जयपुर. राजस्थान की सात सीटों पर होने वाले उपचुनावों में बगावत से ज्यादा और भितरघात का फैक्टर ज्यादा हावी है। सत्ताधारी बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल करते हुए नाराज नेताओं को मना लिया। जनाधार वाले बागियों को मैदान में नहीं रहने दिया। वहीं, कांग्रेस और बीएपी में एक-एक सीट पर बागी समीकरण बिगाड़ रहे हैं। देवली उनियारा सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा मैदान में डटे हैं। चौरासी सीट पर बीएपी के बागी बादमी लाल समीकरण बिगाड़ रहे हैं। इन दो सीटों के अलावा इस बार बागी नहीं हैं, लेकिन छिपी हुई नाराजगी और लोकल समीकरणों से छिपे हुए नुकसान का डर सबको है। सत्ता में होने की वजह से बीजेपी को बागियों को मनाने में आसानी रही। जिन नेताओं के टिकट कटे, उन्हें मान सम्मान देने और सरकार में काम होने का आश्वासन दिया गया। मंत्रियों को डैमेज कंट्रोल में लगाया, नाराज नेताओं की सीएम से बात करवाई। इन सब प्रयासों से बीजेपी ने नाराज नेताओं को मना लिया। उन्हें बागी नहीं होने दिया। जानकारों के मुताबिक बीजेपी ने नाराज नेताओं को तो मना लिया, लेकिन उनके प्रभाव वाले वोटर और समर्थक कितना मानेंगे। इसे पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता।
– देवली उनियारा: कांग्रेस में बागी, बीजेपी में बगावत नहीं
देवली उनियारा सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। नरेश मीणा को मनाने के कांग्रेस के प्रयास कामयाब नहीं हुए। बीजेपी में बगावत नहीं है, लेकिन पिछली बार के उम्मीदवार विजय बैंसला टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं। विजय बैंसला ने बगावत भले न की हो लेकिन उनके समर्थकों में नाराजगी बरकरार है। बीजेपी कांग्रेस के बागी नरेश मीणा को खुद के फेवर में फैक्टर मान रही है, लेकिन कांग्रेस का बागी बीजेपी के कुछ वोटों में भी सेंध लगा सकता है। कांग्रेस उम्मीदवार कस्तूरचंद मीणा के खिलाफ नरेश मीणा ने टिकटों की घोषणा के समय ही मोर्चा खोल दिया था। कांग्रेस में नरेश मीणा की बगावत के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा की नारागजी भी चुनौती है।
-चौरासी: बीएपी को बागी से और कांग्रेस-बीजेपी को भितरघात का खतरा
चौरासी सीट पर इस बार बीएपी के बागी बादमी लाल ने मुकाबले को रोचक बना दिया है। बीएपी को बागी से खतरा है, जबकि कांग्रेस और बीजेपी को भितरघात का खतरा सता रहा है। राजकमुार रोत के सांसद बनने से खाली हुई सीट पर आदिवासियों के मुद्दे हावी हैं। रोत बड़े अंतराल से जीते थे। कांग्रेस-बीजेपी के सामने वजूद बचाने की चुनौती है। भारतीय आदिवासी पार्टी(बीएपी) कांग्रेस और बीजेपी के लिए इस बेल्ट में खतरा बन गई है। यहां बीएपी उम्मीदवार अनिल कटारा, बीजेपी से कारीलाल ननोमा, कांग्रेस उम्मीदवार महेश रोत और बीएपी के बागी बादामी लाल के बीच मुकाबला है।
– सलूंबर: कांग्रेस, बीजेपी में कोई बागी नहीं, लेकिन अंदरुनी नाराजगी
