-आरटीआई कार्यकर्ता अशोक पाठक का खुलासा, मानसरोवर आवासीय योजना में दो सौ करोड़ का भूमि घोटाला, परसराम मोरदिया व डीबी गुप्ता पर आपराधिक षड्यंत्र रचकर घोटाले को अंजाम देने का लगाया आरोप
जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में बेशकीमती क्षेत्र में शुमार मानसरोवर में एक बड़ा भूमि घोटाला सामने आया है। यह भूमि घोटाला 1982 में मानसरोवर में अवाप्तशुदा 35 बीघा जमीन से जुड़ा हुआ है। इस भूमि का मुआवजा कोर्ट में जमा होने के बावजूद घोटालेबाजों में शामिल एक रसूखदार नेता और एक आला अफसर ने मिलीभगत व आपराधिक षड्यंत्र करते हुए अवाप्तशुदा जमीन के विकसित पट्टे गलत तरीके से बांट दिए। अवाप्ति व मुआवजा के ढाई दशक बाद घोटालेबाजों ने करीब 93 सौ वर्गमीटर के दो बड़े पट्टे अपने चहेते लोगों के नाम कर दिए। ये चहेते लोग ना तो खातेदार हैं और ना ही इस मुआवजा के हकदार। आरटीआई में यह भूमि घोटाला उजागर होने और मामले में सीएमओ, लोकायुक्त में शिकायत होने के बाद सरकार और प्रशासन में खलबली मची हुई है।

यह भूमि घोटाला पिछली अशोक गहलोत सरकार और उसके बाद आई भाजपा सरकार के समय का है। इस घोटाले को उजागर किया है आरटीआई कार्यकर्ता अशोक पाठक ने। पाठक ने मीडियाकर्मियों के समक्ष घोटाले के दस्तावेज पेश करते हुए बताया कि इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार राजस्थान हाऊसिंग बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन परसराम मोरदिया और तत्कालीन प्रमुख शासन सचिव व वर्तमान में एसीएस (पीडब्लूडी) डीबी गुप्ता हैं। इन्होंने आपराधिक षड्यंत्र करते हुए खुद को लाभ पहुंचाते हुए गलत तरीके ना केवल पट्टे दूसरों को दे दिए, बल्कि सरकार को भी चूना लगाया है। एक अनुमान के मुताबिक गलत तरीके से दिए गए पट्टे की बाजार कीमत दो सौ करोड़ रुपए बताई जाती है। यह नुकसान सरकार को झेलना पड़ा है। पाठक ने यह भी कहा कि इस घोटाले को भांपते हुए तत्कालीन बोर्ड कमिश्नर आर.वेंकटेश्वरन ने कई बार आपत्तियां भी दर्ज कराई, लेकिन मोरदिया व डीबी गुप्ता ने इन आपत्तियों को दरकिनार कर दी।

