High Court

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने 72 वर्षीय एक व्यक्ति को हिरासत में रखने और मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) और मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट की खिंचाई की। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की एक पीठ ने निचली अदालत के न्यायाधीश और अन्य की निंदा करते हुए मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेशों को खारिज कर दिया और निर्देश दिया कि यदि व्यक्ति ऐसी हालत में है कि उसे अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है तो उसे देखभाल के लिए उसके परिवार के पास छोड़ दिया जाये। अदालत इस व्यक्ति के पुत्र द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई कर रही थी। उसके पुत्र ने आरोप लगाया है कि उसके पिता को कथित रूप से अवैध हिरासत में रखा गया।

यह व्यक्ति रोहिणी अदालत में मोटर दुर्घटना दावा प्राधिकरण (एमएसीटी) के समक्ष एक दावा याचिका का बचाव कर रहा था। तीन नवम्बर को मामला रोहिणी अदालत में सूचीबद्ध हुआ। उसके और दूसरे पक्ष के वकीलों के बीच कुछ कहासुनी होने के कारण पुलिस को बुला लिया गया और व्यक्ति को चिकित्सा जांच के लिए बाबा साहेब अम्बेडकर (बीएसए) अस्पताल ले जाये जाने का निर्णय लिया गया। व्यक्ति को शाम तक बीएसए अस्पताल में रखा गया और इसके बाद उसे ड्यूटी मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (एमएम) के समक्ष पेश किया गया जिन्होंने उसे 24 घंटे की निगरानी में इहबास भेजने का आदेश दिया। व्यक्ति के परिवार को इस संबंध में सूचित नहीं किया गया और उन्हें हिरासत में रखा गया। इसके बाद पांच नवम्बर को पारित एक अन्य आदेश में ड्यूटी एमएम ने निर्देश दिया कि व्यक्ति को 15 दिनों के लिए भर्ती किया जाये।

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