Notice to Center and Election Commission of the Supreme Court on petition for preventing guilty persons from running political parties

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दोषी व्यक्तियों को चुनाव कानून के तहत अयोग्यता की अवधि में राजनीतिक दलों
का गठन करने और उसके पदाधिकारी बनने से रोकने के लिये दायर याचिका पर आज केन्द्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किये। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की पीठ ने यह सवाल करते हुये कि क्या न्यायालय किसी व्यक्ति को अपने राजनीतिक विचार व्यक्त करने से रोक सकता है, जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए की सांविधानिक वैधता पर विचार के लिये सहमत हो गया। यह धारा निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दल को पंजीकृत करने के अधिकार से संबंधित है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और साजन पूवैया ने पीठ को सूचित किया कि इस योजना के तहत निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों को पंजीकृत करने का अधिकार है परंतु जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत उसे राजनीतिक दल का पंजीकरण खत्म करने का अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि वह एक राजनीतिक दल के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों के बारे में किसी दोषी व्यक्ति को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से वंचित करने के खिलाफ है। पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या अदालत किसी दोषी व्यक्ति को राजनीतिक दल गठित करने से रोक सकती है? क्या आप किसी व्यक्ति को अपने राजनीतिक विचार व्यक्त करने से रोक सकते हैं? इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि इस मामले में छह सप्ताह बाद सुनवाई की जायेगी।

न्यायालय ने केन्द्र और निर्वाचन आयोग को वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी करते हुये सवाल किया,‘‘निर्वाचन आयोग को सिर्फ राजनीतिक दल का पंजीकरण करने का ही अधिकार क्यों दिया गया है।
इस पर उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि यदि आपराधिक मामले में एक व्यक्ति को चुनाव लडने से वंचित किया जा सकता है तो ऐसे व्यक्ति को राजनीतिक दल गठित करने या उसका मुखिया बनने की अनुमति देना अनुचित होगा। याचिका में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए को मनमाना, तर्कहीन और संवैधानिक घोषित करने और निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दल को पंजीकृत करने और उसका पंजीकरण खत्म करने का अधिकार देने का अनुरोध किया गया है।

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