– राजेन्द्र राज
जयपुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों पर देश के अवाम का एक बड़ा तबका मोहित है। परेशानियों के बावजूद भी वह मोदी के समर्थन में खड़ा है। यह मोदी की बड़ी उपलब्धि हैं। हालांकि उनकी नीतियां भारतीय जनता पार्टी पर भारी पड़ रही हैं। इनकी नीतियों से पार्टी का मूल कार्यकर्ता अन्दर ही अन्दर तिलमिलाने लगा है। सार्वजनिक रूप से भले ही मोदी की नीतियों की प्रशंसा करे। लेकिन, दिल से वह जलभुन रहा है। उससे ना उगला जा रहा है और ना निगला। मजबूरीवश वह अपने रोष और दर्द को उजागर भी नहीं कर पा रहा है। लेकिन, मोदी इससे विचलित नहीं हैं। क्योंकि वे अपना नया जनाधार बनाने की ओर अग्रसर है। भाजपा को बनिये – बामनों और व्यापारियों की पार्टी कहा जाता रहा हैं। व्यापरियों में भी खासतौर पर छोटे दुकानदार भाजपा की रीढ माने जाते रहे है। सम्भवतया, इसी कारण पार्टी ने जब भी बाजार बंद की घोषणा की उसे उसमें सफलता ही मिली। लेकिन, बहुमत से सत्तारूढ़ हुए नरेन्द्र मोदी की नीतियों का सबसे पहले कुल्हड़ा इसी वर्ग के हितों पर पड़ा। जो काम कांग्रेसनीत संयुक्त पार्टी गठबन्धन – यूपीए – अपने दस साल के कार्यकाल में नहीं कर सका। मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के तुरन्त बाद
ई काॅमर्स कम्पनियों में सौ फीसदी विदेशी निवेश की अनुमति देकर कर दिया।
-ई काॅमर्स से प्रभावित दुकानदार
भाजपा की दिल्ली इकाई के कोषाध्यक्ष रहे प्रवीण खन्डेलवाल जो छोटे दुकानदारों के राष्ट्र्ीय संगठन के अध्यक्ष है। कांग्रेस शासन काल में ई काॅमर्स कम्पनियों में सौ फीसदी विदेशी निवेश के खिलाफ झंडा बुलन्द करते रहे। उनका आरोप था कि विदेशी कम्पनियों को आॅन लाइन कारोबार की छूट देने से देश में बेरोजगारी को बढ़ावा मिलेगा। लाखों की संख्या में फुटकार दुकानदार बर्बाद हो जाएंगे। अपनी मांग के समर्थन में उन्होंने लम्बा आंदोलन चलाया। इस मांग को लेकर कई बार बाजार बंद किया गया। इसका भाजपा ने भी समर्थन किया। लेकिन, सरकार बनने के कुछ महीने बाद ही देश में इसके लिए माहोल बनाया गया। अपने भाषणों में मोदी ने यह सन्देश दिया कि विदेशी निवेश को अनुमति दिया जाना देश हित में है। इससे ही देश में नई तकनीकी को आकर्षित किया जा सकेगा। आगे चलकर इससे रोजगार बढ़ेंगे। फुटकार दुकानदार और उनके अधिकतर पदाधिकारी जो भाजपा से ही जुड़े हुए थे ने सरकार के आदेश की खिलाफत की। लेकिन, उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की मानिन्द दब के रह गई। देशहित की बलिवेदी पर उन्हें शांत कर दिया गया।
– स्वर्ण कारोबारियों ने टेके घुटने
मोदी सरकार ने दूसरा फैसला जेवरात व्यवसाय के संबंध में लिया। इस व्यवसाय से जुड़े अधिकतर कारोबारियों का समर्थन अतीत में भाजपा को मिलता रहा है। पिछली कांग्रेसनीत सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री और मौजूदा राष्ट्र्पति प्रणब मुखर्जी चाहते थे कि जेवरों के कारोबार पर कर लगाया जाए। साथ ही सोने की खरीद फरोख्त को पारदर्शी बनाया जाए। ताकि सोने के कारोबार में खपने वाले कालेधन पर रोक लग सके। वहीं, सोने के आयात को कम किया जा सके। इस भावना से मुखर्जी ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए। आदेश की खिलाफत होनी थी, जो हुई। स्वर्ण कारोबारियों के आंदोलन पर सरकार ने घुटने टेक दिए। मात्र 21 दिन चले आंदोलन के बाद सरकार ने आदेश वापस ले लिया।
-कालेधन का कालिया
