Awarded,Rajasthani writer, Vijay Verma, bihari Award
Awarded,Rajasthani writer, Vijay Verma, bihari Award

जयपुर: के. के. बिरला फाउंडेशन द्वारा आज वर्ष 2017 के सत्ताइसवें बिहारी पुरस्कार के लिए राजस्थान के प्रसिद्ध साहित्यकार विजय वर्मा के साहित्यिक निबंध संग्रह (हिंदी) लोकावलोकन को चुना गया है। इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2016 है। इस पुरस्कार में एक प्रशस्ति पत्र, एक प्रतीक चिन्ह व दो लाख रुपये (2,000,000/-) की राशि भेंट की जाती है। यह पुरस्कार वर्ष 1991 में आरम्भ किया गया था।

राजस्थान के प्रसिद्ध लोककला मर्मज्ञ एवं प्रसिद्ध लेखक विजय वर्मा के साहित्यिक निबंध संग्रह लोकावलोकन को वर्ष 2017 के बिहारी पुरस्कार के लिए चुना गया हेै। प्रस्तुत कृति श्री विजय वर्मा द्वारा राजस्थान साहित्य और लोक संस्कृति के क्षेत्र में पिछले 50 वर्षों के बीच किए गए उनके शोध एवं विभिन्न स्त्रोतों से चयनित सामग्री का उत्कृश्ट विवेचन प्रस्तुत करती है। श्री विजय वर्मा ने अपनी इस नई कृति लोकावलोकन में राजस्थानी साहित्य और संस्कृति के अनेक महत्वपूर्ण और प्रासंगिक पक्षों पर अत्यंत विस्तार से अपना तार्किक विवेचन और विश्लेशण प्रस्तुत किया हैं। लोक को लेकर अक्सर नगर बनाम देहात की भ्रांति हो जाया करती है। इस संबंध में श्री विजय वर्मा ने सूक्ष्म विश्लेशण के द्वारा इस भ्रांति का निवारण करते हुए स्पश्ट किया है कि लोक के कस्बाई विस्तार को भी भली भांति समझना चाहिए। वह शास़्त्र और लोक के बीच कोई निश्चित विभाजन रेखा नहीं मानते जो सिद्ध करे कि यहां तक तो लोक है और यहां से आगे शास्त्र का अधिकार क्षेत्र आरंभ होता है।

विजय वर्मा लोक चेतना के बड़े मर्मज्ञ अध्येता, मीमांसक हैं और लोकावलोकन उनके लोक साहित्यिक विशयक विवेक का समग्र विवेचन प्रस्तुत करने वाली एक अनूठी कृति है। 5 अक्टूबर, 1935 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक देहात में जन्मे श्री विजय वर्मा, अपने सक्रिय जीवन के 82 बसंत पार कर चुके हैं। उनकी आरंभिक और उच्च शिक्षा इलाहाबाद के प्रयाग विश्वविद्यालय में सन् 1957 में सम्पन्न हुई, जहां से उन्होंने वर्ष के सर्वश्रेश्ठ विद्यार्थी के रूप में चांसलर्स गोल्ड मैडल हासिल किया। सन् 1958 सेे 1960 तक गोरखपुर विश्वविद्यालय और सागर विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य किया। उसी दैेरान सन् 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ और सन् 1993 तक इस सेवा के राजस्थान कैडर में कार्य करते हुए भारत के महापंजियक एवं जनगणना आयुक्त, मुख्य मंत्री के सचिव, जनजाति क्षेत्रीय एवं मरूस्थलीय विकास आयुक्त तथा जवाहर कला केन्द्र जयपुर के महानिदेशक जैसे पदों का कार्यभार संभालते हुए वे साहित्य, लोक-कला, स्थापत्य तथा भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं के गहन अध्ययन और लेखन से निरंतर जुड़े रहे। इसी लेखन-कार्य के फलस्वरूप एक काव्य-संग्रह के अलावा ’द लिविंग म्यूजिक ऑफ राजस्थान’, ’परफॉर्मिंग आर्ट्स ऑफ राजस्थान’, ’सरोकारों के रंग’, ’हिन्दी फिल्म संगीत- ’सिंहावलोकन’ और ’लोकावलोकन’ जैसी कृतियां प्रकाशित हुई। साहित्य-लेखन और लोक-कलाओं में संरक्षण ओर उन्नयन में विशिश्ट योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों और सम्मान से भी नवाज़ा गया, जिनमें प्रमुख हैं राजस्थान की साहित्य एवं संगीत नाटक अकादमियों द्वारा देवराज उपाध्याय एवं कला समग्र योगदान पुरस्कार। इनके साथ-साथ कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।

के.के.बिरला फाउंडेशन द्वारा प्रवर्तित तीन साहित्यिक सम्मानों/पुरस्कारों में से एक केवल राजस्थान के हिंदी/राजस्थानी लेखकों के लिए है। लेकिन राजस्थानी की परिभाषा में राजस्थान के मूल निवासियों के अतिरिक्त वे लोग भी आते हैं जो पिछले सात वर्षों से या और अधिक समय से राजस्थान में रह रहे हैं। पिछले दस वर्षों में प्रकाशित राजस्थान के किसी लेखक की उत्कृष्ट हिंदी/राजस्थानी कृति को प्रतिवर्ष दिया जाने वाला पुरस्कार महाकवि बिहारी के नाम पर बिहारी पुरस्कार कहलाता है। राजस्थान के साहित्यिक क्षेत्रों व अन्यत्र भी अब तक हुए निर्णयांे का अच्छा स्वागत हुआ है। इसकी पुरस्कार राशि (दो लाख) 2,00,000/- रूपए है।
बिहारी पुरस्कार के चयन का उत्तरदायित्व एक निर्णायक समिति का है जो कि बिहारी पुरस्कार नियमावली के अनुसार कार्य करती है। जिसके अध्यक्ष श्री नंद भारद्वाज हैं, उनके अतिरिक्त इस समिति के अन्य सदस्य – डॉ. अर्जुनदेव चारण, श्री हेमन्त शेश, डॉ. लता शर्मा,श्री ओम थानवी तथा फाउंडेशन के निदेशक, डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण ;सदस्य-सचिवद्ध हैं। इस समिति के अध्यक्ष, फाउंडेशन की अध्यक्षा श्रीमती शोभना भरतिया द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।

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