नयी दिल्ली। अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों के वर्गीकरण के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग में सुनवायी के दौरान प्रतिनिधि संगठनों ने अधिसंख्य अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण का समुचित लाभ नहीं मिल पाने का मुद्दा उठाया है।
न्यायमूर्ति जी रोहिणी की अध्यक्षता वाले आयोग के समक्ष वंचित समाज मोर्चा के प्रतिनिधियों ने इंदिरा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद पिछड़े वर्ग के आरक्षण को दो हिस्सों में विभाजित नहीं करने की शिकायत करते हुये कहा है कि इससे पिछड़े वर्गों की कुल जनसंख्या 52 प्रतिशत में अति पिछड़ों की संख्या 43 प्रतिशत होने के बावजूद सामाजिक न्याय और समावेशी विकास से वंचित रह गए है। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण को दो हिस्से में विभाजित करने के उद्देश्य से उक्त आयोग का गठन किया है।
यहां स्थित विज्ञान भवन में आयोग के सदस्यों के समक्ष विभिन्न पक्षों को प्रस्तुत करने के लिए अति पिछड़ा एवं अन्य सामाजिक संगठनों को आमंत्रित किया गया था। आयोग के समक्ष बिहार का प्रतिनिधित्व कर रहे वंचित समाज मोर्चा के अध्यक्ष प्रो. किशोरी दास ने कहा कि पिछड़े वर्ग की कुछ चुनिंदा जातियों को राज्य सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिये अति पिछड़ा वर्ग की सूची में डाल दिया। नतीजतन 1990 के बाद सामाजिक न्याय के साथ विकास के नाम पर चलने वाली सरकारों ने बिना आरक्षण कोटा बढ़ाए अतिपिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल जातियों की संख्या 79 से बढ़ाकर 112 कर दी और अब पिछड़ा वर्ग की सूची में गिनी चुनी जातियां ही रह गई हैं जिनके लिए आरक्षण का प्रतिशत पूर्ववत ही है। अति पिछड़ा वर्ग पदाधिकारी कर्मचारी कल्याण समिति के बिहार प्रदेश सचिव बिनोद बिहारी मंडल ने कहा कि 18 जुलाई 2002 को सांसद ब्रहमानंद मंडल और कैप्टन जयनारायण निषाद ने संसद में अति पिछड़ा वर्ग शैक्षणिक प्रशिक्षण अधिनियम का प्रारुप प्रस्तु किया था । उक्त अधिनियम की अति पिछड़ा वर्ग को समावेशी विकास में मह्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। संसद में इस पर चर्चा के बाद उसे विधिवत अधिनियम का रुप दिया जाना चाहिए। राष्ट्रीय अतिपिछड़ा वर्ग संघ के संयोजक गुलशन आनंद ने राष्ट्रीय स्तर पर कर्पूरी ठाकुर फार्मूला लागू करने की मांग की।