यह सर्वविदित हैं कि देश में काले धन की सबसे अधिक खपत जमीन और सोने की खरीद में ही होती है। कांग्रेस के पिछले दस साल में हुए अनेक घोटालों ने काले धन को बहुत बड़ी तादाद में पैदा किया। कांग्रेस सरकार पर कालेधन को लेकर चहुं तरफा हमले हुए। उच्चतम न्यायालय ने भी इस पर संज्ञान लिया। और इस संबंध में विशेष जांच दल गठित करने के आदेश जारी किए। कांग्रेस इस आदेश पर कुण्डली मार कर बैठ गई। मोदी तो कालेधन के कालिया नाग को कुचलने के घोड़े पर सवार होकर ही सरकार में आए थे। सो, सरकार बनते ही उन्होंने विशेष जांच दल का गठित कर अवाम की वाहवाही लूट ली। इससे वे यह सन्देश देने में कामयाब हो गए कि वे काले धन को गले से निकालने को आतुर है। इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए मोदी ने अपने शासन के दूसरे वर्ष सोने में खप रहे काले धन को रोकने की मंशा से कार्यवाही शुरू की। सरकार ने जेवरातों की खरीद पर एक फीसदी कर और दो लाख से अधिक का सोना खरीदने पर पैन कार्ड की अनिवार्यता के आदेश जारी किए। व्यापारियों को उम्मीद थी कि पिछली सरकार की भांति मोदी सरकार भी उनके आंदोलन से डर कर पुनः मूसको भववे की मुद्रा अपनाने को मजबूर हो जाएगी। लेकिन, वक्त ने बताया, ऐसा नहीं हुआ। जेवरात कारोबारियों ने भारत बंद कराने के साथ ही 43 दिन तक दुकान और कारोबार बंद रखा। लेकिन, सरकार अपनी पर अड़ी रही। मजबूरन आंदोलनकारियों को सरकार की मंशा के अनुरूप व्यवसाय करने का फैसला लेना पड़ा। सरकार ने इसे काले धन को समाप्त करने की अपनी मुहिम का एक कदम बताया। जनता में मोदी सरकार की फिर वाहवाही हुई।
-खुशहाल जनता
काले धन की रोकथाम की मुहिम में मोदी सरकार ने हाल ही एक और एतिहासिक फैसला किया है। इस फैसले से भी शुरूआती झटके तो व्यापारी वर्ग को ही सहन करने पड़ रहे है। हो सकता है, इसके दूरगामी लाभ हो। प्रधानमंत्री मोदी ने आठ नवम्बर की रात आठ बजे एक घोषणा कर देश को चकित कर दिया। उन्होंने ऐलान किया कि आधी रात के बाद से पांच सौ और एक हजार रुपए के नोटों का चलन अवैध होगा। सरकार के इस फैसले ने देश की अर्थव्यवस्था को झकझौर दिया है। देश और दुनिया के अर्थशास्त्री इसके अल्पाकालीन और दीर्घकालीन नफा – नुकसान के कायस लगा रहे है। सरकार कभी गद्गद् तो कभी चितिंत मुद्रा में नजर आती है। लेकिन, व्यापारी तो चितिंत ही नजर आ रहा है। यह वहीं वर्ग है जिसे कांग्रेस सहित अनेक दल अबतक भाजपा का समर्थक मानकर गाली देते रहे है। अब यह और बात है कि इस वर्ग को दर्द अपने यानी भाजपा ही दे रही है। लेकिन, जनता इसे भ्रष्टाचारियों और काले धन के प्रति मोदी सरकार का क्रांतिकारी कदम मान रहीं है। इस के चलते नगदी की कमी से होने वाली परेशानियों को सहजता से ले रही है।
मोदी सरकार के कुछ फैसलों से भले ही भाजपा के मूल जनाधार को झटका लगा हो। लेकिन, देश के लिए त्याग करने के जज्बे के ज्वार से मोदी ने अपने लिए नया जनाधार तैयार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा दिए है। नए साल में मोदी सरकार एक और एतिहासिक कानून लाने वाली है। एक देश, एक कर की अवधारणा पर यह है सेवा एवं सामान कर। इसे आम बोलचाल में जीएसटी कहा जाता है। इसकी मार भी व्यापारियों पर ही पड़ने वाली है। यहीं वर्ग अब तक भाजपा के लिए धन जुटाने और भारत बंद कराने में अग्रणी रहता रहा है। व्यवसायियों को भले ही इससे नुकसान हो, लेकिन जनहित में यह बड़ा फैसला होगा। मोदी समर्थक जनता को यह सन्देश देने में सफल हो रहे हैं कि रियासतों के विलय कर सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिस तरह देश को एक सूत्र में बंाधकर मजबूत किया है। वैसा ही जीएसटी कानून को लागू कराने से होगा। ऐसी ही अवधारणाओं की बुनियाद पर मोदी अपने लिए देश में एक नया जनाधार खड़ा कर रहे है।
– लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।