-बाल मुकुन्द ओझा
हम जल को अमृत तुल्य बताते है और आज यही अमृत सामान जल प्रदूषित होकर हमारे शरीर में विष का काम कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जब जल में भौतिक और मानवीय कारणों से कोई बाहरी या विजातीय पदार्थ मिलकर जल के स्वाभाविक या नैसर्गिक गुण को परिवर्तित कर देते हैं, जिसका कुप्रभाव जीवों के स्वास्थ्य पर पड़ता है तो ऐसा जल, प्रदूषित जल कहलाता है। सीधे अर्थों में हम कह सकते है जब पानी के विभिन्न स्रोत जैसे नदी, झील, कुआँ, तालाब, समुद्र आदि में दूषित तत्व आकर मिल जाएं, तो उस स्थिति को हम जल प्रदूषण कहते हैं।पानी में हानिकारक वस्तुओं के मिश्रण से ही जल प्रदूषित होता है। प्रदूषित जल का सबसे भयंकर प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में प्रतिवर्ष एक करोड़ पचास लाख व्यक्ति प्रदूषित जल के कारण मृत्यु के शिकार हो जाते हैं तथा पांच लाख बच्चे मर जाते हैं। भारत में प्रति लाख लगभग 360 व्यक्तिओं की मृत्यु हो जाती है और अस्पतालों में भर्ती होने वाले रागियों में से 50 फसदी रोगी ऐसे होते है जिनके रोग का करण प्रदूषित जल होता है। अविकसित देशों की स्थिति और भी बुरी है। यहां 80 प्रतिशत रोगों की जड़ प्रदूषित जल है। पूरी दुनिया में उपलब्ध कुल पानी में से महज 0.6 फीसदी ही पीने लायक है। जो नदियों, तालाबों, झीलों में ही मौजूद है। ये जलस्रोत जबरदस्त औद्योगिक प्रदूषण के शिकार हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक वायु और जल प्रदूषण के कारण सालाना दुनियाभर के 90 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ सकती है। अकेले जल प्रदूषण के कारण 2050 तक सबसे ज्यादा मौते होंगी। जल प्रदूषण से पूरी दुनिया चिंतित और आहत है। जल भी पर्यावरण का अभिन्न अंग है। मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। मानव स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ जल का होना नितांत आवश्यक है। जल के बिना मानव जिन्दा नहीं रह सकता। क्योंकि मानव शरीर का एक बड़ा हिस्सा जल होता है। यह सब मानव को मालूम होते हुए भी जल को बिना सोचे-विचारे हमारे जल-स्रोतों में ऐसे पदार्थ मिला रहा है जिसके मिलने से जल प्रदूषित हो रहा है। जल हमें नदी, तालाब, कुएँ, झील आदि से प्राप्त हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण आदि ने हमारे जल स्रोतों को प्रदूषित किया है जिसका ज्वलंत प्रमाण है कि हमारी पवित्र पावन गंगा नदी जिसका जल कई वर्षों तक रखने पर भी स्वच्छ व निर्मल रहता था लेकिन आज यही पावन नदी गंगा क्या कई नदियाँ व जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने एक अध्ययन में कहा था देश की 323 नदियों के 351 हिस्से प्रदूषित हैं। इसके अलावा 17 फीसदी जल निकाय गंभीर तरीके से प्रदूषित हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक औद्योगिक जल प्रदूषण की शिकायत एक जैसी हो चली है।
वायु प्रदूषण तो सब ने सुना और देखा है मगर जल प्रदूषण भी किसी महामारी से कम नहीं है। जल प्रदूषण से अभिप्राय जल निकायों जैसे कि, झीलों, नदियों, समुद्रों और भूजल के जल के संदूषित होने से है। जल में हानिकारक पदार्थों जैसे सूक्ष्म जीव, रसायन, औद्योगिक, घरेलू या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से उत्पन्न दूषित जल आदि के मिलने से जल प्रदूषित हो जाता है। वास्तव में इसे ही जल प्रदूषण कहते हैं। इस प्रकार के हानिकारक पदार्थों के मिलने से जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणधर्म प्रभावित होते हैं। जल की गुणवत्ता पर प्रदूषकों के हानिकारक दुष्प्रभावों के कारण प्रदूषित जल घरेलू, व्यावसायिक, औद्योगिक कृषि अथवा अन्य किसी भी सामान्य उपयोग के योग्य नहीं रह जाता। तेल से भी जल प्रदूषण होता है। यह प्रदूषण सामान्यतः तब होता है जब उद्योगों से तैलीय पदार्थ जल में छोड़े जाते हैं। तेल प्रदूषण नदियों की अपेक्षा समुद्र में अधिक होता है।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जल की गुणवत्ता बदतर होती जा रही है जिससे भारी प्रदूषण के शिकार इलाकों में आर्थिक संभावनाओं पर बुरा असर पड़ेगा। रिपोर्ट में सचेत किया गया है कि जल की खराब गुणवत्ता एक ऐसा संकट है जिससे मानवता और पर्यावरण के लिए खतरा पैदा हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार कुछ क्षेत्रों में नदियों और झीलों में प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें आग लगने से धुंआ निकल रहा है। आज आवश्यकता की है की हम जल को प्रदूषित होने से बचाये बचाये। जल में ऐसे तत्वों की मिलावट नहीं करें जिससे मानव के स्वास्थ्य विपरीत प्रभाव पड़ता है। जल स्वच्छ होगा तो हम भी स्वस्थ होंगे।