जयपुर. फर्जी डिग्री मामले में एसओजी ने शुक्रवार को दो यूनिवर्सिटी के संचालकों को गिरफ्तार किया। एक आरोपी की गर्लफ्रेंड को भी रोहतक से डिटेन (पकड़ा) किया गया है। पूछताछ के दौरान संचालकों ने बताया कि सभी रिकॉर्ड जलने की वजह से खत्म हो गए। दोनों का कहना है कि उनकी यूनिवसिर्टी का कोई कसूर नहीं है। फिलहाल एसओजी की टीम गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ करने के साथ मामले में जुड़े अन्य लोगों को पकड़ने के लिए दबिश दे रही है। डीआईजी परिस देशमुख ने बताया फर्जी डिग्री जारी करने वाली ओपीजेएस यूनिवर्सिटी के संचालक जोगेन्द्र सिंह (55) पुत्र ओमप्रकाश दलाल निवासी रोहतक हरियाणा और सनराइज एंड एमके यूनिवसिर्टी के संचालक जितेन्द्र यादव (38) पुत्र जिले सिंह निवासी नारनौल महेन्द्रगढ़ हरियाणा को गिरफ्तार किया गया है। साथ ही ओपीजेएस यूनिवसिर्टी के संचालक जोगेन्द्र सिंह की गर्लफ्रेंड सरिता कड़वासरा (50) पुत्री धर्मवीर सिंह को भी रोहतक से डिटेन किया है। दोनों आरोपियों को एसओजी की ओर से जांच के दौरान चूरू के राजगढ़ में स्थित ओपीजेएस यूनिवसिर्टी बुलाया गया था। जांच के बाद फर्जीवाड़े का पता चलने पर राउंडअप कर पूछताछ के लिए जयपुर एसओजी ऑफिस लाया गया। पूछताछ पूरी होने पर शुक्रवार सुबह दोनों को गिरफ्तार किया गया। परिस देशमुख ने बताया एसओजी को ओपीजेएस यूनिवसिर्टी के खिलाफ फर्जी डिग्री जारी करने की काफी शिकायतें मिली थी। जो चूरू के राजगढ़ में है। जांच में सामने आया है कि साल-2013 में ओपीजेएस यूनिवसिर्टी शुरू हुई थी। साल-2013 से साल-2015 तक ओपीजेएस यूनिवसिर्टी की रजिस्ट्रार के पद पर सरिता रही है। साल-2017 से साल-2020 तक सरिता चेयरपर्सन रही। डीआईजी ने बताया साल-2015 से साल-2020 तक जितेन्द्र यादव ओपीजेएस यूनिवसिर्टी में रजिस्ट्रार के पद पर रहा। इस दौरान ओपीजेएस यूनिवसिर्टी की ओर से हजारों की संख्या में फर्जी डिग्री जारी की गई। डीआईजी परिस देशमुख ने बताया- साल-2020 में आरोपी जितेन्द्र यादव ने ओपीजेएस यूनिवसिर्टी की पार्टनरशिप छोड़ दी। उसके बाद उसने अलवर में खुद की सनराइज यूनिवसिर्टी खोल ली। कुछ समय बाद ही एमके यूनिवसिर्टी पाटन गुजरात में खोली। इसके बाद बूंदी में एक नई जीत यूनिवसिर्टी खोलने की तैयारी चल रही थी। यूनिवसिर्टी की मान्यता अभी सरकार से नहीं मिली थी। वहीं, आरोपी जोगेन्द्र सिंह शाहबाद (बांरा) में वैदिक यूनिवसिर्टी खोलने की तैयारी में था। इसका कैम्पस बनकर तैयार हो गया है। साल-2015 से साल-2020 का डिग्री रिकॉर्ड के बारे में पूछने पर दोनों आरोपियों ने जलने से खत्म होना बताया है। जांच में सामने आया है कि दलालों के जरिए फर्जी डिग्री बांटने का खेल चल रहा था। बिना मान्यता कोर्स के भी