जयपुर। राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि आचरण में सकारात्मता लाने से ही समाज से विकृतियां दूर हो सकेगी। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने समाज में नैतिक मूल्यों की ज्योति प्रज्ज्वलित की। विश्व में भारतीयता को आत्मसात कराने का कार्य महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ही किया। राज्यपाल ने कहा कि स्वयं को ही श्रेष्ठ ना समझे, दूसरे को नीचा न दिखाये, गाली ना दें और नकारात्मक सोच को समाप्त करेंगे तो समाज में नव जागृति आएगी। राज्यपाल मिश्र बुधवार को अजमेर के महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय में सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत महर्षि दयानन्द सरस्वती विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। इस संगोष्ठी का आयोजन महर्षि दयानन्द सरस्वती के 137वें बलिदान दिवस पर किया गया। राज्यपाल ने दीप प्रज्ज्वलित कर संगोष्ठी का शुभारम्भ किया।
राज्यपाल ने कहा कि वैदिक विज्ञान के माध्यम से महर्षि सरस्वती ने समाज में सामाजिक क्रान्ति की अलख जगाई। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। नैतिकता के पथ पर चल कर समाज को नई दिशा महर्षि सरस्वती जी ने दी। महर्षि वेदों के प्रकाण्ड विद्वान थे। शब्दों में आरोह-अवरोह, उच्चारण कैसे हो, यह सब वे तर्कों से समझाते थे। श्री मिश्र ने कहा कि महर्षि का अजमेर से बहुत जुडाव था। अजमेर में अनेक स्थानों पर महर्षि जी ने प्रवास कर लोगों में सामाजिक चेतना जगाई और विकृतियों को दूर करने के लिए सकारात्मक वातावरण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
राज्यपाल ने कहा कि महर्षि जी ने समाज में सामूहिक शक्ति का संचारण, देश भक्ति और अनन्त शक्ति का बोध कराया। महर्षि जी ने वैदिक प्रमाणों के आधार पर समाज मे फैली कुरीतियों, अंधविश्वास, बाल विवाह, बली प्रथा जैसी अनेक कुप्रथाओं को समाप्त कराया। महर्षि सरस्वती ने ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उन्मुख कार्य किये। उन्होंने परोपकारिणी सभा को उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित किया। उनके द्वारा लिखे सत्यार्थ प्रकाश ने गलत धारणाओं को उखाड़ फैंका। जो लोग भारत के धार्मिक ग्रन्थों का मजाक उड़ाते थे, उन सब लोगों को इस ग्रन्थ के माध्यम से महर्षि ने मुंहतोड़ जवाब दिया।
राज्यपाल ने कहा कि अजमेर पुष्कर व ख्वाजा साहब की पवित्र धरती है। इस धरती पर हो रही इस संगोष्ठी के निष्कर्षों से नवनीत निकलेगा। राज्यपाल ने कहा कि सात्विक पर््रवृति, शान्ति, सद्भाव, शिक्षा के प्रति उत्कंठा, इन्दि्रयों और क्रोध पर नियंत्रण से हम समाज में सकारात्मक वातावरण के निर्माण से सक्रिय भागीदारी निभा सकते है।
संगोष्ठी में श्रीमत दयानन्द आश्रम गुरूकुल गौतम नगर दिल्ली के अधिष्ठाता स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती ने कहा कि समाज में क्रान्ति एकाएक नही आती है। क्रान्ति प्रदायक व्यक्ति को स्वयं में क्रान्ति का सूत्रापात करना होता है। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने पाखण्ड का खात्मा कर सच्चे ईश्वर की प्राप्ति के लिए क्रान्ति की। उन्होंने वेद प्रमाण के आधार पर ज्ञान के क्षेत्रों में क्रान्ति पैदा की। वर्णमाला की देवनागरी लिपि के उच्चारण पर विशेष ध्यान दिया। वेदो को आमजन की भाषा में उपलब्ध कराने के लिए वेदांग प्रकाश की रचना की। अछूतोद्धार, महिला शिक्षा तथा सामाजिक समरसता के कार्य किए। नई पीढ़ी को उनसेे प्रेरणा निरन्तर मिलती रहेगी।
संगोष्ठी के शुभारम्भ समारोह में महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलपति श्री आर.पी. सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के द्वारा पारम्परिक पाठ्यक्रम के अतिरिक्त शोध के आयाम प्रदान करने के लिए चार शोधपीठो की स्थापना की गई है। इनमें सिंध, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, पृथ्वीराज चौहान एवं दयानन्द सरस्वती शोधपीठ शामिल है। इस मौके पर महर्षि दयानन्द शोधपीठ के निदेशक एवं संगोष्ठी संयोजक प्रो. प्रवीण माथुर ने कहा कि शोधपीठ के माध्यम से आयोजित यह तीसरी राष्ट्रीय संगोष्ठी है। शोधपीठ वैदिक साहित्य एवं दयानन्द कृतित्व पर शोध का डिजिटललाईजेशन करने की योजना पर कार्य कर रही है। समारोह में विश्वविद्यालय द्वारा राज्यपाल को अभिनन्दन पत्र भी भेंट किया गया। संगोष्ठी का संचालन प्रो. रितु माथुर ने किया।