Durga operations
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जयपुर। हाईकोर्ट ने कहा है कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत कार्रवाई के लिए मौजूदा समय में बाल कल्याण अधिकारी व विशेष किशोर पुलिस इकाई बनाने की जरूरत है। यदि इनका गठन नहीं हुआ है तो सामान्य पुलिस से बाल गृह के निरीक्षण में सहयोग नहीं लिया जा सकता। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि जो बच्चे 18 साल से कम हैं उन्हें देखभाल की जरूरत है। बच्चे चाहे स्कूल में रहे या किसी हॉस्टल में और इन्हें कोई भी चलाए, इन संस्थानों का बाल कल्याण समिति से पंजीकरण होना जरूरी है। न्यायाधीश एसपी शर्मा ने यह आदेश बुधवार को कोटा में बिना पंजीकरण के चल रहे इम्मानुयल अनाथालय व स्कूल सहित अन्य संस्थाओं खिलाफ बाल कल्याण समिति कोटा व बाल अधिकारिता विभाग की कार्रवाई को सही करार देते हुए दिए।

अदालत ने इम्मानुयल अनाथालय समिति सहित अन्य की याचिकाओं को खारिज कर दी है। अदालत ने कहा कि संस्थान का हॉस्टल बाल कल्याण समिति के पंजीकरण के बिना चल रहा है। इसलिए संस्थान के बच्चों को तत्काल किसी अन्य गृहों में भेजा जाए और उन्हें वहां पर सुरक्षा, सुविधा व देखभाल मुहैया कराए जाएं। अदालत ने कहा है कि बाल कल्याण समिति संस्थान में किए गए निरीक्षण के आधार पर तत्काल निर्णय करे व याचिकाकर्ता को सुनवाई का मौका देते हुए मामले में अंतिम निर्णय करे। इस पर निर्णय नहीं होने तक अदालत ने संस्थान के परिसर की सील नहीं खोलने को कहा है। अदालत ने कहा कि कोई भी संस्था किसी भी नाम से बालगृह चलाए। उसका किशोर न्याय अधिनियम के तहत निरीक्षण हो सकता है।

याचिका में कहा गया कि बाल कल्याण समिति कोटा व बाल अधिकारिता विभाग ने उनके परिसर को सीज कर दिया है। उन्होंने पूर्व में बालगृह के लिए आवेदन किया था, लेकिन पंजीकरण नहीं हुआ। जिस कारण संस्थान को बालगृह बंद करना पड़ा। अब वहां पर जीवन आशा समिति बालि गृह चला रही है और इसका याचिकाकर्ता से कोई संबंध नहीं है। इस दौरान गत 17 जनवरी को बाल कल्याण समिति व बाल अधिकारिता विभाग की टीम ने उनके यहां पर छापा मारा व उनके रिकार्ड को जब्त कर लिया व हॉस्टल कर्मियों को भी धमकाया। जिसके जवाब में राज्य सरकार की ओर से कहा कि जेजे एक्ट के तहत राज्य सरकार व समिति निरीक्षण के लिए अधिकृत है। कानून में प्रावधान है कि कोई संस्थान कानून का पालन नहीं कर रही है तो उस पर कार्रवाई हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने दिखावे के लिए हॉस्टल को बंद किया था और दो दिन बाद ही पंजीकरण के लिए आवेदन कर दिया। इनमें रह रहे बच्चे प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों के हैं और हो सकता है कि इन्हें बाल तस्करी के जरिए लाया गया हो। इसलिए संस्थान की याचिका खारिज की जाए।

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