जयपुर। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा की अति विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण तिथि के दिन मनाया जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार अपने साथ प्रकृति की अनोखी सुर यता लेकर आता है। यह त्योहार विश्वभर का एक ऐसा अनूठा त्योहार है जो अपने साथ ढेर सारा प्यार, स्नेह, संबंधों की मिठास एवं पवित्रता के आध्यात्मिक महत्व को लेकर आता है। युगों से मनाए जाने वाले इस पवज़् के साथ कई युग कथाएं जुड़ी हुई हैं।
पुराणों में कहा गया है कि देव-असुर संग्राम में जब देवता निरंतर पराजित होने लगे, तब इंद्र ने अपने गुरु बृहस्पती से रण में विजयश्री दिलाने वाले उपाय की प्रार्थना की। इस प्रार्थना को सुनकर देवगुरु ने श्रावण पूर्णिमा के दिन आकर रेशों की राखी बनाकर उसे रक्षा विधान संबंधी मंत्रों से अभिमंत्रित करके इंद्र की कलाई पर रक्षा कवच के रूप में बांध दिया जिससे देवों में आत्मविश्वास जागा और वे विजयी रहे।
-रक्षाबंधन की ये कथाएं हैं प्रचलित
कई कथाएं रक्षा बंधन के पर्व के साथ जुड़ी हुई हैं। जिनमें से रानी कर्णवती-हुमायुं की कथा, चांदबीबी-महाराणा प्रताप की कथा और रमजानी-शाह आलम सानी की कथा अति प्रसिद्ध है। इतिहास के जानकार तो यह भी बताते हैं कि अंतिम बादशाह बहादुरशाह जफर के शासनकाल में रक्षाबंधन के पर्व की शान-शौकत खूब थी और इस अवसर पर किले में आठ दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती थीं। हिंदू महिलाएं आकर उन्हें राखी बांधती और ब्राह्मण आशीर्वाद देते थे और बादशाह भी उन सभी को तरह-तरह के उपहार दिया करते थे। वास्तव में देखा जाए तो इस त्योहार का रूप प्रारंभ में बहुत ही ऊंची और अच्छी भावना लिए हुए था, जो समय के अंतराल में धूमिल हो गई।
-राखी पवित्रता का प्रतीक होती है
यह तो सर्वविदित तथ्य है कि भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटु बकम में विश्वास करती है अर्थात् सारा विश्व एक परिवार है। वसुधैव कुटु बकम हमें यही सिखाता है कि संसार की हर नारी को बहन मानकर निष्पाप नेत्रों से देखो और हर नर को भाई मानकर निष्पाप नेत्रों से देखो। अत: बहन जब अपने भैया की कलाई पर राखी बांधती है तो यही संकल्प उसे देती है कि मेरे प्यारे भाई, जैसे तुम अपनी इस बहन को पवित्रता की नजर से देखते हो, दुनिया की सभी नारियों को भी ऐसी ही नजर से निहारना। संसार की सारी नारियां तो तुझे राखी नहीं बांध सकतीं, पर मैं उन सबकी तरफ से यह पवित्रता का बंधन तेरी कलाई पर बांध रही हूं। उन सबकी प्रतिनिधि बनकर मैं तुमसे यह निवेदन करती हूं और आपको प्रतिज्ञाबद्ध करती हूं कि आप निष्पाप बनें।
-क्यों बहनें है कुपोषण का शिकार
भाईयों की भेंट में कई गुना अधिक बहनें आज कुपोषण की शिकार क्यों हैं। इन सभी बातों के ऊपर चिंतन करना हर भाई का परम कर्तव्य है अन्यथा यह त्योहार केवल एक मिठाई के डिब्बे और कुछ उपहार तक सिमट जाएगा। युग परिवर्तन के साथ मान्यताएं बदलने के फलस्वरूप आज न तो बहनें इस मनसा से राखी बांधती हैं न ब्राह्मण। दुर्भाग्य से आज मनुष्य इस त्योहार के आध्यात्मिक रहस्य को भूल गया है और वह इस महान पर्व को एक रीति-रिवाज की तरह ही मनाता है। समय की मांग आज यही है कि हम सभी रक्षाबंधन के इस महापर्व को मूल्यनिष्ठ बनाकर इसे नई गरिमा व नया अर्थ देने का प्रयास करें ताकि हमारी आने वाली पीढिय़ां इससे कुछ नया सीखें और अपने जीवन को मूल्यवान बनाएं।