जयपुर। आनंदपाल एनकाउंटर के 10 दिन बाद भी उसके शव का अंतिम संस्कार नहीं होने के मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग ने स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लिया है। आयोग ने प्रदेश के गृह विभाग के प्रमुख सचिव से पूछा है कि परिवार यदि अंतिम संस्कार का अपना दायित्व पूरा नहीं करता है तो क्या सरकार उसमें दखल दे सकती है या नहीं। आयोग का यह मानना है कि अंतिम संस्कार मानवाधिकारों का हिस्सा है।

आयोग अध्यक्ष प्रकाश टाटिया ने प्रसंज्ञान लिया। इस मामले में अब 12 जुलाई को पुन: विचार किया जाएगा। आयोग ने कहा कि भ्रूण अवस्था में ही मानव अधिकारों की शुरुआत हो जाती है। गरिमामय जीवन जीने का अधिकार हर व्यक्ति को है। मानव की मृत्यु के बाद उसका रीति के अनुसार अंतिम संस्कार भी मानव अधिकारों में ही शामिल है। आयोग का यह मानना है कि अंतिम संस्कार एक मृत व्यक्ति का ऐसा अधिकार है, जिसे वह स्वयं हासिल नहीं कर सकता। भू्रण की रक्षा के समान ही अंतिम संस्कार भी राज्य सरकार का दायित्व है। मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के संबंध में उसके परिवार के सदस्यों का दायित्व होता है और वे अक्सर अपना दायित्व निभाते भी है। आयोग ने कहा कि मृत व्यक्ति की देह को अंतिम संस्कार से वंचित रखना एक बेहद संवेदनशील व भावनाओं से जुड़ा मामला है। इसमें मृतक के शरीर के मान और सम्मान का प्रश्न भी निहित है।

आयोग ने इस मामले में सवाल भी उठाए और गृह सचिव से पूछा है कि

-अंतिम संस्कार मृत व्यक्ति का अधिकार है, क्या किसी की देह को अन्य प्रयोजन के लिए रखा जा सकता है?

-मृतक की देह स्वयं असहाय होती है ऐसे में उसके हितों की रक्षा करने का जिम्मा या दायित्व सरकार का नहीं?

-ऐसी कौन सी परिस्थितियां है, जब सरकार या परिवार द्वारा अंतिम संस्कार को रोका जा सकता है्?

-यदि परिवार ही अंतिम संस्कार नहीं करें तो इसके अन्य विकल्प क्या हैं?

-यदि परिवार अंतिम संस्कार को लेकर अपना दायित्व पूरा नहीं करता है तो अंतिम संस्कार करने का अधिकार सरकार का है या नहीं?

-अंतिम संस्कार नहीं करने से दूसरों लोगों पर क्या विपरित असर नहीं होता?

-देह को जबरन रखकर मांग मनवाना अमानवीय कृत्य नहीं है क्या?

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