– कोर्ट ने जहरखुरानी के अभियुक्त को दस साल की सजा देते हुए जहरखुरानी मामले में लापरवाही बरतने पर दिए कार्रवाई के आदेश
जयपुर। बस यात्री को जहरीला पदार्थ खिलाकर उसकी राशि, फोन-कपड़े व अन्य सामान चुराने के एक मामले में अनुसंधान में लापरवाही बरतने पर जयपुर की एक अदालत ने मामले में अनुसंधान कर रहे एएसपी, थानाधिकारी, एएसआई और एक चिकित्सक के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। एडीजे कोर्ट 12 जयपुर महानगर तिरुपति कुमार गुप्ता ने मामले में आरोपी कोटपूतली निवासी महेन्द्र कुमार को दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाते हुए इन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि 17 नवम्बर, 2010 को जालुूपुरा थाने में दर्ज इस मुकदमे का अनुसंधान करने वाले एएसआई सुरेन्द्र कुमार, चार्ज शीट किता करने वाले तत्कालीन थानाधिकारी एवं चालान पेश करने के आदेश देने वाले तत्कालीन पुलिस उप अधीक्षक (सीओ) के खिलाफ कार्यवाही करने के आदेश देते हुए इसकी एक प्रति प्रमुख शासन सचिव गृह विभाग एवं प्रमुख शासन सचिव कार्मिक विभाग को भेजने को कहा है। कोर्ट ने पीडि़त का लापरवाही पूर्वक मेडिकल मुआयना करने वाले डॉक्टर डी.के. नागर के खिलाफ भी अनुशासनात्मक विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए आदेश की प्रति निदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं को भिजवाने को कहा है। पुलिस ने आरोपी के पास 17 दिन बाद जहरीली औषधि और बिस्किट जब्त किए थे। इस पर कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त ऐसा ही और अपराध करने का आशय रखता था।
लोक अभियोजक महावीर सिंह किशनावत ने कोर्ट को बताया कि गांव सालाहेड़ा-तिजारा (अलवर) निवासी शम्भू सिंह 15 नवम्बर 2010 को सुबह 10.15 बजे धारुहेड़ा से निजी बस में जयपुर आ रहा था। केबिन में बैठा सहयात्री ने नीमराना के पास उसे जहरीली चाय व चिप्स खिलाकर बेहोश कर उसकी नकदी और सामान चुरा कर ले गया था। पीडि़त को दो दिन बाद अस्पताल में होश आया था। जालूपुरा थाने में एएसआई सुरेन्द्र सिंह ने पीडि़त के धारा 161 में बयान ही नहीं लिए। प्रकरण में मुख्य गवाह पीडि़त, डॉक्टर एवं शिनाख्ती करने वाले एसडीएम को गवाही की सूची में ही नहीं रखा। सुरेन्द्र सिंह ने नीमराना का मौका-मुआयना नहीं किया और ना ही नक्शा बनाया। डॉक्टर डी.के. नागर और अनुसंधान अधिकारी सुरेन्द्र कुमार ने कदम-कदम पर लापरवाही बरती। जिरह के दौरान डॉक्टर ने कहा, उसने 40 वर्षीय पीडि़ता का मेडिकल किया। सुरेन्द्र ने 55 वर्ष के व्यक्ति के पर्चा बयान लेना बताया। डॉक्टर ने कोई ओपिनियन भी अंकित नहीं की। मरीज के हस्ताक्षर/अंगूठा निशानी भी नहीं है। इस लापरवाही पर कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए।