जयपुर। सीबीआई मामलात कोर्ट क्रम तीन जयपुर ने आय से अधिक मामले में दोषी पाए गए दूरसंचार विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी भगवान सिंह मीणा को चार साल की सजा सुनाई तो इस मामले में सीबीआई के अनुसंधान अधिकारी (आईओ) और लोक अभियोजक के खिलाफ अनुसंधान व पैरवी में लापरवाही बरतने पर तल्ख टिप्पणी की है। सीबीआई ने 17 अक्टूबर, 2001 को मुकदमा दर्ज कर 29 मई, 2003 को मीणा के खिलाफ चालान पेश किया था। सीबीआई ने बीएसएनएल सिरोही में मण्डल अभियन्ता भगवान सिंह मीणा को भ्रष्ट एवं अवैध साधनों से अपनी आय से 98.29 प्रतिशत अधिक आय (16.75 लाख) अर्जित करने का दोषी माना था। सीबीआई ने मीणा की एक जनवरी, 1994 से 19 अक्टूबर 2001 तक की आय की गणना कर भ्रष्टाचार से आय अर्जित करने का दोषी माना है। कोर्ट ने भी मीणा के 40.239 प्रतिशत अधिक आय अर्जित करने का दोषी मानते हुए सजा से दण्डित किया।
– अनुसंधान अधिकारी पर तल्ख टिप्पणी
मामले की जांच सीबीआई ने इंस्पेक्टर योगेश शर्मा को दी गई। योगेश का तबादला होने पर इंस्पेक्टर संजय शर्मा को जून, 2002 में जांच सौंपी गई। प्रकरण में भगवान सिंह मीणा ने ससुर, पिता, मामा, चाचा और मित्रों से उधार प्राप्त करना बताकर आय के दस्तावेज पेश किए। इन्हें कोर्ट में भी प्रदर्शित किए गए। संजय शर्मा ने इन दस्तावेज के बारे में कोई पडताल नहीं की। जिरह के दौरान एक प्रश्न पर अनुसंधान अधिकारी ने यह जवाब दिया कि उसने यह राशि निकट रिश्तेदारों उधार व उपहार के बतौर प्राप्त की। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि अनुसंधान अधिकारी ने लापरवाही पूर्वक अनुसंधान किया है, जो निन्दनीय है। पत्रावली के अवलोकन से संजय शर्मा का अनुसंधान त्रुटिपूर्ण दृष्टिगोचर हो रहा है। कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा है कि प्रतिष्ठित अनुसंधान केन्द्र (सीबीआई) में कार्य करते हुए संजय शर्मा ने घोर लापरवाही पूर्वक अनुसंधान किया है। महत्वपूर्ण बिन्दूओं पर अनुसंधान शून्य है। अन्वेक्षण के दौरान अभियुक्त को लाभ पहुंचाने का पूर्ण प्रयत्न किया गया है। ट्रायल के दौरान लोक अभियोजक और स्पेशल लोक अभियोजक ने भी ध्यान नहीं दिया है। उनके भी पदीय कर्तव्यों के प्रति घोर लापरवाही बरतने के तथ्य प्रकट हो रहे हैं। कोर्ट ने सीबीआई को अपने अनुसंधान का आईना दिखाने के लिए आदेश की प्रति सीबीआई के निदेशक को भी भिजवाने के आदेश दिए हैं।