जयपुर। श्याम नगर थाना इलाके में 26 सितम्बर, 2०15 को पायल ज्वैलर्स, निर्माण नगर के मालिक अनिल कुमार सोनी का फिरौती के लिए अपहरण करने, 27 सितम्बर को उसकी दुकान से सारा सामान ले जाने तथा भांकरोटा थाना इलाके में हत्या कर शव जमीन में दफनाने के मामले में 3 साल से जेल में बंद सुमित मीणा (21) निवासी शक्ति नगर, गजसिंहपुरा-श्याम नगर तथा भूरन्ती देवी उर्फ भूरी मीणा (32) निवासी भुसावर-भरतपुर हाल सिरसी थाना भांकरोटा को एडीजे दो, जयपुर जिला भानू कुमार ने सन्देह का लाभ देते हुए बरी कर जेल से रिहा करने के आदेश दिए। इस मामले में सुमित का पिता आरोपी राजेन्द्र प्रसाद मीणा मफरुर हैं.
आरोपी भूरन्ती देवी मीणा की एडवोकेट वन्दना मथुरिया ने अदालत को बताया कि हस्तगत प्रकरण में कोई भी चश्मदीद साक्षी घटना का नहीं है तथा परिस्थितिजन्य साक्ष्य में भी बीच की श्रृंखला टूटी हुई है। गवाहान की साक्ष्य से बरामदगी साबित नहीें है। साथ ही गवाहान के कथनों में बरामदगी के संबंध में विरोधाभाष है। आरोपी के खिलाफ आरोपित अपराध युक्तियुक्त संदेह से परे साबित नहीं है। दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में दलील दी कि 26 सितम्बर, 2०15 को अनिल सोनी को फिरौती वसूलने के आशय से अभियुक्तगण अपने मकान राजविहार कॉलोनी, सिरसी पर बुलाया तथा षडयंत्रपूर्वक उसे बंधक बनाकर रुपयों की मांग की तथा उससे दबावपूर्वक दुकान की चाबियां छीनकर 27 सितम्बर को सुबह उसकी दुकान से दुकान के ताले खोल कर सोने-चांदी के जेवरात व नकद रुपए निकाल कर ले गए । उसी दिन उपरोक्त मकान में ही अनिल सोनी की हत्या कर दी और लाश को उसी मकान में गड्डा खोदकर गाड़ दिया था। मामले में पुलिस ने सही अनुसंधान कर राजेन्द्र प्रसाद मीणा, उसके दोनों पुत्रों सुमित एवं एक नाबालिग तथा किराएदार भूरन्ती को गिरफ्तार कर लूटा गया माल व नकदी बरामद की है।
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने आदेश में कहा कि प्रथम जांच अधिकारी एएसआई चिमन लाल तथा द्बितीय जांच अधिकारी इंस्पेक्टर संजय शर्मा ने अदालत में एक-दूसरे के विपरित तथ्य पेश किए हैं। कोर्ट ने अनुसंधान पर संदेह जताते हुए कहा कि जिसने गिरफ्तारी, जब्ती सहित अन्य कार्यवाहियां की, वो उस दिन जांच अधिकारी ही नहीं था। लाश की बरामदगी भी संदेहास्पद है जो कि मामले को साबित करने के लिए आवश्यक एवं अहम तत्व हैं। खुले स्थान से की गई बरामदगियों में भी कोर्ट ने संदेहास्पद माना है। चुन्नी पर पाए गए मानव रक्त की जांच ही नहीं करवाई गई। जिरह में संजय शर्मा कहता है कि सुमित ने हत्या नहीं की और उसे अपहरण व हत्या की जानकारी भी नहीं थी। जबकि चालान में उसकी निशादेही से ज्वैलरी से भरा बैग व रुपए बरामद करना बताया था।