-घमंड में चूर सरकार से गांवों में मांगेंगे हिसाब, ओबीसी विधेयक गुर्जरों को गुमराह करने की कोशिश, ’काला कानून’ को निरस्त करे सरकार, सदन में कांग्रेस विधायकों का 54 घंटे लंबा धरना
जयपुर। प्रदेश के किसानों का संपूर्ण कर्जा माफी के मुद्दे सहित भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने वाले विवादित विधयेक को निरस्त करने की मांग को लेकर कांग्रेस विधायकों ने निर्दलीय विधायकों के साथ राजस्थान विधानसभा के मानसून सत्र में सदन के भीतर 54 घंटे लंबा धरना दिया। गुरूवार सायंकाल सदन अनिष्चितकालीन स्थगित होने के बाद कांग्रेस विधायकों ने अपना धरना तो समाप्त कर दिया, लेकिन राज्य सरकार की हठधर्मिता पर रोष जाहिर करते हुए राज्यपाल को पत्र लिखकर मांग की है कि वे किसानों का कर्जा माफी और ’काला कानून’ निरस्त करने के संवेदनषील मुद्दों पर प्रदेश हित में दखल दें। राज्यपाल को लिखे पत्र में कांग्रेस विधायकांे के अलावा दो निर्दलीय विधायकों व एक बसपा विधायक ने भी हस्ताक्षर किये हैं।
राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने गुरूवार को एक बयान जारी कर कहा है कि कांग्रेस विधायकों ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा है कि किसान कर्ज में डूबे हुए हैं, उन्हें फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। नोटबंदी के बाद हालात और बिगड़े हैं, प्रदेश में किसान आत्महत्या को विवश हैं लेकिन सरकार किसानों को कर्ज माफी के नाम पर हाईपावर कमेटी बनाकर गुमराह कर रही है। सदन में प्रतिपक्षी विधायकों के लंबे धरने के बाद भी मुख्यमंत्री सदन में उपस्थित नहीं रहीं और राजनीतिक कारणों से अजमेर में घूमती रहीं। जबकि मुख्यमंत्री को सदन में बैठकर किसानों के कर्ज माफी के मसले पर स्पष्ट फैसला करना चाहिए था। डूडी ने कहा कि सदन में सरकार घमंड में चूर रही है लेकिन प्रदेश के हजारों गांवों और ढाणियों में खेत-खलिहान कांग्रेस पार्टी इस लड़ाई को लेकर जाएगी।
नेता प्रतिपक्ष डूडी ने अपने बयान में कहा है कि गुरूवार को सदन में पारित ओबीसी विधेयक में भी सरकार ने गुर्जरों को गुमराह किया है। केन्द्र व राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। सरकार का मन यदि साफ है तो इस विषय को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए पहल करनी चाहिए, इसके अभाव में यह मामला बार-बार न्यायिक प्रक्रिया में अटकता रहेगा। डूडी ने कहा कि सरकार लगातार मामलों को उलझा रही है। सीआरपीसी में संषोधन अध्यादेष के जरिये संवैधानिक उलझनें खड़ी की गई हैं। यह विवादित विधेयक मीडिया व अवाम का गला घोंटने वाला है। इसे प्रवर समिति में भेजने की बजाय सीधे निरस्त करना चाहिए। इसके साथ ही राजस्थान विधानसभा सदस्य (निरर्हता-निवारण) विधेयक 2017 भी भाजपा के अंदरूनी कलह की वजह से प्रस्तुत किया गया है ताकि सत्तापक्ष के विधायकों की नाराजगी शंात की जा सके।