राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का जोधपुर में राजस्थान उच्च न्यायालय के नए भवन के उद्घाटन समारोह
jaipur. राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने जोधपुर में राजस्थान उच्च न्यायालय के नए भवन के उद्घाटन किया. उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय के नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर ‘सन सिटी’ जोधपुर में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। राजस्थान उच्च न्यायालय का यह नया भवन बहुत भव्य है। इसका गोल आकार संसद भवन परिसर की याद दिलाता है। इसके बीचों-बीच बना गुंबद आलीशान है, और इसे मारवाड़ शैली में फूलों की पारंपरिक चित्रकारी से सजाया गया है। मुझे बताया गया है कि यह पूरा स्थापत्य कुल 288 स्तंभों पर टिका हुआ है। ये स्तम्भ जोधपुर के सुप्रसिद्ध ‘चित्तर’ पत्थर से बने हैं।
राजस्थान, अपने वीरों के असाधारण शौर्य और अपनी कला एवं वास्तुशिल्प में रचे-बसे ‘सौंदर्यबोध’ के लिए विख्यात है। मुझे विश्वास है कि इस भवन की गणना भी राजस्थान की प्रसिद्ध इमारतों में की जाएगी और यह भवन हमारी धरोहर बनेगा। राजस्थान उच्च न्यायालय के बार और बेंच की परंपरा बहुत गौरवशाली रही है। इस उच्च न्यायालय ने भारत के उच्चतम न्यायालय को अनेक मुख्य न्यायाधीश दिए हैं। यहाँ के प्रख्यात विधिवेत्ताओं और न्यायविदों के नामों की सूची बहुत बड़ी और प्रभावशाली है। इनमें डॉक्टर नगेन्द्र सिंह, डॉक्टर लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, न्यायमूर्ति दलवीर भण्डारी और न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा जैसे कई नाम गिनाए जा सकते हैं। इस परंपरा को आगे ले जाने और मजबूत बनाने की ज़िम्मेदारी यहाँ उपस्थित युवा पीढ़ी पर है।
न्याय का यह भव्य मंदिर आकर्षक तो है ही, इसमें नवीनतम टेक्नॉलॉजी का भी समावेश किया गया है। लोगों को शीघ्रता से न्याय दिलाने में टेक्नॉलॉजी के सदुपयोग का मैं सदैव पक्षधर रहा हूँ। इस भवन में ‘क्रेश’ की सुविधा का होना विशेष रूप से सराहनीय है। इस सुविधा के द्वारा लीगल प्रोफेशन से जुड़े अधिक से अधिक लोगों को अपने काम और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलेगी। ‘क्रेश’ यानि ‘शिशु-गृह’ जैसी सुविधाओं के उपलब्ध होने से विशेष रूप से महिला अधिवक्ताओं को सहूलियत होगी और अन्य महिलाएं भी इस प्रोफेशन को उत्साहपूर्वक अपनाएँगी।
हमारे न्यायालयों के प्रवेश द्वारों पर प्रायः हमारा राष्ट्र मंत्र ‘सत्यमेव जयते’ अंकित रहता है। इसका अर्थ है कि “सत्य की ही जय होती है।” जिस तरह यह भवन, सुदृढ़ नींव पर टिका हुआ है उसी तरह हमारी न्याय प्रणाली भी सत्य की आधारशिला पर टिकी हुई है। इस राष्ट्र मंत्र से हमारे स्वाधीनता संग्राम को भी बहुत प्रेरणा मिली। जब भारत गणतंत्र बना, तो इस मंत्र को हमने राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में अपना लिया। इस आदर्श वाक्य को हमने इसलिए अपनाया कि सत्य ही हमारे गणतंत्र का आधार है।
वर्तमान समय में, भारत के संविधान ने भी न्यायपालिका को ही संवैधानिक सत्य के निर्धारण की गंभीर ज़िम्मेदारी सौंपी है। संविधान ने न्यायपालिका को अपने ‘सर्वोच्च व्याख्याकार और संरक्षक’ की भूमिका दी है। संविधान में एक ऐसी न्यायपालिका की परिकल्पना की गई है जो यह सुनिश्चित करती है कि सत्य की हमेशा विजय हो और असत्य की पराजय हो।
