– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में सेरोगेसी नियम विधेयक को मंजूरी मिलने से देशभर में गैर कानूनी तरीके से फल-फूल रहे किराये की कोख के कारोबार पर लगाम लग सकेगी। देश भर में हर साल दस से पन्द्रह लाख बच्चे किराये की कोख से जन्म ले रहे हैं। इनमें अधिकतर विदेशी दम्पत्तियों की संतानें है, जो यहां गरीब और मजबूर महिलाओं की कोख को किराये पर लेकर उनके लिए बच्चों को जन्म रही है। भारत में ही नहीं यह कारोबार बहुत तेजी से दूसरे देशों खासकर एशियाई देशों में खूब फलफूल रहा है। भारत में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, बंगलुरु के अलावा राजस्थान में भी तेजी से यह कारोबार चल रहा है। राजस्थान में ही हर साल करीब चार-पांच सौ बच्चे किराये की कोख से जन्म ले रहे हैं। जयपुर समेत बड़े शहरों में यह धंधा खूब प्रचलन में है। हालांकि अब केन्द्रीय केबिनेट में सेरोगेसी बिल को मंजूरी मिलने से गैर कानूनी तरीके से तेजी से बढ़ते इस कारोबार को ना केवल रोक लगेगी, बल्कि मजबूर व गरीब महिलाओं को कुछ राशि देकर चिकित्सा केन्द्रों की तरफ से हो रहे शारीरिक-मानसिक शोषण करने से भी बचाव होगा। बताया जाता है कि राजस्थान में करीब एक सौ से डेढ़ सौ करोड़ रुपए का कारोबार हो गया है। इसमें बड़ी तादाद विदेशी दम्पत्तियों और अनिवासी भारतीयों की है, जो अपने वंश और परिवार बढ़ाने की खातिर ना केवल महिलाओं की कोख किराये पर ले रहे हैं, बल्कि भारी भरकम राशि भी खर्च कर रहे हैं। हालांकि यह भारी भरकम राशि का अस्सी फीसदी से अधिक हिस्सा उन अस्पतालों व चिकित्सा केन्द्रों के हाथों में पहुंचता है, जो गरीब व मजबूर महिलाओं की किराये की कोख उपलब्ध कराते हैं। अब इस बिल को मंजूरी मिलने के बाद विदेशी व अनिवासी भारतीय अब किराये की कोख नहीं ले सकेंगे। नियम-कायदे तय होने से मजबूर महिलाएं भी एक या दो से अधिक बच्चे पैदा नहीं कर पाएंगी।
राजस्थान में करीब पांच सौ से अधिक ऐसे नर्सिंग होम, निजी अस्पताल और चिकित्सा केन्द्र है, जहां सेरोगेट मदर के जरिए नि:संतान दम्पत्तियों को संतान दी जा रही है। इसके लिए अस्पताल और केन्द्र प्रशासन ही किराये की कोख उपलब्ध कराता है। सेरोगेट मदर की रेट भी अलग-अलग है। नामी-गिरामी अस्पताल व सेंटर जिनमें विश्वस्तरीय सुविधाएं है, वे मोटी रकम वसूलते हैं। इनकी रेट पच्चीस लाख से पचास लाख रुपए तक होती है। वैसे सामान्य से सेन्टर व अस्पताल में भी सेरोगेट मदर की रेट पन्द्रह से बीस लाख रुपए है। सेरोगेट महिला के रहने, खाने व ठहरने समेत सभी व्यवस्था अस्पताल व सेंटर प्रबंधन की होती है। इसके लिए बाकायदा होटल व गेस्ट हाउस ले रखे हैं अस्पताल प्रबंधन ने। विदेशी दम्पत्ति को किस प्रदेश, आयुवर्ग और जाति की सेरोगेट मदर चाहिए, उसकी भी व्यवस्था भी करते हैं। कुछ नर्सिंग होम व अस्पताल ऐसे भी है, जो राजस्थान के अलावा महाराष्टÓ, छत्तीसगढ़, पंजाब, ओडिशा, उत्तरप्रदेश की महिलाओं को सेरोगेट मदर बनाने की व्यवस्था करते हैं। इसके लिए हर राज्य में एजेन्ट व अस्पतालों से सम्पर्क है, जो एक-दूसरे को यह सुविधा उपलब्ध कराते हैं। ऐसी महिलाओं को अस्पताल व नर्सिंग सेंटर अपने यहां पर नर्स व दूसरी सेवाओं में नौकरी पर रखते हैं और कोई निसंतान दम्पत्ति संतान के लिए सेरोगेट मदर के लिए सम्पर्क करता है, उन्हें उन महिलाओं से मिला दिया जाता है या उनकी फोटो दिखा दी जाती है। करीब अस्सी फीसदी निसंतान दम्पत्ति बाहरी (विदेशी, अनिवासी या दूसरे राज्यों) होते हैं। बीस फीसदी दम्पत्ति ऐसे होते हैं, जो स्थानीय है और स्थानीय सेरोगेट मदर की मदद से संतान उत्पन्न करते हैं। संतान सुख देने का यह कारोबार अब व्यावसायिक रुप लेने लगा है। इसमें अस्पताल व