-डॉ. विभूति भूषण शर्मा
jaipur.देश में आतंकी हमलों का इतिहास अब पुराना होने लगा है, इंदिरा गांधी-राजीव गांधी-बेअंत सिंह-वीसी शुक्ल-नंदकुमार पटेल से लेकर छोटे-बड़े कांग्रेस नेताओं के बड़ी सूची है जिन्हें आतंकियों ने अपने निशाने पर लिया। मुंबई-पूना-
जयपुर-दिल्ली समेत अधिकांश छोटे-बड़े शहरों से लेकर संसद भवन तक पर आतंकी हमले हुए; लेकिन संघ-भाजपा से जुड़े लोग न तो कभी शिकार हुए न कभी ऐसा मालुम हुआ कि कोई भी आतंकी संगठन इन्हें अपनी हिटलिस्ट में रखे हुए है। सवाल उठने लाजमी हैं क्या आतंकवादी इन लोगों को मारने की कोई जरूरत नहीं समझते हैं? क्या आतंकवादी मानते हैं कि संघी और भाजपाई सच्चे देशभक्त नहीं होते, बल्कि देशभक्ति का केवल ढ़ोल पीटते हैं और ढ़ोलकियों पर हमला करना अपनी ही तौहीन है।
पर सवाल यह भी उठता है क्या संघ और भाजपा के लोग भी भारत में वही काम करते हैं जो आतंकवादी चाहते हैं अर्थात देश में धर्मोन्माद और जातीय संघर्ष के आधार पर बंटवारे की राजनीति या सीधे शब्दों में देश की जड़ें खोखली करने का काम करते हैं? तो यह मानने में क्या हर्ज है कि आतंकी इनको कभी अपने निशाने पर नहीं लेते क्योंकि आतंकी भी यही चाहते हैं कि देश में तबाही हो। संघ, भाजपा और मोदी नीतियां भी भारत में तबाही ही कर रही हैं। हमारे यह सोचने के लिए पर्याप्त कारण है कि आतंकी ऐसा सोचते होगें यह सरकार हमारा ही काम कर रही है। इस सरकार के कृत्य मसलन सांप्रदायिकता, धर्मोंमाद, धर्मांधता आदि देश को तोड़ने और कमजोर करने के लिए पर्याप्त है। अर्थात संघ-भाजपा अपनी हरकतों से आतंकी संगठनों के मंसूबों को सफल बनाने का काम कर रहे हैं।
सवाल तो बहुत सारे उठते हैं..उनका उठना भी वाजिब है। आज से नहीं, बल्कि सवाल तो भाजपा और उसके आतंकियों से रिश्तों पर जब विश्वनाथप्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे तभी से उठ रहे हैं। इन सवालों की श्रृंखला को सिलसिलेवार देखना जरूरी है, उसके बिना इन सब के पीछे जो तारतम्य है वह दिखाई नहीं देगा।
सबसे पहले सवाल उठे सन् १९८९ में, जब राजीव गांधी को चुनाव हरा कर वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने और उन्हें भाजपा ने समर्थन दिया था। उस भाजपा समर्थित वीपी सिंह सरकार में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद थे, अर्थात महबूबा मुफ्ती के पिता। तब मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी अर्थात कश्मीर की निवर्तमान मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बहन रुबैया मुफ्ती का कुछ आतंकियों ने अपहरण कर लिया था। बाद में रुबैया को अपहरणकर्ताओं से छुड़ाने के लिए सात खतरनाक आतंकियों को रिहा किया गया था। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने इस तरह की सौदेबाजी का जबरदस्त विरोध किया, भाजपा समर्थित केंद्र सरकार ने उनके विरोध को दरकिनार किया। रुबैया की रिहाई के लिए जेकेएलएफ के पांच आतंकियों की रिहाई हुई। भारत सरकार ने शेख अब्दुल हामिद (जेकेएलएफ का एरिया कमांडर), नूर मोहम्मद कलवल, मुश्ताक अहमद जरगर, मुहम्मद अल्ताफ और मकबूल भट के भाई गुलाम नबी भट को रिहा किया गया। बरसों बाद फारूख अब्दुल्ला ने रहस्योद्घाटन किया कि मैंने कहा था इससे आतंक के दरवाजे खुल जाएंगे..आतंकियों की बाढ़ आ जाएगी कश्मीर में, लेकिन केंद्र से दो वरिष्ठ मंत्रियों को भेजकर मेरी सरकार बर्खास्त करने की धमकी दी गई थी।
यहां सवाल मौजूं है आतंकी भाजपा की सहमति से रिहा किए गए थे। अगर ऐसा नहीं था तो जब आतंकियों को रिहा किया गया तब भाजपा ने वी पी सिंह साहब सरकार से समर्थन वापस क्यों नहीं लिया? भाजपा सत्ता और सरकार के साथ क्यों बनी रही? सब जानते हैं कश्मीर में आतंक की शुरुआत इसी घटना के बाद हुई। अब आगे देखिए भाजपा के पितृ पुरूष अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय कारगिल में भारी घुसपैठ होती है और कारगिल को छुड़ाने में हमें हमारे आठ-नौ सौ वीर जांबाज सैनिकों की शहादत देनी पड़ती है।