सलूंबर सीट पर कांग्रेस, बीजेपी और बीएपी से कोई बागी नहीं है। कांग्रेस को यहां भितरघात का खतरा है। पिछली बार के उम्मीदवार और कांग्रेस की सुप्रीम बॉडी कांग्रेस वर्किंग कमेटी के मेंबर रहे रघुवीर मीणा टिकट कटने से नाराज हैं। उनके समर्थक भी सक्रिय नहीं दिख रहे। मौजूदा कांग्रेस उम्मीदवार रेशमा मीणा 2018 में बागी लड़ी थीं। रेशमा की वजह से रघुवीर चुनाव हार गए थे। अब रघुवीर मीणा के समर्थक रेशमा का साथ नहीं दे रहे। ऐसे में कांग्रेस को अंदरखाने की नाराजगी से खतरा है। बीजेपी ने सहानुभूति कार्ड के तौर पर दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता मीणा को टिकट देकर सहानुभूति कार्ड चला है। बीजेपी ने इस सीट पर नाराज नेताओं को मनाकर डैमेज कंट्रोल कर लिया। बीएपी उम्मीदवार जितेश कटारा की वजह से त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है।
– दौसा: पर्दे के पीछे से अंदरुनी चालों से बदल सकते हैं समीकरण
हॉट सीट मानी जा रही दौसा में उपचुनाव के दौरान पर्दे के पीछे से चली गई सियासी चालें समीकरण बदल सकती हैं। बीजेपी और कांग्रेस में किसी ने बगावत नहीं की है, लेकिन बीजेपी में एक वर्ग अंदरखाने नाराज है। नाराज वर्ग का साइलेंट होना नए समीकरणों की तरफ इशारा कर रहा है। बीजेपी नेता भी अब इस सीट पर कांटे का चुनाव मान रहे हैं। मंत्री किरोड़ीलाल मीणा फैक्टर की वजह से भी यहां अलग समीकरण बन रहे हैं।
– झुंझुनू: बीजेपी ने नाराज नेता को मनाया, लेकिन समर्थक नहीं माने
झुंझुनू सीट पर इस बार कांटे का मुकाबला है। कांग्रेस और बीजेपी में बागी नहीं हैं, लेकिन नाराज नेताओं के गुपचुप नुकसान पहुंचाने का खतरा बरकरार है। बीजेपी में टिकट कटने से नाराल बबलू चौधरी को मना लिया था, लेकिन उनके प्रभाव वाले वोटर्स मानने को तैयार नहीं हैं। यह बड़ी चुनौती है। बीजेपी के रणनीतिकार निर्दलीय पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के मैदान में डटे रहने को खुद के लिए फायदेमंद मान रहे हैं। गुढ़ा मुस्लिम और दलित वोट लेने में कामयाब रहते हैं। वे जितने जनरल कास्ट के वोट लेंगे उतना बीजेपी का नुकसान है। कांग्रेस को उसके परंपरागत वोट बैंक मुस्लिम दलित में सेंध का खतरा है।
– रामगढ़: बीजेपी ने बागी को मनाया, कांग्रेस को सहानुभूति कार्ड का सहारा
रामगढ़ सीट पर बीजेपी और कांग्रेस में कोई बागी नहीं है। बीजेपी ने पिछले उम्मीदवार जय आहूजा को मना लिया है। रामगढ़ सीट पर अब धार्मिक गोलबंदी सबसे बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस ने दिवंगत विधायक जुबेर खान के बेटे आर्यन जुबेर को टिकट देकर सहानुभूति कार्ड चला है, लेकिन यहां धार्मिक गोलबंदी का फैक्टर बढ़ रहा है।
– खींवसर: कांग्रेस, बीजेपी और आरएलपी में कोई बागी नहीं
खींवसर सीट पर आरएलपी सासंद हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल, कांग्रेस से रतन चौधरी और बीजेपी से पिछले उम्मीदवार रेवंत राम डांगा के बीच मुकाबला है। तीनों ही दलों में कोई बागी नहीं है। यहां भी भितरघात , अंदरूनी नुकसान का खतरा बरकरार है। इस सीट पर वोटिंग से ठीक पहले तक समीकरण बदल जाते हैं, इस बार भी वही संकेत हैं।
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