नयी दिल्ली : धूम्रपान की तरह ही धूम्ररहित तंबाकू यानी स्मोकलेस तंबाकू :एसएलटी: भी अपने स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों को लेकर चुनौती बना हुआ है और इसकी रोकथाम के लिए बीच बीच में किये जा रहे प्रयासों के मिले जुले परिणाम सामने आये हैं। इसी के मद्देनजर एसएलटी के इस्तेमाल को प्रभावी तरीके से कम करने के लिए देश विदेश के विशेषज्ञ बहुपक्षीय कार्ययोजना तैयार करेंगे।
पूरी दुनिया में चबाने वाले तंबाकू, गुटखा और तंबाकू वाले पान आदि एसएलटी उत्पादों के सेवन के खतरों को लेकर चिंता बनी हुई है और विशेषज्ञ अपने अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन :डब्ल्यूएचओ: के ‘तंबाकू निंयत्रण पर रूपरेखा के समझौते’ :एफसीटीसी: के तहत भी कई देश काम कर रहे हैं। इसी सिलसिले में देश और दुनिया के वैज्ञानिक 27 और 28 नवंबर को नोएडा स्थित राष्ट्रीय कैंसर रोकथाम और अनुसंधान संस्थान :एनआईसीपीआर: में विचार—विमर्श करेंगे।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद :आईसीएमआर: के तहत आने वाले एनआईसीपीआर के निदेशक डा रवि मेहरोत्रा ने बताया कि डब्लयूएचओ के एफसीटीसी में शामिल करीब 70 प्रतिशत देशों ने अपने अपने क्षेत्रों में जागरुकता के लिए कदम उठाये हैं। इसके लिए अधिक संसाधन संपन्न देशों के साथ ही भारत, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान जैसे कम संसाधनों वाले देशों ने कई तरह के अभियान चलाये हैं। उन्होंने ‘भाषा’ को बताया कि एसएलटी का अत्यधिक बोझ सह रहे देशों में केवल भारत है जिसने तंबाकू के खिलाफ जागरुकता पर एक विशेष राष्ट्रीय जन माध्यम तैयार किया है।
डा मेहरोत्रा के मुताबिक चबाने वाले तंबाकू उत्पादों के इस्तेमाल को कम करने और उन्हें हतोत्साहित करने के लिए अपनाई जाने वाली अंतरिम रणनीतियों के मिले जुले परिणाम आये हैं। इन सबको देखते हुए एसएलटी की रोकथाम से जुडे मुद्दों पर चर्चा करने के लिए इस सोमवार और मंगलवार को एनआईसीपीआर द्वारा आयोजित कार्यशाला में ‘स्मोकलैस तंबाकू के नियंत्रण से जुडी प्राथकिमताएं, अनुसंधान और प्रशिक्षण की जरूरतों की पहचान’ विषय पर देश विदेश के वैज्ञानिक मंथन करेंगे।
इनमें जिनेवा से डब्ल्यूएचओ के एफसीटीसी मुख्यालय के डा टी जोल्टन जिलागी और अमेरिका से डा मार्क पारस्कैंडोला आदि की भागीदारी होगी तो देश के भी कई जानेमाने विशेषज्ञ अपनी राय रखेंगे। डा मेहरोत्रा ने बताया कि स्मोकलेस तंबाकू पर मौजूदा साहित्य या दस्तावेजों में अनुसंधान से संबंधित कमियों को पहचानने का प्रयास किया जाएगा और एसएलटी के इस्तेमाल को प्रभावी तरीके से कम करने की बहुपक्षीय कार्ययोजना तैयार की जाएगी। तंबाकू :एसएलटी: के इस्तेमाल से कैंसर, ह्दयरोगों और मधुमेह जैसे गैर—संक्रामक रोगों का खतरा होता है। गर्भवती महिलाएं यदि एसएलटी का इस्तेमाल करती हैं तो जन्म लेने वाले बच्चे का वजन कम हो सकता है और अन्य प्रतिकूल प्रभाव भी दिखाई दे सकते हैं।
एसएलटी को वैश्विक स्वास्थ्य समस्या मानते हुए एनआईसीपीआर को पिछले साल एसएलटी पर ‘डब्ल्यूएचओ एफसीटीसी ग्लोबल नोलेज हब’ घोषित किया गया था। दुनियाभर में एसएलटी का सेवन करने वाले लोगों में से 67 प्रतिशत अकेले भारत में हैं। इन उत्पादों के गुण दोषों के बारे में सीमित जानकारी ही उपलब्ध है। इनके इस्तेमाल की विविधता भी इनके वर्गीकरण में चुनौती पैदा करती है। अलग अलग देशों में इनके उत्पादन, बिक्री, इस्तेमाल और नियमों को लेकर भी अंतर है।