नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने आप विधायकों को राहत देने के लिये कोई भी अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया। चुनाव आयोग ने कथित तौर पर लाभ का पद रखने के लिये इन विधायकों को अयोग्य ठहराने की सिफारिश राष्ट्रपति को की है। उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से उसे 22 जनवरी तक सूचित करने को कहा कि क्या विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिये राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कोई अंतिम पत्र भेजा गया है। यह आदेश तब दिया गया जब चुनाव आयोग के वकील अमित शर्मा ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि क्या राष्ट्रपति को कोई सिफारिश भेजी गई है। जब अदालत ने उनसे चुनाव आयोग से इसका पता लगाने को कहा तो उन्होंने कहा कि इस समय वह उनसे संपर्क नहीं कर पा रहे हैं।
चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति को आप के 20 विधायकों को अयोग्य ठहराने की सिफारिश की है। इन विधायकों को दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने संसदीय सचिव नियुक्त किया था। सुनवाई के दौरान अदालत ने साफ कर दिया कि वह चुनाव आयोग के समक्ष सुनवाई के दौरान विधायकों के आचरण के मद्देनजर कोई अंतरिम आदेश देने नहीं जा रही है। अदालत इस बात से नाखुश थी कि विधायकों ने चुनाव आयोग से कहा कि वह मामले में आगे नहीं बढ़े क्योंकि इस मुद्दे को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आपके पास उच्च न्यायालय से रोक नहीं है, लेकिन आपने चुनाव आयोग से कहा कि वह मामले को नहीं छुए क्योंकि इस मामले पर उच्च न्यायालय विचार कर रहा है।’’ न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आपका आचरण इस तरह का है कि आपने चुनाव आयोग के पास जाने का खयाल नहीं रखा। उच्च न्यायालय ने आपको चुनाव आयोग के पास जाने से नहीं रोका था।’’ न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आपने उच्च न्यायालय में अपनी याचिकाओं के लंबित होने को कवच के तौर पर इस्तेमाल किया है।’’ अदालत पिछले साल अगस्त में विधायकों द्वारा दायर याचिकाओं का उल्लेख कर रही थी। इन याचिकाओं में विधायकों ने कथित तौर पर लाभ के पद पर उनके रहने के खिलाफ शिकायत पर सुनवाई जारी रखने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी थी।
अयोग्य ठहराए गए विधायकों में से एक शरद कुमार की तरफ से अधिवक्ता मनीष वशिष्ठ ने अदालत से कहा कि उन्हें अयोग्य ठहराने का फैसला करने से पहले चुनाव आयोग ने उनका पक्ष नहीं सुना। उन्होंने यह भी कहा कि अब तक चुनाव आयोग ने पिछले साल अगस्त में दायर उनकी याचिकाओं पर जवाब दाखिल नहीं किया है। अदालत ने तब आयोग के वकील से पूछा कि क्यों उसने अब तक कोई जवाब नहीं दाखिल किया है। अदालत ने कहा, ‘‘इसमें 20 लोग शामिल हैं। आप कैसे इसे इतने हल्के में ले सकते हैं।’’ इसके बाद चुनाव आयोग ने कहा कि मुख्य याचिका के संबंध में दो हफ्ते में जवाब दाखिल किया जाएगा। इसी मुख्य याचिका में आज आवेदन दिया गया। इस आवेदन में विधायकों ने चुनाव आयोग की उस सिफारिश को चुनौती दी है जिसमें उसने राष्ट्रपति से उन्हें अयोग्य ठहराने की राय दी है।
चुनाव आयोग द्वारा उन्हें अयोग्य ठहराने की सिफारिश करने के कुछ ही घंटे बाद प्रभावित विधायकों ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अविलंब सुनवाई के लिये आवेदन का उल्लेख किया। उन्होंने न्यायमूर्ति पल्ली के समक्ष सुनवाई के लिये मामले को सूचीबद्ध कर दिया। मामले पर सुनवाई शाम करीब साढ़े पांच बजे शुरू हुई। इससे पहले दिन में चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति को आप के 20 विधायकों के कथित तौर पर लाभ का पद रखने को लेकर अयोग्य ठहराने की सिफारिश की थी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजी गई अपनी राय में चुनाव आयोग ने कहा कि संसदीय सचिव होने के नाते इन विधायकों ने लाभ का पद रखा और वे दिल्ली विधानसभा के विधायक के पद से अयोग्य ठहराए जाने के योग्य हैं।
आप के 21 विधायकों के खिलाफ चुनाव आयोग में याचिका प्रशांत पटेल नाम के एक व्यक्ति ने दायर की थी। इन विधायकों को दिल्ली की आप सरकार ने संसदीय सचिव नियुक्त किया था। जरनैल सिंह के खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी गई थी क्योंकि उन्होंने पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिये राजौरी गार्डन के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। जिन 20 विधायकों को अयोग्य ठहराया जाना है उसमें आदर्श शास्त्री :द्वारका:, अल्का लांबा : चांदनी चौक:, अनिल बाजपेयी : गांधी नगर:, अवतार सिंह :कालकाजी:, कैलाश गहलोत :नजफगढ़:, मदन लाल :कस्तूरबा नगर:, मनोज कुमार :कोंडली:, नरेश यादव :मेहरौली:, नितिन त्यागी :लक्ष्मी नगर:, प्रवीण कुमार :जंगपुरा: शामिल हैं। गहलोत अब दिल्ली सरकार में मंत्री भी हैं।
इनके अलावा राजेश गुप्ता :वजीरपुर:, राजेश ऋषि :जनकपुरी:, संजीव झा : बुराड़ी:, सरिता सिंह : रोहतास नगर:, सोमदत्त :सदर बाजार:, शरद कुमार :नरेला:, शिवचरण गोयल :मोती नगर:, सुखबीर सिंह : मुंडका:, विजेंद्र गर्ग :राजेंद्रनगर: और जरनैल सिंह :तिलक नगर: भी शामिल हैं। इन विधायकों ने अपने आवेदन में दावा किया है कि चुनाव आयोग के समक्ष मामले के गुण-दोष पर कोई सुनवाई नहीं हुई है और शिकायतकर्ता प्रशांत पटेल ने भी कोई साक्ष्य नहीं दिया है और न ही चुनाव आयोग के समक्ष याचिकाकर्ताओं को कोई अवसर दिया गया।