– राकेश कुमार शर्मा 
जयपुर। जयपुर की बसावट के समय से ही मौजूद अलमशहूर कल्याण महाराज (कल्याण धणी) मंदिर के अधीन डिग्गी कटला को बाजार में तब्दील करने की कार्रवाई में नगर निगम प्रशासन और श्री सियाराम ट्रस्ट के पदाधिकारियों की मिलीभगत सामने आ रही है। कोर्ट में पेश दस्तावेज और आदेश के दस्तावेजों के मुताबिक, मिलीभगत के इस खेल में इस मंदिर परिसर को बचाने में लगे संगठनों को भी नगर निगम प्रशासन द्वारा गुमराह किया जा रहा है। मात्र कागजी नोटिस देकर नगर निगम अंदरखाने तो डिग्गी कटले के ऊपर हो रहे अवैध निर्माण को प्रोत्साहित कर रही है, वहीं ट्रस्ट की ओर से कोर्ट में मांगी डीम्ड अनुमति आदेश लेने की कार्रवाई में भी नगर निगम की पोल सामने आई है। कोर्ट में चले इस मामले में नगर निगम की कमजोर पैरवी की बात सामने आई है। कोर्ट के दस्तावेज के मुताबिक इस मामले में नगर निगम के वकील ने लिखित जवाब तक नहीं दिया और ना ही निगम प्रशासन ने इस डीम्ड आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती दी गई। अवैध निर्माण करीब-करीब पूरा होने को है। अब दिखावे के तौर पर हवामहल जोन पश्चिम प्रशासन ऊपरी अदालत में इसे चुनौती देने के लिए अभी तो विधि निदेशक नगर निगम से अनुमति मांगा रहा है। ऐसी कुछ कार्रवाई कई तरह की संदेह पैदा कर रही है कि इस अवैध निर्माण में बड़ा खेल हुआ है। अवैध निर्माण के इस खेल में निगम के आला अफसरों के साथ जनप्रतिनिधियों की भी मिलीभगत का अंदेशा शिकायककर्ताओं द्वारा जाहिर किया जा रहा है। सभी शिकायतकर्ता भाजपा और संघ पृष्ठभूमि के है। इनकी लिखित शिकायतों के बाद भी ना तो नगर निगम प्रशासन और ना ही भाजपा बोर्ड वाले निगम के महापौर, उप महापौर और स्थानीय विधायक कोई कार्रवाई कर रहे हैं। सभी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। कार्यकर्ता और शिकायतकर्ता भी कहने लगे हैं कि सरेआम कल्याण धणी मंदिर परिसर को व्यावसायिक रुप में तब्दील किया जा रहा है, लेकिन सबने चुप्पी साध रखी है। पहले जयपुर शहर के मंदिरों को तोड़ डाला और अब एक ऐतिहासिक मंदिर के परिसर को व्यावसायिक बाजार में तब्दील किया जा रहा है। आरएसएस के पदाधिकारियों और भाजपा पदाधिकारियों को भी इस बारे में अवगत कराते हुए कुछ कार्यकर्ताओं ने यहां तक कह दिया है कि अगर डिग्गी कटले मामले में ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो भाजपा की सदस्यता तो त्याग देंगे, साथ ही जनप्रतिनिधियों को भी क्षेत्र में घुसने नहीं देंगे। शिकायतकर्ता बसंत फागीवाला ने बताया कि नगर निगम प्रशासन और महापौर ने एक्शन नहीं लिया तो डिग्गी कटले के व्यावसायिकरण मामले को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाकर रोका जाएगा, साथ ही व्यावसायिक क्षेत्र में तब्दील इस क्षेत्र को वापस आवासीय में तब्दील कराने की गुहार की जाएगी और यहां चल रहे वाणिज्यिक संस्थानों को बंद करने की मांग करेंगे।
new-doc– यू चला मिलीभगत का खेल
-श्री सियाराम ट्रस्ट ने डिग्गी कटले के भवन को जर्जर बताते हुए दिनांक 23.05.2014 को रिनोवेशन,मरम्मत व निर्माण के लिए नगर निगम मुख्यालय में आवेदन किया, लेकिन तब से लेकर जुलाई 2017 तक निगम ने इस आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं की।
– नगरपालिका अधिनियम का हवाला देते हुए ट्रस्ट पदाधिकारी ने अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश व महानगर मजिस्ट्रेट क्रम संख्या चार जयपुर महानगर के यहां मामले को ले जाकर  इमारत की फीनिशिंग कार्य में नगर निगम के किसी प्रकार का व्यवधान नहीं करने के संबंध में निवेदन करते हुए डीम्ड प्रमिशन मांगी। कोर्ट ने तय मानचित्र, बिल्डिंग बायलॉज और याचिका के मुताबिक डीम्ड अनुमति प्रदान कर दी।
– ट्रस्ट ने डीम्ड आदेश की आड़ में नया निर्माण शुरु कर दिया। पहले से व्यावसायिक कटले के ऊपर भी नया निर्माण शुरु कर दिया, जबकि जर्जर भवन की मरम्मत व फीनिशिंग की अनुमति मांगी गई थी। सरकारी बालकनी को भी नए निर्माण में शामिल कर लिया।
– न्यायालय में ट्रस्ट द्वारा परिवाद दाखिल करने के बाद निगम के अधिवक्ता ने परिवाद पर प्रर्याप्त अवसर दिए जाने के संबंध में समय मांगा गया, परन्तु पूरे प्रकरण में निगम का अधिवक्ता वापस नहीं आया। इस पर न्यायालय द्वारा निगम का पक्ष सुने बिना ही ट्रस्ट के पक्ष में एकतरफा आदेश दिनांक 08.11.2016 को पारित कर दिया, जिसकी आड़ में व्यवसायिक निर्माण शुरू कर दिया।
– न्यायालय द्वारा भी आवेदन शर्तों के अनुसार निर्माण करने को कहा है, लेकिन तय शर्तों के विपरीत निर्माण दिखा और लोगों ने शिकायत की तो  20.12.2016 को उपायुक्त, हवामहल जोन पश्चिम ने नोटिस दिया।
new-doc_2– नोटिस में निगम प्रशासन मान रहा है कि तीन कमरों को तोड़कर नक्शे के विपरीत निर्माण किया गया है और सरकारी गंदी नाली की भूमि (बालकनी) को भी कवर करते हुए निर्माण कर लिया है, लेकिन इसके बाद भी निगम कार्रवाई नहीं कर रहा है।
– 20.12.2016 को ही उपायुक्त, हवामहल जोन पश्चिम ने  निदेशक विधि को सिविल न्यायालय के आदेश के विरूद्ध अपील करने के संबंध में लिखा गया है। इस बारे में निगम प्रशासन ने कोई फैसला नहीं किया है, जो संदेह पैदा करता है।
– ट्रस्ट के परिवाद में महापौर को पार्टी बनाया। आयुक्त व उपायुक्त को पार्टी नहीं बनाया गया और ना ही निगम का अधिवक्ता मामले में जवाब पेश कर पाया और ना ही पैरवी करने गया। जो संदेह खड़ा कर रही है मिलीभगत के।

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