– ऐसे दिया घोटाले को अंजाम….
अशोक पाठक ने मीडिया के समक्ष दस्तावेज दिखाते हुए बताया कि 1982 में राजस्थान सरकार ने मानसरोवर आवासीय योजना के लिए झालानाचोड, देवरी, मानपुरा उर्फ गोल्यावास और सुखालपुरा में करीब 2570बीघा भूमि जमीन अवाप्त की थी। 1989 में अवाप्तशुदा भूमि का अवार्ड भी जारी कर दिया और जमीन पर कब्जा ले लिया। इस योजना में सुखालपुरा गांव की करीब 35 बीघा भूमि (खसरा नम्बर 212,213,218)भी शामिल थी। इस भूमि के खातेदार 1976 में ही इस जमीन का बेचान न्यू पिंकसिटी हाउसिंग कॉपरेटिव सोसायटी को कर चुके थे। भूमि अवाप्ति होते ही सोसायटी के पदाधिकारियों ने एसीजेएम क्रम संख्या दो जयपुर में रेफरेंस केस दायर किया, जो आज तक कोर्ट में विचाराधीन है। नगरीय विकास विभाग ने इस भूमि का मुआवजा (करीब पन्द्रह लाख रुपए) 1990 में कोर्ट में जमा करा दिया। जमीन के खातेदारों ने हाईकोर्ट में एक याचिका (5564/1992)लगाई थी। इसमें बताया था कि हमनें हमारी जमीनों को न्यू पिंकसिटी सोसायटी को बेच चुके हैं और वे ही इस भूमि के मुआवजे की हकदार है। तब कोर्ट ने फैसला दिया था कि मुआवजे के हकदार सोसायटी है, लेकिन इस आधार पर अवाप्ति को खारिज नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने आदेश में साफ कहा था कि नगरीय विकास विभाग की अवाप्ति कार्रवाई सही है और मुआवजा हकदार सोसायटी को मिले। करीब दो दशक तक यह मामला शांत पड़ा रहा। निचली अदालत में रेफरेंस केस का फैसला नहीं होने के कारण मुआवजा 2013 तक न्यायालय में ही जमा रहा। सोसायटी मुआवजे के लिए सरकार और कोर्ट के स्तर पर लड़ाई लड़ती रही। अचानक 2013 में अशोक शर्मा और नानगराम बलाई ने अवाप्तशुदा 35 बीघा भूमि के काश्तकारों की तरफ से राजस्थान आवासन मण्डल चेयरमैन परसराम मोरदिया के सामने 02-08-2013 को आवेदन दिलवाया कि हमें अवाप्तशुदा भूमि के बदले 25फीसदी विकसित भूमि दी जाए। मोरदिया ने इस मामले को भूमि समझौता समिति को रैफर कर दिया। मोरदिया की अध्यक्षता में 16-09-2013 को समिति ने 13281 वर्गमीटर विकसित भूमि आवंटित करने का निर्णय लिया। नगरीय विकास विभाग को प्रस्ताव मंजूरी के लिए भेज दिया, वहां तत्कालीन प्रमुख शासन सचिव डीबी गुप्ता ने 27 सितम्बर, 2013 को प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। वो भी आवासन कमिश्नर आर.वेंकटेश्वरन की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए। आर.वेंकटेश्वरन ने इस स्वीकृति पर आपत्ति जताते हुए विकसित भूमि के पट्टे जारी नहीं किए। हालांकि आवासीय बोर्ड के सचिव जी.एस.बाघेला ने एक पट्टा (1120 वर्गमीटर) का पट्टा जारी कर दिया। यह पट्टा नानगराम बलाई के नाम जारी किया गया, जो परसराम मोरदिया का घरेलू नौकर बताया जाता है। खास बात यह है कि नानगराम ना तो इस भूमि का खातेदार है और ना ही न्यू पिंकसिटी हाऊसिंग कॉपरेटिव सोसायटी का प्रतिनिधि है। जमीन को बेच चुके खातेदारों के एक सहमति पत्र के आधार पर बोर्ड और यूडीएच ने नानगराम को पट्टा जारी कर दिया, जबकि न्यू पिंकसिटी सोसायटी बोर्ड से बराबर पत्र लिखकर विकसित भूमि की मांग कर रही थी।

