-बाल मुकुन्द ओझा
भारत सरकार 2016 से प्रत्येक वर्ष धन्वंतरि जयंती (धनतेरस) के अवसर पर आयुर्वेद दिवस मनाती है। इस वर्ष यह दिवस 23 अक्टूबर को देशभर में मनाया जा रहा है। आयुर्वेद दिवस का इस वर्ष का विषय हर दिन हर घर आयुर्वेद रखा गया है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य देश के लोगों के मध्य इस पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के बारे में जागरूकता में वृद्धि करना है। आयुर्वेद का जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पहले भारत में हुआ था। विश्व स्वास्थ्य संगठन
द्वारा भी आयुर्वेद को एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्वीकार किया गया है। आयुर्वेद प्राचीन भारतीय प्राकृतिक और समग्र वैद्य-शास्त्र चिकित्सा पद्धति है। संस्कृत भाषा में आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान। आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों मूल तत्त्वों के संतुलन से कोई भी बीमारी नहीं हो सकती, परंतु यदि इनका संतुलन बिगड़ता है, तो बीमारी शरीर पर हावी होने लगती है। अंग्रेजी दवाएं रोग से लड़ने के लिए डिजाइन की जाती हैं, वहीं आयुर्वेदिक औषधियां रोग के विरुद्ध शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती हैं ताकि आपका शरीर खुद उस रोग से लड़ सके। आयुर्वेद के अनुसार कोई भी शारीरिक रोग शरीर की मानसिक स्थिति, त्रिदोष या धातुओं का संतुलन बिगड़ने के कारण होती है। आयुर्वेद चिकित्सक मरीज की रोग प्रतिरोध क्षमता, जीवन शक्ति, पाचन शक्ति, दैनिक दिनचर्या, आहार संबंधी आदतों और यहां तक कि उसकी मानसिक स्थिति की जांच करके रोग निदान करते हैं। आयुर्वेद रोग को जड़ से खत्म करता है। हम कह सकते है आयुर्वेद स्वास्थ्य की देखभाल करने की कारगर प्रणाली है।
कोरोना संकट में प्रकृति और ऋषि मुनियों द्वारा अपनायी जाने वाली आयुर्वेद चिकित्सा ने हमारा ध्यान खिंचा है। कोरोना में सर्दी, जुकाम, खांसी, गले में खराश आम बात है। दादी नानी के आयुर्वेद नुस्खों ने इनका उपचार भी हमें बताया है। ये नुस्खे इतने ज्यादा कारगर हैं कि डॉक्टर और मेडिकल साइंस भी उन्हें मानने से मना नहीं करते हैं। हल्दी वाला दूध हो या नमक मिले गरम पानी के गरारे कोरोना के जुकाम और गले दर्द में दोनों ही कारगर इलाज है। अदरक को पानी में उबालकर और फिर शहद के साथ खाया जाए तो यह कफ, गले में खराश और गला खराब होने की दिक्कत से छुटकारा दिला सकती है। अदरक को शहद के साथ खाने से गले में होने वाली सूजन और जलन में भी राहत मिलती है। इसी भांति अजवायन, लोंग, काली मिर्च, तुलसी गिलोय, मलेठीयुक्त पान, शहद, दालचीनी आदि के नुस्खे भी संजीवनी साबित हुए है। उल्टा लेटकर कोरोना महामारी के बाद पूरे विश्व का ध्यान भारत की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली की ओर आकर्षित हुआ है। आयुर्वेद भारत की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। आयुर्वेदिक औषधियां अनेक जटिल रोगों के निदान में कारगर पायी गयी हैं। करोड़ों भारतवासी अपने घरों में रहकर कोरोना का मुकाबला कर रहे है। योग, व्यायाम और दादी नानी की देशी चिकित्सा जिसे हम आयुर्वेदिक प्रणाली भी कह सकते है से लोगों को बहुत लाभ मिला है इसमें शंका की कोई बात नहीं है। सचमुच प्रकृति, पर्यावरण और आयुर्वेद का अद्भुत संगम है। मानव जीवन के लिए तीनों कारकों के एकाकार होने की आज के समय महती जरूरत है। इससे प्रकृति को जहाँ साफ सुथरा रखा जा सकता है वहां
पर्यावरण भी हमारे अनुकूल होगा जिससे आयुर्वेद को भी संरक्षित रखा जा सकेगा। जो मनुष्य प्रकृति के जितना अधिक अनुकूल है। स्वास्थ्य की दृष्टि से वह व्यक्ति उतना ही अधिक निरापद एवं व्याधियों के आक्रमण से दूर होगा। मौजूदा वक्त में विभिन्न देशों के छात्र आयुर्वेद और पारंपरिक दवाओं का अध्ययन करने के लिए भारत आ रहे हैं। यह दुनिया भर में लोक कल्याण के बारे में सोचने का सबसे माकूल वक्त है। आयुर्वेद पूरे शरीर को सुरक्षित रखता है। आयुर्वेद भारत की संस्कृति और प्रकृति से जुड़ा हुआ है। आयुर्वेद और योग भारत द्वारा पूरे मानव समाज और पृथ्वी को दिया अनमोल उपहार है।