जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव की आहट होते ही भाजपा सरकार और पार्टी में भी फेरबदल की आहट होने लगी है। दिसम्बर में विधानसभा चुनाव होने को है। अजमेर, अलवर लोकसभा और मांडलगढ विधानसभा सीट पर भाजपा की करारी हार से सत्ता-संगठन में आमूल-चूल परिवर्तन की खूब चर्चा हो रही है। भाजपा सरकार के कुछ मंत्रियों को छुट्टी हो सकती है तो संगठन में भी बड़े पदों पर गाज गिर सकती है। सबसे बड़ी चर्चा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को बदले जाने की है। अशोक परनामी को हटाया जा सकता है।
ऐसी सूचना है कि इसकी हरी झंडी भी मिल गई है। वैसे भी चुनावी समीकरणों के हिसाब से प्रदेश की सोशल इंजीनियरिंग में अशोक परनामी फिट नहीं बैठ पा रहे हैं। हालांकि वे पार्टी के बड़े नेता है और लम्बे समय से पार्टी की मजबूती के लिए कार्य करते रहे हैं।
कहीं ना कहीं चुनावी व जातिगत समीकरणों में परनामी फिट नहीं है। ऐसे में इनके स्थान पर ऐसे कद्दावर नेता को नियुक्त किया जा सकता है, जिसका कार्यकर्ताओं व जनता में पहचान हो और उसका जनाधार हो। साथ ही सभी जातियों व पार्टी गुटों में सर्वमान्य हो। जिसमें रुठे हुए नेताओं को मनाने की काबिलियत हो।
बड़ी चर्चा है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े विधायक या मंत्री को जिम्मेदारी दी जा सकती है, साथ ही यह भी संभावना है कि नाराज चल रही ब्राह्मण व राजपूत वर्ग के किसी कद्दावर नेता को अध्यक्ष बनाया जा सकता है। यह भी संभावना है कि प्रदेश में सर्वमान्य हल नहीं निकले पर केन्द्रीय नेतृत्व दखल दे सकता है और किसी केन्द्रीय मंत्रियों को राजस्थान इकाई की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
अध्यक्ष पद के लिए कई नाम भी चल रहे हैं। बताया जाता है कि केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह राठौड़, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, अर्जुन मेघवाल के अलावा सामाजिक अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी, सतीश पूनिया, सांसद ओम बिरला, चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ आदि नेताओं नाम अध्यक्ष पद के लिए सामने आ रहे हैं।
हालांकि यह भी तय है कि सीएम वसुंधरा राजे की राय भी अध्यक्ष पद पर अहम रहेगी। बिना उनकी राय के अध्यक्ष पद पर किसी को नियुक्ति नहीं हो सकती है। ऐसे में सत्ता और संगठन की एकराय के आधार पर ही सर्वमान्य नेता को ही अध्यक्ष पद मिल सकता है और वो चुनाव में सफल भी हो सकता है।