निजी सेंटर तो फायदे में है, लेकिन जो सेरोगेट मदर बन रही है, वह बहुत ही कम राशि में अपनी कोख देने को मजबूर है। राजस्थान के चिकित्सा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक हर साल करीब एक से डेढ़ हजार सेरोगेट मदर बच्चों को जन्म दे रही है। राजस्थान में नि:संतानता का प्रतिशत देशभर में सर्वाधिक होने के कारण यहां यह कारोबार काफी बढ़ रहा है। राजस्थान में तीन फीसदी निसंतानता दम्पत्ति है, जो कि भारत के मुकाबले में एक फीसदी अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 3.5 फीसदी है, जबकि भारत में 2.3 फीसदी ही है। हालांकि कारण कोई भी हो, लेकिन अब केन्द्र सरकार के सेरोगेसी नियम विधेयक को मंजूरी देने से अब यह आस बंधी है कि गैर कानूनी तरीके से बहुत तेजी से बढ़ रहे इस कारोबार पर रोक लग सकेगी। खासकर विदेशी और अनिवासी भारतीयों को अब भारत में सेरोगेट मदर के लिए अनुमति नहीं मिलेगी। वहीं उन मजबूर व गरीब महिलाओं के लिए भी प्रावधान रखे गए हैं, जो अपनी गरीबी के चलते बार-बार सेरोगेट मदर बनने को विवश हो रही है और अस्पताल प्रबंधन उनकी मजबूरी का बेजा फायदा उठाते रहे हैं। विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि तीन से ज्यादा बच्चे वाली महिलाएं सेरोगेट मदर नहीं बन पाएगी। वहीं जिन लोगों की पत्नी में गर्भधारण की क्षमता है, वे सेरोगेट मदर के जरिए संतान प्राप्त नहीं कर सकेंगी। जैसे फिल्म अभिनेता शाहरुखा खान और आमिर खान जैसे कई बड़ी हस्तियों ने इसी तरह सेरोगेट मदर ढूंढकर संतान उत्पन्न की, जबकि उन पत्नियां गर्भधारण करने में सक्षम थी, लेकिन गर्भधारण के बाद होने वाली परेशानियों, प्रसव पीड़ा और फीगर खराब होने के डर के चलते ये मातृत्व का सुख प्राप्त करने से भी डरती है। अब तक अस्पताल प्रबंधन ही किराये की कोख लेकर मोटी रकम वसूलते रहते थे और जो महिला नौ महीने तक अपनी कोख में बच्चे को पालती थी, उसे नाम-मात्र की राशि ही मिलती थी। कई बार बच्चा बीमार या विकृत होने पर दम्पत्ति इसे लेने से इंकार कर देते हैं। ऐसे में सेरोगेट मदर के लिए आफत हो जाती थी। इन सब को देखते हुए अब विधेयक में सेरोगेट मदर की सुरक्षा और अनुबंध राशि के लिए ठोस प्रावधान किए गए है, साथ ही डिलीवरी के पहले और बाद में उपचार की व्यवस्था के प्रावधान भी रखे गए हैं।
अब नहीं बनने देंगे शाहरुख और आमिर
थोड़ा है थोड़े की जरूरत है। यदि आप भी हर मामले में इस फ ॉर्मूल पर चलते हैं तो रुक जाइए। क्योंकि अब हर जगह इसका इस्तेमाल करना आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है। यहां बात हो रही है हाल ही केन्द्रीय केबिनेट से मंजूर हुए सेरोगेसी बिल की। केबिनेट में बिल पास होने के बाद केन्द्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मीडिया में स्पष्ट कह दिया है कि जरूरत की चीज को हमारी सरकार शौक नहीं बनने देगी। सुषमा का निशाना सीधे-सीधे इस जरूरत की चीज को धंधा बनाने वालों पर था। उनका मैसेज साफ था कि चाहे गरीब हो या अमीर जब तक वो यह साबित नहीं कर देगा कि वाकये में उसे सेरोगेसी की जरूरत है तब तक वो इसका इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। जैसा कि कुछ सेलिब्रिटीज इसका बेजा इस्तेमाल करते देखे गए हैं। गौरतलब है कि इस लिस्ट में फिल्म अभिनेता शाहरुख खान, आमिर खान और तुषार कपूर जैसी हस्ती भी शामिल हैं। सुषमा स्वराज ने कहा कि सेरोगेसी विधेयक इसलिए लाया गया है, क्योंकि भारत लोगों के लिए सेरोगेसी हब बन गया था और यहां अनैतिक घटनाएं सामने आ रही थीं। अब सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही सरोगेसी का अधिकार होगा, वो भी कुछ शर्तों के साथ।
इसलिए पड़ी कानून की जरुरत
