जयपुर। जाने-माने कवि एवं आलोचक डॉ. राजेश कुमार व्यास को केन्द्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार प्रदान किया गया है। केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा नई दिल्ली में आयोजित भव्य साहित्यिक समारोह में अकादमी के अध्यक्ष श्री चन्द्रोखर कम्बार ने उन्हें एक लाख रूपये नकद, प्रशस्ती पत्र और ताम्र फलक प्रदान कर सम्मानित किया। डॉ. व्यास राजस्थान सूचना एवं जनसम्पर्क सेवा में उप निदेशक पद पर कार्यरत हैं।
डॉ. व्यास को उनकी काव्य कृति ‘कविता देवै दीठ’ के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया। राजस्थानी भाषा में कविता की नई जमीन तैयार करने वाली यह कृति डॉ. व्यास की पैनी काव्य दृष्टि, संवेदना और परख की गहरी समझ में राजस्थानी शब्दों की अनूठी लय लिये है।
डॉ. व्यास को इससे पहले राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति अकादमी के ‘गणेशीलाल व्यास उस्ताद ‘पद्य’ पुरस्कार के साथ ही भारत सरकार का प्रतिष्ठित ‘राहुल सांई त्यायन’ अवार्ड, राजस्थान सरकार की ओर से उत्कृष्ट लेखन पुरस्कार, पत्रकारिता का प्रतिष्ठित ‘माणक’ अलंकरण, अन्तर्रराष्ट्रीय धु्रवपद धाम सोसायटी का ‘विशिष्ट लेखनी पुरस्कार’, श्रीगोपाल पुरोहित स्मृति गुणीजन सम्मान’, पब्लिक रिलेशन सोसायटी ऑफ इण्डिा की ओर से ‘जनसम्पर्क उत्कृष्टता सम्मान’, राजस्थानी भाषा अकादमी का ‘भाषा सेवी’ सम्मान सहित विभिन्न अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है।
डॉ. व्यास की साहित्य की विभिन्न विधाओं में अब तक 21 प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें राजस्थानी कविता संग्रह ‘जी रैयो मिनख’, ‘कविता देवै दीठ’ और ‘दीठ रै पार’ अत्यधिक चर्चित रहे हैं। राजस्थानी भाषा की विशिष्ट कहानियों की कृति ‘राजस्थानी की कालजयी कहानियां’ का भी उन्होंने देश के ख्यातिलब्ध कथाकार यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ के साथ कोई 25 वर्ष पहले सम्पादन किया था। डॉ. व्यास ने दूरदर्शन से प्रसारित राजस्थानी साहित्यिक कार्यक्रम ‘मरूधरा’ का भी एक दशक से अधिक समय तक संयोजन-संचालन किया है। राजस्थानी में डायरी, यात्रा वृतान्त और संस्मरणों के साथ ही आलोचना पर भी उन्होंने विशेष कार्य किया है। दूरदर्शन ने राजस्थान की संस्कृति और स्थानों पर केन्दि्रत उनके द्वारा लिखे यात्रा वृतान्त धारावाहिक ‘डेजर्ट कॉलिंग’ का निर्माण कर उसे विभिन्न चैनलों से प्रसारित किया है। नेशनल बुक ट्रस्ट, इण्डिया से प्रकाशित उनके दो यात्रा वृतान्त ‘कश्मीर से कन्याकुमारी’ और ‘नर्मदे हर’, संगीत सर्जना की ‘सुर जो सजे’ तथा संगीत, नृत्य, नाट्य आदि कलाओं पर एकाग्र ‘रंग नाद’, बाल साहित्य की दो कृतियां, राजस्थान हिन्दी गं्रथ अकादमी से प्रकाशित आलोचना की ‘भारतीय कला’ और ‘सांस्कृति राजस्थान’ आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं।
राजस्थानी साहित्य, और कलाओं के साथ ही पत्रकारिता, पर्यटन और संस्कृति पर देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों, साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी आदि में दिए व्याख्यानों से भी उनकी विशेष पहचान है। केन्द्रीय ललित कला अकादमी की पत्रिका ‘समकालीन कला’ के एक अंक के वह अतिथि सम्पादक रहे हैं। राजस्थान ललित कला अकादमी की पत्रिका ‘आकृति’ के ‘लोक आलोक’ और ‘कलाओं के अन्तःसम्बन्धों पर एकाग्र’ विशेष अंको का भी उन्होंने सम्पादन किया है।