-कौशल मूंदड़ा
उदयपुर, 03 अक्टूबर। नीट काउंसलिंग के दौरान अपात्र छात्र को डेंटल कॉलेज में प्रवेश के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय जयपुर ने नीट और कॉलेज दोनों को गंभीर चूक का दोषी मानते हुए याचिकाकर्ता छात्र को 10- 10 लाख रुपये मुआवजा देने के आदेश जारी किए हैं।
मामला उदयपुर के दर्शन डेंटल कॉलेज से जुड़ा हुआ है। याचिकाकर्ता छात्र नीतेन्द्र कुमार मीणा ने 2019 में नीट यूजी परीक्षा दी और मेरिट सूची प्रकाशित होने के बाद काउंसलिंग प्रक्रिया से भी गुजरा। उसे जुलाई 2019 में दर्शन डेंटल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में प्रोविजनल अलॉटमेंट दिया गया। आवंटन के बाद उसने आवश्यक फीस और सीनियर सेकंडरी सर्टिफिकेट सहित जरूरी दस्तावेज जमा करा दिए। उसे झटका तब लगा जब अगस्त 2020 में प्रथम वर्ष की परीक्षा से पहले उसे राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से पत्र मिला कि सीबीएसई 12वीं बोर्ड परीक्षा के रसायन विज्ञान के थ्योरी पेपर में फेल होने के कारण वह अपात्र है। एक साल पढ़ लेने के बाद उसे अपनी अपात्रता का पता चला और उसने न्यायालय की शरण ली।
मामले में याचिकाकर्ता छात्र, सीबीएसई, नीट काउंसलिंग बोर्ड, डेंटल कॉलेज व यूनिवरसिटी का पक्ष सुनने के बाद जस्टिस अशोक कुमार गौड़ की सिंगल-जज बेंच ने बीती 14 सितम्बर को नीट व कॉलेज को गंभीर चूक का दोषी मानते हुए छात्र को 10- 10 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्णय सुनाया।
सुनवाई में याचिकाकर्ता के एडवोकेट चंद्रभान शर्मा ने दलील दी कि सीबीएसई की मार्कशीट के मुताबिक उसका रिजल्ट ‘पास’ दिखाया गया है। याचिकाकर्ता ने यह भी स्वीकार किया कि केमेस्ट्री में उसे ‘थ्योरी में फेल’ दिखाया गया है। याचिकाकर्ता का तर्क था कि सभी विषयों के लिए न्यूनतम उत्तीर्ण अंक 33 हैं और उसने रसायन विज्ञान सहित सभी विषयों में इससे अधिक अंक प्राप्त किए हैं। याचिकाकर्ता ने नीट- यूजी, मेडिकल एंड डेंटल काउंसलिंग बोर्ड की सूचना पुस्तिका का भी हवाला दिया, जिसमें आवेदकों के लिए पात्रता मानदंड निर्दिष्ट किए गए हैं। याचिकाकर्ता की व्याख्या थी कि पुस्तिका किसी विषय के थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों घटकों में उत्तीर्ण अंक निर्दिष्ट नहीं करती है, यदि परिणाम ‘पास’ घोषित किया गया है। याचिकाकर्ता के अनुसार, सभी विषयों में केवल 40 प्रतिशत कुल अंक और सभी में उत्तीर्ण अंक हासिल करने की आवश्यकता थी। याचिकाकर्ता के वकील ने आगे तर्क दिया कि नामांकन से इनकार करना अनुचित था क्योंकि याचिकाकर्ता ने कॉलेज में एक वर्ष पूरा कर लिया है और वर्तमान स्थिति याचिकाकर्ता द्वारा अधिकारियों को गुमराह करने के बाद की नहीं है।
राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज के वकील रवि चिरानिया ने सीबीएसई की ओर से मार्कशीट जारी करने में एक ‘मानवीय त्रुटि’ और नीट परीक्षा प्राधिकरण और काउंसलिंग बोर्ड की ओर से दस्तावेजों के सत्यापन में गंभीर चूक का आरोप लगाया। केवल अंकतालिका में ‘पास’ के रूप में घोषणा याचिकाकर्ता को तब तक पात्रता प्रदान नहीं करेगी, जब तक कि उसने विषय के थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों पहलुओं को पारित नहीं किया हो। विश्वविद्यालय और सीबीएसई दोनों ने अदालत का ध्यान सीबीएसई उप-नियमों के खंड 40.1 (द्वितीय) की ओर आकर्षित किया, जिसमें कहा गया है कि यदि किसी विषय में प्रैक्टिकल शामिल है तो छात्र को प्रैक्टिकल और थ्योरी दोनों में अलग-अलग 33 प्रतिशत अंक प्राप्त करने होंगे।
सीबीएसई के वकील एमएस राघव का तर्क था कि याचिकाकर्ता ने उप-नियमों के खंड 43 के अनुसार पांच विषयों और एक अतिरिक्त विषय का चयन किया था, इसलिए उन्हें उन पांच विषयों के आधार पर ‘पास’ घोषित किया गया था। तब भी जब केमेस्ट्री के लिए उनका पोजीशनल ग्रेड ‘ई’ था। उन्होंने सीबीएसई की ओर से किसी भी तरह की ‘मानवीय त्रुटि’ से इनकार किया।
दस्तावेज सत्यापन के मुद्दे पर नीट काउंसलिंग बोर्ड ने प्रस्तुत किया कि यह वाले कॉलेज की जिम्मेदारी थी कि वह मूल दस्तावेजों और उम्मीदवार की पात्रता से संबंधित दस्तावेजों की जांच करे, जिसमें 12वीं कक्षा की मार्कशीट भी शामिल है। साथ ही बोर्ड ने यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ता उम्मीदवार जो एसटी श्रेणी से संबंधित थे, व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी थे कि वह बुकलेट के अनुसार एसटी उम्मीदवारों के लिए पात्रता मानदंड को पूरा करते हैं या नहीं।
प्रतिवादी दर्शन डेंटल कॉलेज के वकील एडवोकेट जेआर तांतिया का तर्क रहा कि यह नीट समिति का दायित्व था कि वह उम्मीदवार को प्रोविजनल अलॉटमेंट लेटर जारी करते समय प्रस्तुत किए गए मूल दस्तावेजों की सत्यता का पता लगाए।
सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस अशोक कुमार गौड़ ने निष्कर्ष में कहा कि याचिकाकर्ता ने भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान/ बॉयोकेमिस्ट्री के विषयों को व्यक्तिगत रूप से पास करने के लिए अनिवार्य मानदंडों को पूरा नहीं किया है।
अदालत ने यह भी कहा कि कॉलेज को योग्यता में विसंगति के बारे में तभी पता चला जब परीक्षा फॉर्म भरे जाने थे और विश्वविद्यालय द्वारा नामांकन किया जाना था और इसे इस तर्क से माफ नहीं किया जा सकता कि वे पिछले वर्ष नीट कमेटी के प्रोविजनल अलॉटमेंट लेटर के अनुपालन के अलावा किसी विकल्प से रहित थे।