जयपुर. विधानसभा के बजट सत्र को खत्म करने का प्रोसेस नहीं करके उसे कंटिन्यू करने पर हुए विवाद पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीजेपी पर पलटवार किया है। गहलोत ने कहा हमने जानबूझकर असेंबल को कंटिन्यू रखा है। अगर इनकी नीयत खराब हो जाए तो हमने इनकी ऐसी हालत कर दी कि चलने नहीं दी। इनका बस चले तो ये सरकार गिरा दें। इसलिए जानबूझकर हमने ऐसा किया। गहलोत ने कहा बीजेपी वालों से पूछिए विधानसभा सत्र को कंटिन्यू रखने की ये नौबत क्यों आई्। असेंबली कंटिन्यू क्यों रखी गई। इन्होंने देश में हॉर्स ट्रेडिंग का नया मॉडल बनाया है। सरकारें गिरा रहे हैं। पहले अरुणाचल, फिर एमपी, कर्नाटक, महाराष्ट्र में सरकारें गिराईं। झारखंड में कोशिश की। कई राज्यों में कोशिश कर रहे हैं। गहलोत ने कहा पिछली बार राज्यपाल को मजबूर कर दिया। यह कभी नहीं हुआ कि कैबिनेट असेंबली बुलाने के लिए रिक्वेस्ट करती है। राज्यपाल मना कर दे। कैबिनेट की रिक्वेस्ट के बाद राज्यपाल को असेंबली बुलानी ही पड़ती है। उस वक्त उल्टा हुआ। राज्यपाल के खिलाफ इतने एडिटोरियल लिखे गए, जो आज तक कभी नहीं हुआ था। क्योंकि राज्यपाल को इशारा था। असेंबली बुलाने की रिक्वेस्ट हम कर रहे हैं, वो बुला नहीं रहे हैं। कई बार मेजोरिटी नहीं होती तो राज्यपाल सरकार को आदेश देता है कि आपको असेंबली बुलाकर अपना बहुमत साबित करना है। उस वक्त उल्टा हो रहा था। उस केस में विधायकों का धरना हुआ था। गहलोत ने कहा इसलिए हमने जानबूझकर असेंबली को कंटिन्यू रखा। अगर इनकी नीयत और खराब हो जाए, हमने इनकी ऐसी हालत कर दी कि चलने नहीं दी। इनका बस चले तो ये तो कभी सरकार गिरा दें। इसलिए जानबूझकर हमने ऐसा किया। नुकसान हमें हुआ। हम कई अध्यादेश लाने वाले थे। ला नहीं पाए। गहलोत ने कहा बीजेपी विधायक आज धरना देकर नाटक कर रहे हैं। धरना देकर नाटक करना है तो दिल्ली में दीजिए। मैंने तो लंपी स्किन रोग को लेकर 15 अगस्त को मीटिंग बुलाकर विपक्ष के नेताओं को बुलाया।सब से बात की, धर्मगुरुओं से बात की। हमारी प्रायोरिटी है कि लंपी स्किन रोग से गायों की जान कैसे बचे, लेकिन वैक्सीन भारत सरकार देगी। दवाइयां वो उपलब्ध करवाएगी। हम तो मांग भारत सरकार से कर रहे हैं कि आप राष्ट्रीय आपदा घोषित करो। उस मांग पर विपक्ष के नेता हमारा साथ दें, उसके बजाय ये यहां धरना दे रहे हैं, नाटक कर रहे हैं। चिंता हमें लंपी स्किन रोग की है। विपक्ष से चाहेंगे वो हमें सहयोग करे। जुलाई 2020 में सचिन पायलट खेमे की बगावत के समय राजभवन और सरकार आमने सामने हो गए थे। गहलोत कैबिनेट ने 31 जुलाई 2020 को विधानसभा सत्र बुलाने के लिए राजभवन प्रस्ताव भेजा। गहलोत उस वक्त अपने दम पर बहुमत साबित करना चाहते थे। राज्यपाल ने विधानसभा सत्र बुलाने की फाइल पर कई ऑब्जेक्शन लगाकर सरकार को लौटा दिया। राज्यपाल ने कम से कम 14 दिन का नोटिस देकर ही सदन बुलाने की शर्त रखी। तत्काल सत्र बुलाने का कारण पूछा था। जब चार बार फाइल लौटाई तो सीएम अशोक गहलोत ने सभी विधायकों के साथ 24 जुलाई 2020 को राजभवन में धरना दिया, राज्यपाल के खिलाफ नारेबाजी की। धरने के बाद शाम को समझौता हुआ, राज्यपाल विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी देने पर राजी हुए। इसके बाद 14 अगस्त 2020 को विधानसभा सत्र बुलाने क मंजूरी दी गई। 10 अगस्त 2020 को पायलट खेमे से समझौता हो गया। इसके बाद 14 अगस्त 2020 को गहलोत सरकार ने पायलट खेमे के विधायकों के साथ बहुमत साबित कर दिया। जुलाई 2020 में असेंबली सेशन बुलाने के लिए राजभवन से हुए विवाद के बाद गहलोत सरकार ने रणनीति बदल दी। उस घटना के बाद से विधानसभा के बजट सेशन को साल भर तक कंटिन्यू रखा। इससे बीच में अगर विधानसभा की बैठक बुलाने की जरूरत पड़े तो राज्यपाल के पास फाइल भेजने की जरूरत नहीं होती। पायलट खेमे की बगावत के समय विधानसभा के बजट सेशन काे खत्म कर दिया था, इसे संसदीय भाषा में सत्रावसान कहा जाता है। सत्रावसान राज्यपाल ही करते हैं। सत्रावसान के बाद अगर विधानसभा की बैठक बुलानी हो तो कैबिनेट से प्रस्ताव पास करके फाइल राज्यपाल के पास भेजनी होती है,राज्यपाल की अनुमति से ही विधानसभा का नया सत्र बुलाया जा सकता है। गहलोत सरकार ने इस औपचारिकता से बचने के लिए बजट सत्र को ही कंटिन्यू करने की तरकीब निकाल ली। फरवरी के आसपास इसी सत्र काे डिस्कंटिन्यू करवाने का प्रोसेस करके नया बजट सत्र बुलाने की मंजूरी ले ली जाती है।
नई रणनीति के पीछे सियासी संकट का डर है। अगर कभी बहुमत साबित करने की जरूरत पड़े तो सरकार जब चाहे तब विधानसभा की बैठक बुलाने के लिए प्रस्तावभेज सकती है और इसमें राज्यपाल की मंजूरी की जरूरत नहीं पड़े। मौजूदा प्रावधानों के अनुसार हर छह महीने में विधानसभा की बैठक बुलाने की बाध्यता है। अब साल में कम से कम दो बार विधानसभा सत्र बुलाया जाता रहा है। हर सेशन में विधायक 100 सवाल पूछ सकते हैं, एक ही सेशन कंटिन्यू रखने से विधायकों का सवालों का कोटा पूरा हो जाता है। पिछले दो साल से यही हो रहा है। बजट सेशन को कंटिन्यू रखने से विधायकों के सवाल पूछने का कोटा पूरा हो गया है। अगर मानसून सत्र होता तो विधायकों को सवाल पूछने का नया कोटा मिल जाता। बीजपी विधायक इसी का विरोध कर रहे हैं।

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