। दक्षिण शैली के इस मंदिर की निर्माण व कारीगरी मनमोहक व आकर्षक है। मंदिर शहर के प्रमुख रमणीय स्थलों में से एक है। अस्सी के दशक में इस मंदिर का निर्माण गंगाप्रसाद बिडला ने हिन्दुस्तान चैरिटी टÓस्ट के माध्यम से करवाया। करीब पचपन हजार वर्गफुट क्षेत्र में निर्मित यह मंदिर पूर्णतया वातानुकूलित है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भगवान गणेशजी की सुंदर प्रतिमा है, जिसके पारदर्शी संगमरमर को आर-पार भीतर से देखा जा सकता है। मंदिर के तीसरे गुंबद की छत पर योगिनियां विराजमान है। मंदिर का प्रमुख आकर्षण है चार हजार फीट का सभामंडप, जो बिना किसी स्तंभ के खड़ा है। मंदिर के दूसरे गुम्बद की ऊंचाई बत्तीस फुट है, जिसके मध्य में संगमरमर के पत्थर का वजन दो टन है। लक्ष्मीनारायण मंदिर की स्थापत्य कला और अनूठी छवि ही भक्तों व दर्शनार्थियों को सहज ही खींच लाती है। मंदिर में प्रवेश के दो रास्ते हैं। एक रास्ता मोती डूंगरी गणेश मंदिर की ओर से है। गणेश जी के दर्शन के बाद वहां से भक्त बिडला मंदिर जरुर आते हैं। वहीं मंदिर परिसर में हैण्डीक्राफ्ट दुकानों के पास दूसरा रास्ता है, जो बाग बगीचों के बीच से मंदिर तक जाता है। यह रास्ता एक पुल की तरह है जिसके नीचे नाले में से बरसाती पानी का निकास होता है। वहीं मंदिर के बाहर परिक्रमा मार्ग और बाहरी परिसर भी खूबसूरत है।
आकर्षित करती है चित्रकारी
मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर उसकी दीवारों को देखने पर ऐसा लगता है, जैसे किसी महल में आ गए हैं। दीवारों पर उत्कीर्ण कांच बेल्जियम के हैं। मंदिर की दीवारों पर लगे सुंदर व भव्य कांच बेल्जियम के हैं। इन पर हिन्दु देवी-देवताओं के सुंदर चित्रों का अंकन है। इनकी खासियत यह है कि इन चित्रों को अंदर और बाहर दोनों तरफ से देखा जा सकता है। लक्ष्मीनारायण भगवान की मूर्ति को बहुत की बारीकी कलाकारी से बनाया गया है। मूर्ति सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित रहती है और सिर पर सुन्दर मुकुट है। बृहस्पतिवार को विशेष रूप से पीले वस्त्रों से मूर्ति को सजाया जाता है। मंदिर में चारों ओर हरियाली के लिए उद्यान बना हुआ है। दीवारों पर सभी चित्र खोदकर उकेरे गए हैं और ये चित्र किसी न किसी झांकी को सरोकार किए गए है। यहां मूर्तियों को छूना सख्त मना है। आजादी के बाद जयपुर का यह सबसे भव्य और सुन्दर मंदिर है, जिसे देखने के लिए हर साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। मंदिर के विशाल परिसर में फैला उद्यान दर्शनार्थियों को आकर्षित करता है। गर्भग्रह के सामने बड़ा हॉल है। हॉल पर दीवारों पर बनी प्रतिमाएं और शीशे पर रंगीन कारीगरी मन मोह लेती है। इस मंदिर के तीन गुंबद हैं जो धर्म के प्रति तीन दृष्टिकोण को दिखाते हैं। मंदिर की आंतरिक सज्जा हिंदू देवी देवताओं के पौराणिक चित्रों से की गई है। यहां संगमरमर की एक विशाल दीवार है जिस पर कई पौराणिक घटनाएं दर्शाई गई हैं। मंदिर का बाहरी हिस्सा भी इसके आंतरिक हिस्से जितना ही सुंदर है। यहां कई महापुरुषों, दार्शनिकों और बड़ी हस्तियों के चित्र भी हैं।