कुछ ही दिन पहले हम सब ने अपने ‘राष्ट्रीय ग्रंथ’ अर्थात संविधान को अंगीकृत किए जाने की 70वीं वर्षगांठ मनाई है। 26 नवम्बर को संविधान दिवस पर, मैंने संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को और उसके बाद उच्चतम न्यायालय के बेंच और बार को भी संबोधित किया। संविधान दिवस के दिन मैंने जो बातें उच्चतम न्यायालय में साझा की थीं उनमें से कुछ प्रमुख बातों को मैं यहाँ दोहराना चाहता हूँ।
मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या हम, सभी के लिए न्याय सुलभ करा पा रहे हैं? पुराने समय में, राजमहलों में न्याय की गुहार लगाने के लिए लटकाई गई घंटियों का उल्लेख होता रहा है। कोई भी व्यक्ति घंटी बजाकर राजा से न्याय पाने के लिए प्रार्थना कर सकता था। क्या आज कोई गरीब या वंचित वर्ग का व्यक्ति अपनी शिकायत लेकर यहां आ सकता है? यह सवाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि संविधान की प्रस्तावना में ही हम सब ने, सभी के लिए न्याय सुलभ कराने का दायित्व स्वीकार किया है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी न्याय की प्रक्रिया में होने वाले खर्च के बारे में बहुत चिंतित रहते थे। उनके लिए हमेशा दरिद्रनारायण का कल्याण ही सर्वोपरि था। उनका अनुसरण करते हुए हम सबको अपने आप से यह सवाल पूछना चाहिए: क्या प्रत्येक नागरिक को न्याय सुलभ हो पाया है? अनेक कारणों से न्याय-प्रक्रिया खर्चीली हुई है, यहाँ तक कि जन-सामान्य की पहुँच के बाहर हो गई है। विशेषकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पहुँचना आम litigants के लिए नामुकिन हो गया है। लेकिन अगर हम गांधीजी की प्रसिद्ध ‘कसौटी’ को ध्यान में रखते हैं, अगर हम सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करते हैं तो हमें सही राह नज़र आ जाएगी। मिसाल के तौर पर, हम निशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराके जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं। निशुल्क कानूनी सहायता के मुद्दे को मैं बहुत अहमियत देता हूँ। शायद आप जानते भी हों कि जब मैं दिल्ली हाई कोर्ट में और बाद में सुप्रीम कोर्ट में वकालत करता था, तब मुझे समाज के कमजोर वर्गों, खास तौर से महिलाओं और गरीबों को निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने का अवसर मिला।
आज के युग में असमानता दूर करने और सामाजिक परिवर्तन लाने में टेक्नॉलॉजी से बहुत सहायता मिली है। न्याय सुलभ कराने के लिए टेक्नॉलॉजी के जरिये न्यायपालिका के पोर्टलों को सामान्य लोगों के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है। आम लोगों को न्याय व्यवस्था में पूर्ण रूप से भागीदार बनाने के लिए बार और बेंच की युवा पीढ़ी अनेक नए और रचनात्मक समाधान उपलब्ध करा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर नौ भाषाओं में अपने निर्णयों की प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है। कई उच्च न्यायालय भी स्थानीय भाषाओं में अपने निर्णयों का अनुवाद उपलब्ध करा रहे हैं। मुझे आशा है कि इस उच्च न्यायालय द्वारा भी निर्णयों के प्रमाणित अनुवाद, स्थानीय भाषा हिन्दी में उपलब्ध कराए जाएंगे। न्याय व्यवस्था से जुड़ी मेरी बातें यहाँ के लोगों तक आसानी से पहुंच सकें, इसीलिए मैंने यह सम्बोधन हिन्दी में किया है।
मैं न्याय के इस शानदार भवन में कार्य आरंभ करने के लिए राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उनके सभी साथी न्यायाधीशों और सभी अधिवक्ताओं को बधाई देता हूं। मैं इस परियोजना के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राजस्थान सरकार के योगदान की सराहना करता हूँ।