केन्द्रीय केबिनेट ने सेरोगेसी बिल को मंजूरी देकर किराये की कोख (सेरोगेसी) वाली मां के अधिकारों की रक्षा के उपाय किए है। साथ ही सेरोगेसी से जन्मे बच्चों के अभिभावकों को कानूनी मान्यता देने का प्रावधान है। केबिनेट से पास सेरोगेसी रेगुलेशन बिल 2016 मुताबिक अविवाहित पुरुष या महिला, सिंगल, लिव इन में रह रहा जोड़ा और समलैंगिक जोड़े अब सरोगेसी के लिए आवेदन नहीं कर सकते। इसके साथ ही अब सिर्फ रिश्तेदार महिला महिला ही सरोगेसी के जरिए मां बन सकती है। सेरोगेसी एक महिला और एक दंपति के बीच का एक एग्रीमेंट है, जो अपना खुद का बच्चा चाहता है। सामान्य शब्दों में सेरोगेसी का मतलब है कि बच्चे के जन्म तक एक महिला की ‘किराए की कोखÓ। आमतौर पर सेरोगेसी की मदद तब ली जाती है जब किसी दंपति को बच्चे को जन्मे देने में कठिनाई आ रही हो। बार-बार गर्भपात हो रहा हो या फिर बार-बार आईवीएफ तकनीक फेल हो रही है. जो महिला किसी और दंपति के बच्चे को अपनी कोख से जन्मत देने को तैयार हो जाती है उसे ‘सेरोगेट मदरÓ कहा जाता है। सरकार ने हाल में स्वीकार किया था कि वर्तमान में किराये की कोख संबंधी मामलों को नियन्त्रित करने के लिए कोई वैधानिक तंत्र नहीं होने के चलते ग्रामीण एवं आदिवासी इलाकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में किराये की कोख के जरिये गर्भधारण के मामले हुए। जिसमें शरारती तत्वों द्वारा महिलाओं के संभावित शोषण की आशंका रहती है। ना तो किराये की कोष देने वाली महिला को पर्याप्त सुरक्षा मिलती है और ना ही पर्याप्त राशि। बच्चा सुरक्षित नहीं हो तो दम्पत्ति उसे लेने से भी इंकार कर देता है। भारत में सस्ते में सेरोगेट मदर मिलने के चलते नि:संतान विदेशी दम्पत्तियों के लिए यह देश एक बड़ा हब बनने लगा। निजी अस्पताल व सेंटर इसके दलाल के तौर पर उनसे मोटा पैसा लेकर संतान देने लगे। ऐसे में उन सेरोगेट मदर की सुरक्षा और सम्मान देने के लिए यह बिल लाने की जरुरत पड़ी।
कई देशों में प्रतिबंधित है सेररोगेसी
कॉमर्शियल सेरोगेसी कई देशों में प्रतिबंधित है, जिनमें ऑस्ट्रेलिया, यूके, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी,स्वीडन,न्यूजीलैंड,जापान और थाईलैंड आदि देश शामिल हैं। भारत में इसके लिए कोई ठोस कानून नहीं है। सरकार ने हाल में स्वीकार किया था कि वर्तमान में किराये की कोख संबंधी मामलों को नियंत्रित करने के लिए कोई वैधानिक तंत्र नहीं होने के चलते ग्रामीण एवं आदिवासी इलाकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में किराये की कोख के जरिए गर्भधारण के मामले बढ़ रहे हैं। महिलाओं विशेषकर ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं के शोषण को रोकने के लिए सरकार ने विदेशियों के लिए देश में किराये की कोख की सेवाएं लेने पर प्रतिबंध का प्रावधान विधेयक में किया है। दुनियाभर में लाखों-करोड़ों निसंतान दंपति हैं जिस वजह से लोग भारत और थाईलैंड किराए की कोख लेने के लिए जाते हैं। इस कारण दुनियाभर में ये दो देश कॉमर्शियल सेरोगेसी का गढ़ बन गए हैं। हजारों निसंतान दंपत्ति गरीब महिलाओं को पैसे देकर नौ महीनों के लिए उनकी कोख किराए पर लेते हैं। भारत में इसे बैन करने पर 2014 से विचार चल रहा है, तब एक ऑस्ट्रेलियाई दंपत्ति जुड़वा बच्चों में से लड़की लेकर चला गया था और लड़के को भारत में ही छोड़ गया था। तब इस लड़के और उसके सेरोगेट मदर के लिए काफी हल्ला मचा और तब इस तरह के मामलों पर रोक लगाने के लिए यह कानून लाने पर विचार किया। नए बिल के अनुसार अब अगर कोई दंपत्ति बच्चे को छोड़ता है तो 10 साल जेल और 10 लाख के जुर्माने का प्रावधान है। साथ ही डॉक्टर भी अब सरोगेट मां के साथ इलाज में कोताही नहीं बरत पाएंगे।