राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। राजस्थान के धौलपुर सीट पर रविवार को मतदान हो गया। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, 77.12 फीसदी मतदान हुआ, जो पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले करीब सवा चार फीसदी कम है। वर्ष 2013 में 81.34 फीसदी वोट पड़े थे। तब पीएम मोदी की लहर के बावजूद धौलपुर सीट से बसपा के बी.एल.कुशवाह करीब नौ हजार वोटों से जीते थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता बनवारी लाल शर्मा को कुशवाह ने हराया था। भाजपा के प्रत्याशी एडवोकेट अब्दुल सगीर तीसरे स्थान पर थे। उन्हें करीब 35 हजार वोट मिले थे। सुरक्षा गार्ड की हत्या के मामले में बीएल कुशवाह को उम्रकैद की सजा होने पर उनकी विधायकी समाप्त कर दी गई। इस सीट पर उप चुनाव होने पर भाजपा ने अपने पूर्व प्रत्याशी अब्दुल सगीर और दूसरे कार्यकर्ताओं के बजाय हत्याभियुक्त बीएल कुशवाह की पत्नी शोभारानी पर दांव खेला। आनन-फानन में कुशवाह की पत्नी ने भाजपा की सदस्यता ली और फिर उसे पार्टी ने प्रत्याशी भी बनाया दिया। अंदरखाने स्थानीय भाजपा नेताओं के बीच इस फैसले को लेकर काफी नाराजगी भी दिखी, लेकिन मुख्यमंत्री के आदेश और गृह जिले को देखते हुए हर कोई शांत दिखा एवं पार्टी के साथ नजर आया। चुनाव प्रचार के दौरान सभी केबिनेट मंत्री और बड़े नेता धौलपुर में डेरा डाले रहे। कांग्रेस नेताओं ने भी अपने प्रत्याशी बनवारी लाल शर्मा की नैया पार लगाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। दोनों ही दलों ने जातियों में सेंधमारी के लिए काफी जोडतोड की है। कुशवाह, वैश्य जहां भाजपा के पक्ष में दिखे, तो ब्राह्मण, गुर्जर, मुस्लिम कांग्रेस के पक्ष में दिखाई दिए। दोनों ही दलों ने जाटव समाज के वोट बैंक में सेंधमारी करने के लिए जी जान से जुटे दिखे। जाटव समाज का वोट बैंक ही जिधर जाएगा, उसी दल के प्रत्याशी को जीत मिलेंगी, वो भी अच्छी खासी। वैसे सियासी क्षेत्रों में चर्चा है कि पिछली बार के मुकाबले चार फीसदी कम मतदान होने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कम मतदान सरकार के खिलाफ बताया जा रहा है। यह भी चर्चा है कि भाजपा ने हत्या के आरोपी विधायक की पत्नी को टिकट देकर गलत किया है। राजनीति में अपराधीकरण के खिलाफ जनता समेत हर कोई विरोध में है। बीएल कुशवाह ने जिसकी हत्या की है, वह भी कुशवाह समाज का है। कुशवाह समाज का एक तबका इससे नाराज रहा है। वहीं अंदरखाने भाजपा के वे समर्पित कार्यकर्ता और नेता भी खासे नाराज हैं, जो टिकट की दौड़ में थे और उनका टिकट कोई बाहरी ले उड़ा। चुनाव में ये सभी भले ही पार्टी के साथ दिखे, लेकिन अंदरखाने भीतरघात में लगे रहे हैं। इसका नुकसान पार्टी को झेलना पड़ सकता है। हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी बनवारी लाल शर्मा की राह भी आसान नहीं है। पीसीसी चीफ सचिन पायलट के लिए यह सीट काफी प्रतिष्ठा की है। पायलट इस सीट को निकालने के लिए दिन-रात लगे रहे, वहीं उनका विरोधी खेमा सीट जीत नहीं पाए, इसकी रणनीति में लगा रहा। कांग्रेस के चुनाव प्रचार के दौरान सार्वजनिक रुप से भी कांग्रेस नेता बयानबाजी से नहीं चूके और आरोप-प्रत्यारोप भी लगाते रहे। खैर दोनों ही दलों में भीतरघात देखने को मिली है। 13 अप्रेल को मतगणना होनी है। उस दिन धौलपुर सीट की तस्वीर साफ हो जाएगी, साथ ही दोनों ही दलों के राजनीतिक भविष्य की भी।
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