और समझिए उन्हीं वाजपेयी जी की सरकार में भारतीय लोकतंत्रके सबसे बड़े मंदिर संसद पर हमला होता है। संघ-भाजपा नेता हमेशा की तरह महफूज ही रहे। कंधार विमान हाईजैक कांड में पूरी दुनिया ने देखा आतंकियों ने भारत सरकार को घुटनों के बल खड़ा कर दिया। इंडियन एयरलाइंस का विमान अपहरण कर कंधार ले जाया गया। दुनिया के सबसे बड़े आतंकी संगठन तालिबान ने विमान को कब्जे में रखा…..वही भारत सरकार और पाकिस्तानी अपहरणकर्ताओं के बीच मध्यस्तता की। जिन तीन आतंकियों को रिहा किया गया वे थे जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद। बाद में इन आतंकियों ने ही ९/११ हमले की योजना बनाई, डेनियल पर्ल की ह्त्या की और २००६ के मुंबई हमलों की व्यूह रचना की। मौलाना मसूद अजहर दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना हो कर आज तक भारत में तबाही के मंसूबे पाल रहा है। यह पाप भी भाजपा का ही है।
देश के तत्कालीन गृहमंत्री भाजपा के बड़े नेता लालकृष्ण आड़वाणी पाकिस्तान के कायदे आजम जिन्ना की मजार पर जा कर मत्था टेकते हैं और उन्हें महान नेता बताते हैं। देश के तत्कालीन रक्षामंत्री भाजपा के दिग्गज जसवंत सिंह साहब पाकिस्तान के कायदे आजम जिन्ना की तारीफ में पुस्तक तक लिख देते हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने प्रधानमंत्री पद की शपथ बिना दुश्मन देश के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लेने को तैयार नहीं थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पड़ौसी देश के प्रधानमंत्री के यहां बिरयानी खाने तमाम प्रोटोकॉल तोड़कर गुप्त तरीके से लाहौर पंहुच जाते हैं। प्रधानमंत्री गर्मियों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भेजे आम खाते हैं, दूसरी तरफ हमारे जांबाज सैनिक सीमाओं पर भूखे प्यासे देश की सुरक्षा के लिए जान दांव पर लगाए पाकिस्तानी सेना के तोपखाने के गोले खाते हैं।
पठानकोट एयर फोर्स स्टेशन पर हमला होता है, हमारे सैनिक कड़े मुकाबले में हमला विफल करते हैं। हमारे प्रधानमन्त्री जांच पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई से कराते हैं कि समझो तुम्हारा हमला विफल कैसे हुआ..अगली बार तैयारी से आना!
उरी में आर्मी बटालियन और अनेक सैनिक-अर्धसैनिक ठिकानों पर आतंकी हमले नियमित हैं। भाजपा ने पीडीपी के साथ मिलकर कश्मीर में सरकार बनाई। हाल ही में मोदी सरकार के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 11000 पत्थर बाजों के विरूद्ध किए गए मुकदमे वापस लेने की घोषणा की। सवाल फिर सामने है क्यों?
-खबर है हाल ही में आतंकी मसर्रत आलम के अतिरिक्त एक और आतंकी को रिहा किया गया है, क्यों?
-एनकाउन्टर में मारे गए कुख्यात आतंकी बुरहान वानी के भाई को बतौर मुआवजा सरकारी नौकरी दी तथा उसके परिजनों को पैकेज दिया, क्यों?
अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए की रिपोर्ट कहती है विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल (जो संघ के आनुषांगिक संगठन है) आतंकी संगठन हैं। तो यह क्यों न माना जाए कि संघ-भाजपा खुद आतंक की बैसाखी पर चलती है? यह सवाल गैरवाजिब नहीं हो सकता।
इन सब बातों से यह निष्कर्ष क्यों न निकाला जाए कि ये खुद ही आतंकी विचारधारा के लोग हैं इन पर ना आतंकी हमला करते हैं ना इन पर नक्सली हमला करते हैं? ये प्रचार में रहने के लिए और अपना झूठा राष्ट्रवाद साबित करने के लिए कभी झूठे धमकी भरे पत्र प्रकाशित कराते हैं, तो कभी फर्जी एनकाउंटर करा कर यह साबित करने का प्रयास करते हैं कि हम पर आतंकी हमला हो सकता था।
कांग्रेस ने अपने दो शीर्ष नेताओं इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को आतंकी हमलों में खोया है। पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित 20-25 छोटे बडे नेताओं ने आतंकी हमलों में शहादत दी। छत्तीसगढ़ में तो नक्सलवादियों ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लगभग 25 नेताओं की जान एक साथ ली थी। आज वही लोग कांग्रेस की देशभक्ति पर सवाल उठाते हैं और खुद को राष्ट्रवादी कहते हैं, जिनका इतिहास आतंक को बढ़ावा देने का है, आतंकियों के सामने शीश नवाने का है! ये वही लोग और वही विचारधारा है जिसने आजादी के आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत की सलामती के लिए पत्र लिखे, ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की कसमें खाएं..तिरंगे से जिन्हें नफरत रही और स्वतंत्र भारत जिन्हें चुभता था। इस विचारधारा से सावधान रहिए, समय पर आपको याने भारतीय गणतंत्र की जड़ों पर ही प्रहार करेगी।
-डाॅ विभूति भूषण शर्मा
राजस्थान हाईकोर्ट जयपुर में एडवोकेट हैं तथा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के महासचिव एवं अध्यक्ष रहे हैं। विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं और अखबारों में आपके लगभग 300 आलेख प्रकाशित हो चुके हैं।