जयपुर। फाउंडेशन आॅफ सार्क राइटर्स एंड लिटरेचर द्वारा जयपुर के डिग्गी पैलेस में आयोजित तीन दिवसीय साउथ एषियन सूफी फेस्टिवल का आज समापन हुआ। अंतिम दिन अफगानिस्तान, मालदीव, बांग्लादेश, श्रीलंका, भारत एवं भूटान देशो के प्रतिनिधियों ने एकेडमिक पेपर प्रस्तुत किए गए और काव्य पाठ किया।
सूफीवाद और बंगाली कविताओं पर इसका प्रभाव
बांग्लादेश के कवि एवं कहानीकार, शफिनूर शाफिन ने बांग्ला साहित्य में सूफीवाद के प्रभाव के बारे में बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि बंगाली साहित्य में मध्यकाल से ही सूफीवाद शामिल रहा है। बंगाल में सूफियों द्वारा अनेक कनखाओं, मदरसों और मस्जिदों का निर्माण कराया गया है। शाफिन ने बांग्ला कविता के संदर्भ में सूफीवाद पर ईरानी परम्पराओं के प्रभाव पर भी चर्चा की।
सूफी विद्वानों, लेखकों व कवियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि रवीन्द्र नाथ टैगोर की कविताओं पर सूफीवाद एवं आध्यात्मिकता का अत्यधिक प्रभाव रहा है। कबीर के दोहों का बांग्ला में अनुवाद करने वाले टैगोर सबसे पहले कवि थे। शाफिन ने सूफी कवियों की यह मान्यता बताते हुए अपनी प्रस्तुति का समापन किया कि मानव शरीर को जानकर ही भगवान को जाना जा सकता है। साउथ एषियन यूनिवर्सिटीए नई दिल्ली की प्रेसीडेंट, कविता शर्मा ने कहा कि पूर्व औपनिवेषिक काल में आध्यात्मिकताए कविताए कलाए शिल्प व साहित्य के संदर्भ में कोई सीमाएं नहीं थीं। हालांकिए औपनिवेशिक काल से राजनीतिक सीमाएं एवं पहचान निर्विवाद रूप से बनी हुई हैं, जिससे आध्यात्मिक विचारधाराओं एवं मान्यताओं के प्रवाह में कमी आ रही है। उन्होंने आगे कहा कि धार्मिक पर्यटन के विचार को अब बड़े पैमाने पर प्रचारित किया जा रहा है। यह प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। मजारों, मस्जिदों व अन्य तीर्थ स्थलों की यात्राएं एक ऐसी परम्परा है जो सदियों से चली आ रही है।
कव्वाली का इतिहास
अफगानिस्तान के प्रोफेसर महबूब शाह महबूब ने सूफी भक्ति संगीत के एक स्वरूप कव्वाली की उत्पत्ति के बारे बताया। उन्होंने कहा कि इतिहासकारों के मध्य इस विषय पर काफी वाद-विवाद होता है कि कव्वाली की शुरूआत किसने की थी। महबूब ने बताया कि हालांकि चिश्ती परम्परा के दिल्ली के सूफी संत अमीर खुसरो को 13 वीं सदी के उत्तरार्ध में कव्वाली में फारसी, अरबी, तुर्की व भारत को मिश्रित करने के कारण इसकी रचना का श्रेय दिया गया है। इस चर्चा को जारी रखते हुए, भारत के प्रोफेसर रियाज पंजाबी ने कहा कि कव्वाली मुस्लिमों के उस वर्ग के लिए सदैव चिंता का एक प्रमुख विषय रहा है, जो संगीत का विरोध करते हैं। हालांकि कव्वाली के साथ निकटता से जुड़ाव है, जो मानसिक स्तर पर दिव्यता से जोड़ता है।
क्या हमें सूफीवाद की आवश्यकता है
अफगानिस्तान के सैयद अहमद हुसैन ने इस सवाल पर चर्चा की कि क्या हमें वास्तव में सूफीवाद की आवश्यकता है उन्होंने इस प्रश्न को मानव व्यक्तित्व की बुनियादी विशिष्टताओं से सम्बंधित बताया और कहा कि वांछनिय व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए सूफीवाद अत्यंत आवष्यक है। सूफीवाद का सिद्धांत जीवन के व्यवहारए आचरणए मिषन, लक्ष्य व जीवन के उद्देश्य को आकार देने में मदद करता है। इसलिए, जीवन की सफल यात्रा को सुनिश्चित करने के लिए सूफीवाद की सीख एवं शिक्षण के तरीकों को लंबा सफर तय करना होगा।