जयपुर । राजस्थान हाईकोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा देने के संबंध में सवाई माधोपुर फैमिली कोर्ट की ओर से दिए आदेश को रद्द कर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने प्रकरण को पुन: सुनवाई के लिए भेजते हुए कहा है कि बच्चे की अभिरक्षा तय करते समय उसकी इच्छा का भी पता लगाएं। वहीं अदालत ने प्रकरण के लंबित रहने के दौरान बच्चे को उसकी मां से मिलने की अनुमति देने को कहा है।
मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नान्द्रजोग और न्यायाधीश जीआर मूलचंदानी की खंडपीठ ने यह आदेश बच्चे की मां लक्ष्मा की ओर से दायर याचिका का निस्तारण करते हुए दिए।
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता लक्ष्मा और भागचंद का विवाह करीब 11 साल पहले हुआ था। याचिकाकर्ता ने करीब सात साल पहले सोनू को जन्म दिया। वहीं दंपत्ति के बीच विवाद होने पर मामला सवाई माधोपुर फैमिली कोर्ट पहुंचा। जहां अदालत ने गत 28 अप्रैल को सोनू की अभिरक्षा पिता भागचंद को सौंपी। फैमिली कोर्ट ने मां लक्ष्मा को उससे मिलने की अनुमति नहीं दी। इसे लक्ष्मा की ओर से अदालत में चुनौती देते हुए कहा गया कि बच्चा छोटा है।
इसलिए उसकी अभिरक्षा याचिकाकर्ता को सौंपी जाए। जिसका विरोध करते हुए बच्चे के पिता की ओर से अधिवक्ता धर्मेन्द्र शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास आय का कोई साधन नहीं है। वह स्वयं अपने माता-पिता के साथ रहती है। ऐसे में वह बच्चे का लालन-पालन ढंग से नहीं कर सकेगी। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर मामले को पुन: सुनवाई के लिए भेजते हुए प्रकरण के निस्तारण तक बच्चे को मां से मिलने की अनुमति देने को कहा है।