ढाका। बांग्लादेश और म्यांमा ने आज फिर से पुष्टि की कि बांग्लादेश में रह रहे रोहिंग्या समुदाय के सदस्य जनवरी से वतन वापसी शुरू करेंगे। हालांकि मानवाधिकार समूहों ने चेताया है कि उनके लौटने पर उनकी सुरक्षा का आश्वासन नहीं दिया गया है।बांग्लादेश और म्यांमा के विदेश सचिवों की यहां ढाका में मुलाकात हुई। वे 23 नवम्बर को हस्ताक्षर किए गए समझौते को अंतिम रूप देने के लिए मिले थे जिसमें सरहद से सटे इलाकों में स्थित शरणार्थी शिविरों में रह रहे राज्यविहीन रोहिंग्या समुदायों के सदस्यों के स्वेच्छा से लौटने की बात है।बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि एक नया कार्य समूह शराणर्थियों की पहचान की सत्यापन करने के लिए एक समय सारणी बनाकर दो महीने के अंदर उनके देश लौटने की कवायद शुरू करना सुश्चित करेगा।बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए.एच महमूद अली ने मुलाकात के बाद संवाददाताओं से कहा कि अब हम अपने कार्य का अगला कदम शुरू करेंगे।
यह बयान ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ द्वारा उपग्रह तस्वीरों का विश्लेषण जारी करने के एक दिन बाद अया है। इस मानवाधिकार समूह ने उपग्रह की तस्वीरों के हवाले से कहा है कि उनके देश वापस लौटने को लेकर बांग्लादेश के साथ समझौते पर दस्तख्त होने के कुछ ही दिनों के अंदर म्यांमा की सेना ने रोहिंग्या समुदाय के दर्जनों घरों को जला दिया है।मनावाधिकार संगठन ने कहा है कि समझौता एक दिखावटी कदम है और चेताया है कि इसमें रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों के म्यांमा के संघर्ष प्रभावित रखाइन राज्य में लौटने पर उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं दी गई है। अगस्त में राज्यविहीन अल्पसंख्यक समुदाय के अनुमानित 655,000 सदस्य शराणर्थी के तौर पर बांग्लादेश आ गए थे। रखाइन में म्यांमा सेना की कार्रवाई को अमेरिका एवं संयुक्त राष्ट्र ने जातीय सफाया बताया है।