– सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया
दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। अदालत ने पीएमएलए के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मिले गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के तहत गिरफ्तारी मनमानी नहीं है।
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने पीएमएलए के उन प्रावधानों की वैधता को कायम रखा है, जिनके खिलाफ आपत्तियां लगाई गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने विजय मदनलाल चौधरी/ यूनियन ऑफ इंडिया केस में फैसला सुनाया। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिंदबरम, महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती समेत 241 याचिकाकर्ताओं ने पीएमएलए के तहत ईडी द्वारा की गई गिरफ्तारी, जब्ती और जांच की प्रक्रिया को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायत ईसीआईआर को प्राथमिकी के बराबर नहीं माना जा सकता है। ये ईडी का इंटरनल डॉक्यूमेंट है। ईडी का गिरफ्तारी का अधिकार, सीज करने का अधिकार, संपत्ति अटैच करना, रेड डालना और बयान लेने के अधिकार बरकरार रखे गए हैं। ईसीआईआर रिपोर्ट आरोपी को देना जरूरी नहीं है। गिरफ्तारी के दौरान केवल कारण बता देना ही काफी है। पीएमएलए में 2018-19 में हुए संशोधन क्या फाइनेंस एक्ट के तहत भी किए जा सकते हैं? इस सवाल पर 7 जजों की बेंच मनी बिल के मामले के तहत विचार करेगी।
याचिका में कहा था गिरफ्तारी, कुर्की, जब्ती का अधिकार गैर-संवैधानिक पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, जमानत, संपत्ति की जब्ती या कुर्की करने का अधिकार क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट के दायरे से बाहर है। दायर की गई याचिकाओं में मांग की गई थी कि पीएमएलए के कई प्रावधान गैर संवैधानिक हैं, क्योंकि इनमें संज्ञेय अपराध की जांच और ट्रायल के बारे में पूरी प्रोसेस फॉलो नहीं की जाती है, इसलिए ईडी को जांच के समय सीआरपीसी का पालन करना चाहिए। इस मामले में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी समेत कई वकीलों ने अपना पक्ष रखा।
– जांच के लिए आए 33 लाख केस
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच को बताया कि पीएमएलए के तहत 4700 मामलों की जांच की गई। अब तक केवल 313 गिरफ्तारियां हुई हैं। 388 केस में तलाशी की गई है। ये यूके, यूएसए, चीन, ऑस्ट्रेलिया, हॉन्गकॉन्ग, बेल्जियम और रूस की तुलना में काफी कम है। ईडी ने पिछले पांच साल में दर्ज 33 लाख अपराधों में से केवल 2186 मामलों को जांच करने का फैसला किया है। ईडी ने अब तक एक लाख करोड़ से ज्यादा की संपत्ति अटैच की है और 992 मामलों में चार्जशीट दायर की है। ब्लैक मनी को लीगल इनकम में बदलना ही मनी लॉन्ड्रिंग है। पीएमएलए देश में 2005 में लागू किया गया। मकसद मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना और उससे जुटाई गई प्रॉपर्टी को जब्त करना है। पीएमएलए के तहत दर्ज किए जाने वाले सभी अपराधों की जांच प्रवर्तन निदेशालय करता है।
ईडी फाइनेंस मिनिस्ट्री के रेवेन्यू डिपार्टमेंट के तहत आने वाली स्पेशल एजेंसी है, जो वित्तीय जांच करती है। ईडी का गठन 1 मई 1956 को किया गया था। 1957 में इसका नाम बदलकर प्रवर्तन निदेशालय कर दिया गया।
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