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चेन्नई। बॉलीवुड में अपनी छाप छोडऩे के बाद अब सुपरस्टार रजनीकांत के राजनीति में हाथ आजमाने की अटकलें तेज हो गई हैं। वहीं अब लोग भी यही आस लगाए बैठे हैं कि रजनीकांत राजनीतिक क्षेत्र में कब पर्दापर्ण करेंगे। तमिलनाडु में 90 वर्षीय द्रमुक नेता एम करुणानिधि बीमारी चल रहे हैं तो जयललिता के जाने के बाद यहां की राजनीति में एक शून्यता की स्थिति आने लगी है। प्रशंसकों का मानना है कि रजनीकांत ही एक ऐसे सर्वमान्य नेता के तौर पर सामने आएंगे। जो इस राजनीतिक शून्यता को प्रभावी ढंग से भर सकते हैं। वैसे 1996 में रजनीकांत ने सार्वजनिक तौर कहा था कि वे जयललिता के पक्ष में मतदान ना करें। उस समय अम्मा चुनाव हारी तो द्रमुख-टीएमसी को बड़ी जीत मिली। उस दौर में रजनीकांत ने जीके मूरपानार के नेतृत्व वाले द्रमुक टीएमसी गठबंधन को समर्थन दिया। वर्ष 2002 में भी एक फिल्म बाबा के जरिए राजनीतिक करियर की शुरुआत के संकेत दिए। हालांकि वर्तमान में जब भी उनसे इस मसले पर बात की जाती है तो वे चुप्पी ही साध लेते हैं। उनके समर्थकों ने उन पर दबाव बनाते हुए गुट तक बना लिया। वहीं तमिलनाडु में उनसे तमिलनाडु को बचाने व राजनीति में उतरने तक की अपील वाले पोस्टर लगा दिए। तमिलनाडु में भाजपा, कांग्रेस, द्रमुक व अन्नाद्रमुक ने उन्हें पार्टी ज्वाइन का अनुरोध भी किया। लेकिन रजनीकांत उसे टाल ही गए। वे कहते हैं कि वे न तो प्रभावशाली नेता हैं और न ही सामाजिक कार्यकर्ता। बता दें तमिलनाडु में सिनेमा और राजनीति का गहरा संबंध रहा है। यहां के तीन सीएम दिवंगत एमजी रामचंद्रन व जयललिता के साथ ही पटकथा लेखक एम करुणानिधि फिल्मों के बाद राजनीति में भी सफल रहे। पीएम मोदी समेत भाजपा के कई नेताओं से उनके अच्छे संबंध हैं। जिन्होंने रजनीकांत को खुला आमंत्रण दिया। पीएम मोदी ने अपने चेन्नई दौरे के समय रजनीकांत से उनके आवास पर जाकर मुलाकात भी की। लोगों को उम्मीद है कि रजनीकांत राजनीति में आए और एमजी रामचंद्रन सरीखा नेतृत्व प्रदान करें।
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