नई दिल्ली। पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए केन्द्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। इस फैसले के अनुसार अब आरक्षण देने का अधिकार केन्द्र सरकार के पास न होकर संसद के पास होगा। इसको शीघ्र ही एक नया आयोग अस्तित्व में आएगा। जिसका नाम नेशनल कमीशन फॉर सोशल एंड एज्यूकेशनली बैकवर्ड क्लासेज (एनएसईबीसी) होगा। यह आयोग सामाजिक व शैक्षणिक स्तर पर पिछड़ों को परिभाषित करेगी। इसके लिए संविधान संशोधन कर अनुच्छेद 338बी को जोड़ा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इस पर निर्णय ले लिया गया है। जो नया आयोग अस्तित्व में आएगा। वह वर्तमान में मौजूद राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग की जगह लेगा। जो संवैधानिक दर्जे से युक्त होगा। वर्तमान में ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा मिला हुआ नहीं है। साथ ही नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लॉस एक्ट 1993 को रद्द करने का फैसला किया। गौरतलब है कि हाल ही ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की मांग को लेकर ओबीसी कल्याण से जुड़ी संसदीय समिति ने पीएम मोदी से मिली थी। जिस पर कैबिनेट में मुहर लगा दी। एनएसईबीसी के सिफारिश किए जाने के बाद संसद पिछड़ा वर्ग में नई जातियों को समाहित करने व सक्षम हो चुकी जातियों को सूची से हटाने का निर्णय करेगी। जो वर्तमान में केन्द्र सरकार करती है। इस आयोग के गठन की एक बड़ी वजह हाल ही हरियाणा में जाट आंदोलन को लेकर उठे स्वरों को माना जा रहा है। नए आयोग में एक अध्यक्ष सहित उपाध्यक्ष व तीन सदस्यों को नियुक्त किया जाएगा। बता दें पिछली यूपीए सरकार ने जाटों को ओबीसी में शामिल कर लिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक नहीं मानते हुए निर्णय को पलट दिया। साथ ही कहा कि केवल जातिगत आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। एक ओर जहां गुजरात में पाटीदार तो राजस्थान में गुर्जर और हरियाणा में जाट आरक्षण की मांग को लेकर लामबंद हैं। वर्तमान में इन तीनों ही प्रदेशों में भाजपा की सरकार है तो केन्द्र में भी भाजपा सत्ताशीन है।
-जनप्रहरी एक्सप्रेस की ताजातरीन खबरों से जुड़े रहने के लिए यहां लाइक करें।