जयपुर। अलवर जिले की सबसे प्रतिष्ठित सीट अलवर शहर को जीतने के लिए कांग्रेस बड़ा दांव खेल सकती है। भाजपा की परम्परागत मानी जाने वाली इस सीट पर बनवारी लाल सिंघल विधायक है। ब्राह्मण, वैश्य, माली और पुरुषार्थी समाज बहुल इस सीट पर भाजपा को पटखनी देने के लिए कांग्रेस वैश्य या पुरुषार्थी समाज के कांग्रेस कार्यकर्ता को टिकट दे सकती है। हालांकि अलवर के पूर्व सांसद और पार्टी के वरिष्ठ नेता अलवर राजघराने के पूर्व सदस्य भंवर जितेन्द्र सिंह भी यहां चुनाव लड़ सकते हैं। अगर वे चुनाव लड़ेंगे तो भाजपा को वैसे ही मुश्किल हो सकती है। अलवर शहर और जिले में भंवर जितेन्द्र सिंह का काफी मान-सम्मान है। उनके चुनाव नहीं लडऩे पर यहां से किसी ब्राह्मण और वैश्य-पुरुषार्थी समाज को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी नरेन्द्र शर्मा थे, जो बनवारी लाल सिंघल से भारी अंतर से हार गए थे। ऐसे में यहां से किसी वैश्य या पुरुषार्थी समाज को टिकट दिए जाने की मांग उठ रही है।
इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि करीब एक लाख वोट वैश्य और पुरुषार्थी समाज के हैं। दोनों ही समाज के लोग अधिकांश लोग व्यापार से जुड़े हुए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भी दोनों समाज ने मिलकर डॉ.करण सिंह यादव को समर्थन दिया था, जिसके चलते वे लाखों मतों से विजयी हुए। भाजपा से जहां बनवारी लाल सिंघल फिर से प्रत्याशी होंगे, वहीं कांग्रेस से आधा दर्जन से अधिक उम्मीदवार चुनावी मैदान में है। इनमें से मुख्य तौर पर पूर्व प्रत्याशी नरेन्द्र शर्मा, रमेश जुनेजा (जो अलवर व्यापार संघ के अध्यक्ष है और कई सामाजिक संस्थाओं के संरक्षक है), पुष्पा गुप्ता, श्वेता सैनी प्रबल दावेदार माने जाते हैं टिकट के। भाजपा विधायक बनवारी लाल सिंघल को हराने के लिए पार्टी किसी वैश्य या पुरुषार्थी समाज के कार्यकर्ता को टिकट देने के मूड में है। जिससे भाजपा का परम्परागत वोट बैंक माने जाने वाले वैश्य और पुरुषार्थी समाज को कांग्रेस की तरफ लाया जा सके। ऐसे में लंबे समय से कांग्रेस के साथ अलवर व्यापार जगत में एक्टिव रमेश जुनेजा का नाम काफी तेजी से उभरा है। पुष्पा गुप्ता भी दावेदार है।
रमेश जुनेजा को टिकट मिलने पर अलवर शहर के करीब पचास हजार पुरुषार्थी समाज के साथ इतनी ही संख्या में वैश्य समुदाय भी कांग्रेस के साथ जुड़ सकता है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व इस सीट को फतह करने के लिए वैश्य-पुरुषार्थी समाज पर दांव खेलने के मूड में है। ब्राह्मण, एससी-एसटी वर्ग भी कांग्रेस विचारधारा से जुड़ा हुआ है। दस साल से भाजपा इस सीट पर काबिज है। अगर कांग्रेस ने पुरुषार्थी या वैश्य समाज पर दांव खेला तो भाजपा को अपने परम्परागत वोट बैंक से हाथ धोना पड़ सकता है, वहीं एक दशक से भाजपा की झोली में जा रही यह सीट कांग्रेस जीत सकती है। खैर अब देखना है कि इस सीट को जीतने के लिए पार्टी किसे टिकट देती है और किसका भाग्य चमकता है। वैसे इस बार प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इंकमबैंसी का जबरदस्त माहौल है। विभिन्न मीडिया चैनलों के सर्वे में भी प्रदेश में कांग्रेस को 125 से 145 सीटें मिलना बताया जा रहा है।