जयपुर। राजस्थान के जयपुर जिले के ग्राम हाड़ौता निवासी ब्रज शर्मा (हरियाणा ब्राह्मण) एवरेस्ट फतह करने मेें आखिरकार कामयाब हो गए। वे 20 मई को एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचे। इससे पहले भी उन्होंने वर्ष 2015 में एवरेस्ट फतह करने का प्रयास किया। लेकिन उस दरम्यान नेपाल में शक्तिशाली भूंकप आने से वे कामयाब नहीं हो सके थे। एवरेस्ट फतह करने के साथ ही ब्रज शर्मा देश के पहले डिफेंस सिविलियन बन गए हैं। ब्रज शर्मा देश में एक रनर के तौर पर भी पहचान बनाए हुए हैं। ब्रज शर्मा ने जिन विषम परिस्थितियों में यह मुकाम हासिल किया, उन परिस्थितियों में एवरेस्ट को फतह कर पाना एकाएक मुमकिन न था। जयपुर जिले के चौमूं तहसील स्थित ग्राम हाड़ौता निवासी ब्रज शर्मा जब वर्ष 2015 में एवरेस्ट फतह करने में असफल रहे तो उन्होंने एक बार फिर उस दुर्गम चढ़ाई पर चढऩे की ठान ली। इस बार ब्रज शर्मा ने उसी रास्ते से चढऩा शुरू किया, जिस रास्ते से वर्ष 1953 में सबसे पहले एवरेस्ट फतह करने वाले शेरपा तेनजिंग नोर्गे गए थे। ब्रज शर्मा ने एवरेस्ट पर चढऩे के लिए अपनी 6 सदस्यीय टीम के साथ 15 मई की रात 2 बजे अपने बैंस कैंप को छोड़ा। लगातार 12 घंटे की चढ़ाई कर वे कैंप-2 पर पहुंच गए। यहां से फिर 17 मई को चढ़ाना शुरू किया और 6 घंटे में 7300 मीटर की ऊंचाई पर बने कैंप-3 पर पहुुंचे। इसके बाद 18 मई को सुबह कैंप-4 में पहुंचे।
-डेथ जोन में बिताए 28 घंटे
एवरेस्ट की 8 हजार मीटर ऊंचाई वाली इस चोटी पर हवाओं का रुख बेहद डराने वाला था। हवाएं 90 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी। तापमान भी माइनस 40 डिग्री तक पहुंच गया था। ऐसे में यहां टिके रहना मुमकिन न था। इसे डेथ जोन के नाम से जाना जाता है। इससे ऊपर महज 848 मीटर ऊंचाई पर ही जाना था। यहां ऑक्सीजन नहीं होती। इस जगह पर यदि पर्वतारोही मुश्किल में फंस जाए तो सहायता नहीं मिलती, ऐसे में उनका निकलना नामुमकिन ही होता है। ऐसे में हमारा लक्ष्य 19 मई को हर हाल में फतह करना था। हवाओं का जोर लगातार बढ़ता जा रहा था तो तापमान भी उसी के अनुरुप गिरता चला गया। टैंट उडऩे लगे तो हमने लेटे-लेटे ही पांवों को ऊपर कर टैंट को थामे रखा। टीम के अन्य साथी चले गए, लेकिन हम 6 जने बिना ऑक्सीजन वाले डेथ जोन में 28 घंटे टिके ही रहे।
-1500 डॉलर में खरीदा एक-एक ऑक्सीजन सिलेंडर
ब्रज शर्मा ने बताया कि डेथ जोन में ऑक्सीजन जरुरी थी। इसका पहले से ही मुझे आभास था। डेथ जोन में इतने लम्बे समय तक रुके रहने के कारण एक सिलेंडर इसके लिए पर्याप्त साबित नहीं हुआ। जो साथी लौट रहे थे, उनसे बात कर ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदे, वो भी 1500 डॉलर में. इसके बाद लगातार मॉस्क पर ही रहे और एवरेस्ट फतह के सपने को पूरा कर लिया।
-रनर के तौर पर भी बनाई पहचान
ब्रज शर्मा की पहचान यूं तो अब एवरेस्ट फतह करने वाले शख्स के तौर पर बन गई, लेकिन उन्हें एक धावक के तौर पर भी जाना जाता है। ब्रज शर्मा ने लगातार दो साल तक जयपुर मैराथन में शिरकत की। ट्रेड मील पर घंटों लगातार दौड़कर रिकॉर्ड बनाया।
-जनप्रहरी की ताजातरीन खबरों के लिए लाइक करें।