– बोर्ड सचिव की आपत्तियां को किया दरकिनार…
पहला पट्टा जारी होने के बाद फिर डीबी गुप्ता ने 4 दिसम्बर, 2013 को आदेश दिए कि शेष करीब दस हजार वर्गमीट भूमि का पट्टा भी जारी किया जाए। इस आदेश पर भी आर.वेंकटेश्वरन ने आपत्ति जताते हुए नोटशीट मे लिखा कि पहला पट्टा गलत जारी हुआ है, उसे रद्द किया जाए और प्रकरण को दुबारा कुछ आपत्तियों (कोर्ट में केस लंबित होने, जमीन अवाप्त कर मुआवजा जमा करा देने, आवासीय योजना मूर्तरुप ले चुकी है, पट्टा देने वाले दोषी कर्मियों पर कार्रवाई करने) के साथ यह फाइल नगरीय विकास विभाग में डीबी गुप्ता के पास भेज दी। इन आपत्तियों के चलते विकसित भूमि देने की योजना खटाई में पड़ी तो डीबी गुप्ता ने इस फाइल को अपने पास मंगवा ली। फाइल भेजते समय बेंकटेश्वरन ने नोटशीट में विकसित भूमि देने में बरती अनियमितताओं को अंकित करते हुए आपत्तियों पर एक्शन लेने को कहा, लेकिन डीबी गुप्ता ने आपत्तियों को दरकिनार करते हुए पहले मामले में चर्चा और फिर विधिक राय मांगी। विधिक राय में यूडीएच के पूर्व में पट्टे देने के निर्देशों के अनुरुप पट्टा दिए जाने की सहमति दे दी। इस राय के आधार पर दूसरा पट्टा अशोक शर्मा के नाम 8213 वर्गमीटर का जारी कर दिया, जो कि नियम विरुद्ध था। दूसरा पट्टा जारी करते वक्त प्रदेश में कांग्रेस सरकार चुनाव हार गई थी और भाजपा सरकार सत्ता में आई थी। अशोक पाठक ने बताया कि परसराम मोरदिया के इस्तीफा देने के बाद बोर्ड चैयरमैन की जिम्मेदारी भी डीबी गुप्ता के पास आ गई थी। डीबी गुप्ता ने प्रमुख शासन सचिव और चेयरमैन रहते हुए तमाम आपत्तियों को दरकिनार करते हुए 29 जनवरी, 2014 को दूसरा पट्टा भी जारी कर दिया। पट्टा लेने वाले अशोक शर्मा भी ना तो खातेदार हैं और ना ही पिंकसिटी सोसायटी के अधिकृत प्रतिनिधि।

– चहेते लोगों को दिए पट्टे
पाठक ने आरोप लगाया है कि दोनों पट्टे फर्जी तरीके और नियम विरुद्ध तरीके से दिए गए हैं। जिन्हें पट्टे दिए गए हैं, वे डीबी गुप्ता व मोरदिया के चहेते और लाभकारी व्यक्ति हैं। हालांकि 25 फरवरी 2014 को आवासन मण्डल चेयरमैन डीबी गुप्ता ने अपने बचाव के लिए एक आदेश जारी करते हैं कि पट्टे पर अंकित कर दिया जाए पट्टा कोर्ट के आदेश के अधीन रहेगा और वे इसे ना तो बेचान कर सकेंगे और ना ही हस्तांतरित कर सकेंगे। इस आदेश के एक दिन पहले ही अशोक शर्मा ने इस जमीन को गोपाल लाल मीना को आठ करोड़ रुपए में बेचान कर दिया। गोपाल लाल मीना ने भी इस भूमि को 26 मार्च 2015 को दस करोड़ रुपए में आर.आर.सिटी डवलपर्स को बेचान कर दिया। अशोक पाठक ने बताया कि परसराम मोरदिया, डीबी गुप्ता ने आपराधिक षड्यंत्र रचते हुए नियम विरुद्ध तरीके से अपने चहेते लोगों को करोड़ों रुपए की विकसित भूमि आवंटित करवा दी और सरकार को दो सौ करोड़ रुपए की चपत लगाई। पाठक ने इस मामले के दस्तावेज पीएम नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और मुख्य सचिव ओपी मीना को भेजते हुए सीबीआई जैसी सक्षम अनुसंधान एजेंसी से जांच करवाने की गुहार की है।

– पंजीयन विभाग को लगाई 32 लाख की चपत
यूडीएच और आवासन मण्डल ने नानगराम बलाई और अशोक शर्मा को विकसित भूमि देने के दौरान पंजीयन नियमों की पालना नहीं की। अशोक पाठक ने बताया कि विकसित भूमि देने के दौरान 32 लाख रुपए की स्टाम्प ड्यूटी बनती थी, लेकिन यह राशि नहीं ली गई और ना ही पंजीयन विभाग को इसकी सूचना दी गई। इस मामले में पंजीयन विभाग ने आवासन मण्डल सचिव को पत्र लिखकर 32 लाख रुपए की स्टाम्प ड्यूटी वसूली की मांग की है।

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