मकर संक्रांति शुक्रवार को है। मकर संक्रांति की प्रतीक्षा सब को रहती है। खासकर पतंगबाजी का शौक रखने वालों को। मकर संक्रांति पर्व पर जयपुर में पतंगबाजी का काफी पुराना शौक रहा है। चाहे बुजुर्ग हो या बच्चे हर कोई इस पर्व पर छत पर नजर आता है। उनके एक हाथ में चरखी तो दूसरे हाथ में आकाश में उड़ती पतंग की डोर रहती है। वातावरण में वो काटा और वो मारा का शोर। हर छत पर बड़े-बुजुर्ग, जवान, बच्चे और महिलाएं पतंगबाजी में मशगूल रहती है। डीजे पर नाच-गान होता है तो फीणी, तिल के लड्डू और गरमागरम पकौडिय़ों का स्वाद भी चलता रहता है। पतंगबाजी के चलते जहां उल्लास नजर आता है, वहीं पक्षियों के लिए यह जानलेवा भी साबित होता जा रहा है। जाने-अनजाने में पतंगों की डोर में फंसकर पक्षी लहुलूहान हो जाते हैं। वहीं बहुत से अपनी जान तक गंवा देते हैं। मांझे से कबूतर, कौवे, चिडिय़ा, तोते ही नहीं, आदमी भी इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा रहे हैं। हर साल मांझे से गला कटने से बच्चे व जवान की मौतें सामने आती है। हाल ही नागौर में एक बच्चा की मौत चाइनीज मांझा से गला कटने से हुई। तेज धार वाले मांझे के कारण वाहन चालकों के गले ही नहीं नाक, मुंह, हाथ तक कट जाते हैं। कई तो इतने ज्यादा कट जाते हैं कि उनका ऑपरेशन करना पड़ता है। मकर संक्रांति पर्व के आस-पास के दिनों में यह ज्यादा देखने को मिलते हैं। सरकार भी अपील करती है कि चाइनीज मांझा से पतंगबाजी ना करें। इस पर प्रतिबंध भी है, फिर भी यह बाजार में खूब बिकता है। चाइनीज मांझा में धातुओं के मिश्रण होने से मजबूत और धारदार होता है। आसानी से टूटता नहीं है। इस मांझे के कारण लोगों के गले कट रहे हैं तो पक्षियों की जान सांसत पर है। पतंगबाजी के इस मौसम में आदमी तो सतर्क होकर गले में दुपट्टा या मफलर लगाकर निकलता है। वहीं दुपहिया वाहनों के आगे लोहे के स्टेण्ड भी लगा देते है ताकि डोर से बचा सके। लेकिन पक्षियों को इस बारे में भान नहीं है। वे ना तो मफलर लगा सकते हैं और ना ही दुपट्टा। उन्हें अपना व अपने बच्चों का पेट भरने के लिए भोजन की तलाश में उडऩा पड़ता है। खासकर सुबह और शाम के वक्त। सुबह और शाम को ही पतंगबाजी का जोर अधिक रहता है। ऐसे में हमें भी चाहिए कि पतंगबाजी के चलते पक्षियों की जान खतरे में ना पड़े। इसके लिए सुबह और शाम को पतंगबाजी से बचें, ताकि भोजन की तलाश में सुबह निकलने वाले और फिर शाम को भोजन लेकर घर लौटे पक्षियों पर कोई आंच ना आए। दिन में मात्र दो घंटे पतंगबाजी पर विराम लगा सके तो हजारों पक्षियों की जान को बचा सकेंगे। यह तभी पूरा हो पाएगा, जब हम सुबह व शाम की पतंगबाजी पर रोक लगाए। पतंगबाजी सिर्फ दिन में ही करें।
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