यूनिवसिर्टी की ओर से फर्जी सर्टिफिकेट और डिग्री जारी की गई। डीआईजी परिस देशमुख ने बताया जांच में सामने आया है कि आरोपी यूनिवसिर्टी संचालकों की ओर से एडिमशन में भी फर्जीवाड़े किए। बेक डेट में एडमिशन दिए गए है। दलालों के साथ मिलकर फर्जी खेल प्रमाण-पत्र जारी करने का बिजनेस किया गया। गलत तरीके से गेम खिलाकर फर्जी खेल प्रमाण-पत्र देकर यूनिवसिर्टी में एडमिशन दिए गए। इन्होंने अपनी जालसाजी छिपाने के लिए साल-2016 से साल-2020 तक का रिकॉर्ड जलना बताया है। दूसरी तरफ डिग्री वेरिफिकेशन का संबंधित डिपार्टमेंट को गलत/सही का जबाव दिया जा रहा था। परिस देशमुख ने बताया यूनिवसिर्टी में टीचर्स के बारे में रिकॉर्ड देखने पर भी फर्जीवाड़ा सामने आया। यूनिवसिर्टी में 27-28 लोगों का सैलेरी अकांउट है। इनमें से 8-10 नॉन टीचर स्टाफ हैं। यूनिवसिर्टी में चलने वाले कोर्स की संख्या 18 है। 18 कॉर्स करवाने के लिए यूनिवसिर्टी के पास 27-28 लोग ही हैं। ये भी बड़ा फजीवाड़ा है। काफी सारी विसंगतियां सामने आने पर पूरी यूनिवसिर्टी की नींव ही फर्जीबाड़े पर बनी सामने आ रही है। यूनिवसिर्टी का काम सिर्फ फर्जी डिग्री बांटने का था। आरोपी जोगेन्द्र सिंह के खिलाफ पूर्व में दो केस दर्ज हैं। इसमें अरेस्ट भी हो चुका है। उन्होंने बताया- राजस्थान के विभिन्न डिपार्टमेंट में फर्जी डिग्रियों से सरकारी डिपार्टमेंट में लोग जॉब कर रहे है। शिक्षा विभाग को इस संबंध में अवगत करवाया गया है। विभाग की ओर से दोबारा वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। जांच में सामने आया है कि यूनिवसिर्टी की ओर से सबसे ज्यादा फर्जी डिग्री नॉर्थ इंडिया में बांटी गई है। परिस देशमुख ने बताया- यूनिवसिर्टी की ओर से सौदा तय होने पर एडमिशन दिखाकर फर्जी डिग्री बांटी गई। फर्जी डिग्री देने के दौरान स्टूडेंट्स से 50-60 प्रतिशत ज्यादा रकम की डिमांड की जाती। स्टूडेंट के सौदे की रकम ही देने की जिद पर डिग्री दे दी जाती थी। सरकारी जॉब के लिए विभाग की ओर से यूनिवसिर्टी से डिग्री वेरिफिक के लिए जबाव मांगने पर मना कर दिया जाता। स्टूडेंट के यूनिवसिर्टी से दोबारा कॉन्टैक्ट करने पर पहले मांगी गई रकम का तकाजा किया जाता। रुपए देने पर दोबारा विभाग को यूनिवसिर्टी की तरफ से गलती से रिपोर्ट भेजने का जबाव देकर वेरिफिकेशन करवा देते थे। मीडिया को देखकर यूनिवसिर्टी संचालक बोले हमे भी अपनी बात रखने का आजादी है। स्टूडेंट्स ने दूसरी यूनिवसिर्टी का नाम लिखकर हमारी यूनिवसिर्टी का नाम लिख दिया। इसमें हमारी यूनिवसिर्टी का क्या कसूर है। उनकी यूनिवसिर्टी के नाम होने की कहने पर आरोपी यूनिवसिर्टी संचालक मुंह मोड़कर चले गए।

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