जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही भाजपा व कांग्रेस में चुनावी समर तेज हो गया है। भाजपा में फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष का मसला अटका हुआ है, लेकिन इसके बावजूद पार्टी के कार्यक्रम व गतिविधियां खूब हो रही है। अगले महीने से पार्टी गौरव यात्रा शुरु करने जा रही है। वहीं कांग्रेस में भी मेरा बूथ मेरा गौरव कार्यक्रम चालू करके कार्यकर्ताओं में जोश भरा जा रहा है, वहीं चुनाव प्रबंधन के लिए चुनाव अभियान समिति और कार्यवाहक अध्यक्षों को लेकर नेताओं की तलाश शुरु हो गई है। नेताओं के चयन में प्रदेश के जातिगत समीकरणों को देखा जा रहा है। कांग्रेस यह देख रही है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसकी नियुक्ति करती है। उस हिसाब से कार्यवाहक अध्यक्ष व चुनाव अभियान समिति में नियुक्ति का फैसला होगा।
प्रदेश में पार्टी चुनावी तैयारियों और जातिगत समीकरण साधने के लिए मध्यप्रदेश की तर्ज पर दो या चार कार्यकारी अध्यक्ष तथा एक चुनाव अभियान समिति का संयोजक नियुक्त करेगी। इसके लिए ही नामों पर मंथन चल रहा है। चुनाव अभियान समिति की कमान अब तक पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता को सौंपी जाती रही है, लेकिन इस बार राहुल गांधी अध्यक्ष हैं और वे पुराने नेताओं के बजाय युवाओं को पसंद करते हैं। सचिन पायलट कांग्रेस अध्यक्ष हैं और अशोक गहलोत दिल्ली में संगठन महामंत्री के चलते व्यस्त हैं, ऐसे में चुनाव अभियान समिति के संयोजक के रूप में पार्टी यदि कोई बड़ा नाम देखती है तो सी.पी.जोशी या भंवर जितेन्द्र सिंह ही है। भंवर जितेन्द्र सिंह की सम्भावना ज्यादा बताई जा रही है, क्योंकि भंवर जितेन्द्र सिंह राहुल गांधी के विश्वस्त है और युवा हैं। भाजपा में यदि गजेन्द्र सिंह शेखावत अध्यक्ष बनाए जाते हैं तो राजपूत वोट बैंक के लिहाज से भंवर जितेन्द्र उनका जवाब हो सकते हैं।
इसके पीछे एक तर्क यह भी है कि प्रदेश का राजपूत समाज भाजपा का वोट बैंक रहा है, लेकिन कई मुद्दों पर यह समाज पार्टी की खिलाफत कर रहा है। अजमेर, अलवर और मांडलगढ़ उप चुनाव में राजपूत समाज ने भाजपा का बहिष्कार किया था और कांग्रेस को समर्थन दिया था। ऐसे में पार्टी भंवर जितेन्द्र सिंह पर दांव खेलकर भाजपा के मजबूत वोट बैंक राजपूत समाज को साधने का काम कर सकती है। हालांकि, पार्टी का एक धड़ा यह भी मानता है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट, दोनों ही यह नहीं चाहेंगे कि चुनाव अभियान समिति के संयोजक पद पर कोई दमदार या बड़ा नाम आए। दोनों नेता अपने-अपने हाथ में चुनाव की कमान रखना चाहेंगे। ऐसे में समिति में संयोजक पद पर किसी ऐसे नेता को बैठाया जा सकता है, जिसकी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं ज्यादा न हो। पार्टी दो या चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति पर भी विचार कर रही है। जातिगत समीकरणों के हिसाब से अनुसूचित जाति, जनजाति, राजपूत और ब्राह्मण समुदाय से हो सकते हैं। ऐसे में इस पद के लिए भी जनाधार वाले नेताओं की तलाश की जा रही है। जनप्रहरी एक्सप्रेस की यह विशेष रिपोर्ट राकेश कुमार शर्मा चीफ एडिटर की है। अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना ना भूले और ऐसी एक्सक्लुसिव खबरों के लिए हमें सबक्राइब्स करें।