जयपुर। भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के गुरुवार को हुए निधन के बाद से पीएम नरेन्द्र मोदी उनके साथ बिताए पलों को याद करके भावुक हो रहे हैं। वे अब भी नहीं मान रहे हैं कि अटल जी उनके बीच नहीं रहे। पीएम मोदी अटलजी को पिता तुल्य मानते थे। उनके निधन से लग रहा है कि सिर से पिता का साया उठ गया है। अटल जी के निधन के बाद पीएम मोदी ने ब्लॉग लिखा, जिसमें उनके साथ बिताए गए पलों को याद करते हुए उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। ब्लॉग में उन्होंने भावुकता से लिखा कि अटल जी नहीं रहे। वह मेरी आंखों के सामने हैं। बिल्कुल स्थिर। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से मुझे बाहों में भर लेते थे, वे स्थिर हैं।
अटलजी की यह स्थिरता मुझे झकझोर रही है। अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में। कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटलजी अब नहीं हैं, लेकिन यह विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। कया अटलजी वाकई नहीं हैं? नहीं। मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं। कैसे कह दूं कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं। उनसे पहली मुलाकात की स्मृति ऐसी है जैसे कल की बात हो। जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला था, वह आवाज कई दिनों तक मेरे कानों से टकराती रही। मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है, कभी सोचा नहीं था कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश की विकास यात्रा में असंख्य लोगों ने जीवन समर्पित किया। लेकिन स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की रक्षा और २१ सदी के सशक्त, सुरक्षित भारत के लिए अटलजी ने जो कियाए वह अभूतपूर्व है।
इंडिया फ स्र्ट उनके जीवन का ध्येय था। पोकरण देश के लिए जरूरी था तो प्रतिबंधों और आलोचनाओं की चिंता नहीं की। काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत उनके सीने में थी, क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था। हार और जीत उन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, एक वोट से गिरा दी गई तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगनभेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे।
गरीब, वंचित, शोषित का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए वह जीवनभर प्रयासरत रहे। गरीब को अधिकार दिलाने के लिए आधार जैसी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का सरलीकरण, हर गांव तक सड़क, स्वर्णिम चतुर्भुज, विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर, राष्ट्र निर्माण के उनके संकल्पों से जुड़ा था। आज भारत जिस टेक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है, उसकी आधारशिला अटल जी ने ही रखी थी।
वह दुनिया में जहां भी गए, स्थायी मित्र बनाए और भारत के हितों की स्थायी आधारशिला रखी। वे भारत की विजय और विकास के स्वर थे। राष्ट्रवाद उनके लिए सिर्फ नारा नहीं, बल्कि जीवन शैली थी। वह देश को सिर्फ जमीन का टुकड़ा भर नहीं, बल्कि जीवंत, संवेदनशील इकाई के रूप में देखते थे। दशकों का सार्वजनिक जीवन उन्होंने इसी सोच को जीने, धरातल पर उतारने में लगा दिया। आपातकाल ने हमारे लोकतंत्र पर जो दाग लगाया था, उसे मिटाने के लिए अटल जी के प्रयासों को देश हमेशा याद रखेगा। जितना सम्मान, जितनी ऊंचाई अटल जी को मिली, उतना ही अधिक वह जमीन से जुड़ते गए। अपनी सफलता को कभी भी मस्तिष्क पर प्रभावी नहीं होने दिया।
उन्होंने कहा, हे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना।
गैरों को गले ना लगा सकूंए इतनी रुखाई कभी मत देना
यदि भारत उनके रोम-रोम में था तो विश्व की वेदना उनके मर्म को भेदती थी। वे विश्व नायक थे। भारत की सीमाओं के परे भारत की कीर्ति और करुणा का संदेश स्थापित करने वाले आधुनिक बुद्ध। अपने पुरुषार्थ और कर्तव्यनिष्ठा को राष्ट्र के लिए समर्पित करना ही देशवासियों के लिए उनका संदेश है। देश के साधनों, संसाधनों पर पूरा भरोसा करते हुए हमें अटल जी के सपने पूरे करने हैं।