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जयपुर. आज के समय में देष का किसान-मजदूर और मध्यम वर्ग पूंजीवाद तथा साम्प्रदायिकता से उत्पीड़न झेल रहा है। इस स्थिति से जूझने के लिए एकजुट होकर संघर्ष के लिए खड़े होने की जरूरत है। प्रो. चमन लाल ने जन साहित्य पर्व के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुये यह बात कही। वक्ताओं ने अन्याय और शोषण के खिलाफ प्रतिरोध के स्वर को मुखर करने और आम समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की विचारधारा का प्रसार करने पर जोर दिया।

जयपुर में पहले जन साहित्य पर्व का आयोजन राजस्थान विष्वविद्यालय के देराश्री षिक्षक सदन में बुधवार को शुरु हुआ। साहित्य की जन पक्षधरता को केंद्र में रखकर आयोजित किये गये यह पर्व फासीवादी एवं साम्प्रदायिक वर्ग द्वारा पूंजी के बल पर साहित्य की जन चेतना को स्थगित करने प्रयास का प्रतिवाद है। इसमें दो दिनों तक साहित्य, सिनेमा, कला, इतिहास और संस्कृति से जुड़े दिग्गज लेखक कलाकर एवं बुद्धिजीवी भाग ले रहे हैं। डाॅ. जीवन सिंह ने साहित्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का निडर पक्षधर बताते हुए कहा कि प्रतिरोध जीवन और साहित्य का आवष्यक अंग है। लेकिन यह समझना और जानना जरूरी है कि प्रतिरोध का पक्ष और प्रतिपक्ष क्या है।
कवियत्री कात्यायनी ने साहित्य के जीवन से जुड़ाव और इसकी प्रवृति की व्याख्या करते हुये कहा कि वर्तमान में यथार्थ को छुपाने के लिये साहित्य का आवरण ओढ़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि जीवन की वास्तविकताओं को सही रूप में समाज के सामने प्रस्तुत करने के लिए हमें प्रतिरोध का साहित्य चाहिये। नाट्यकर्मी रणवीर सिंह ने समाज में प्रतिरोध को नाटक के माध्यम से स्वर देने की बता कही।

दूसरे सत्र में ‘जन प्रतिरोध का इतिहास’ विषय पर बोलते हुये दिल्ली विष्वविद्यालय के आषुतोष कुमार ने कहा कि साम्प्रदायिकता जातिवाद का ही घृणित रूप है। उन्होंने प्रतिरोध के पुराने तरीकों के बजाय नये वैज्ञानिक प्रतिरोध पर जोर दिया। समाजषास्त्री प्रो. प्रदीप भार्गव ने कहा कि सिमित संसाधनों के साथ जीवन जीना भी पूंजीवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक तरीका है। उपन्यासकार हरिराम मीणा ने वर्चस्वकारियों के खिलाफ उत्पीड़न की आवाज़ एक व्यक्ति से शुरू होकर ही सामूहिक रूप लेती है।
तीसरे सत्र ‘बात बालेगी’ में बालते हुये डाॅ. घासीराम चैधरी ने कहा कि न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए हमें देष की जनता को षिक्षित करना होगा। दिल्ली विष्वविद्यालय के डाॅ. राजीव कुंवर ने उम्मीद की डोर को संघर्ष और विचार से जोड़ने की बात कही। सामाजिक कार्यकर्ता भवंर मेघवंषी ने जातिवाद को मिटाकर एक समतामूलक समाज बनाने की जरूरत बताई। कवियत्री कविता कृष्ण पल्लवी जनांदोलनों के वैकल्पिक माध्यमों का आवष्यक बताया। स्नेहलता ने आज लोकतांत्रिक समाज में भी स्त्री के लिए प्रतिरोध के स्थान के अभाव की बात कही।

दूधनाथ सिंह स्मृति सभागार में उद्घाटन सत्र आयोजित हुये। इसके समानांतर हरीष भादानी लाॅन में दिनभर चित्रकारों ने लाइव पेंटिंग की। पहले दिन के अंतिम सत्र में कात्यायनी, रामस्वरूप किसान, राघवेंद्र रावत, गोविन्द माथुर, कामेष्वर त्रिपाठी, नवनीत पाण्डे, कविता कृष्ण पल्लवी, कैलाष मनहर, रेवती रमण शर्मा, अनिल गंगल, विनोद स्वामी, प्रमोद पाठक, गंभीर पालड़ी, सूर्य प्रकाष जीनगर, देवयानी, अनीष और अवधेष ने कवितायें प्रस्तुत कीं।

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